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जगन्नाथ पुरी पीठ स्थित गोवर्धन मठ के 145वें शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती नैनीतील पहुँचे । आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म को एक सूत्र मे पिरोने के लिये चार मठों की स्थापना की । तथा इन मठों से अपेक्षा की कि वे सनातन धर्म को एक सूत्र मे बांधगे । किन्तु यह हो न सका ,शंकराचार्य भी रूढिवादी परम्पराओं के संवाहक बने । कई बार अखाडों ने शंकराचार्य पद की अवहेलना करते हुवे स्वतन्त्र फैसले लिये । 29 नवम्बर 2021 को नैनीताल पहुंचे पूरी पीठ के शंकराचार्य निश्चलानन्द सरस्वती ने यह तो कह दिया कि धर्मनिरपेक्ष शासन तंत्र को हिंदुओं के मठ मंदिरों में दखल अंदाजी का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि संविधान की सीमा में रहकर मठ मंदिरों में अतिक्रमण करने वालों का विरोध होना चाहिए। पर बिरोध कौन करेगा ? बिरोधियों की संवैधानिक मान्यता क्या होगी ?। यदि इस पर सवाल उठाया जाता तो यह सनातन धर्म के हित मे होता। न्यायालयों मे सैकडों मुकदमें अबैध कब्जे को लेकर हो रहे है । सम्पत्ति के लालच मे साधु सन्तों तक को अपनी जांन गवानी पड रही है । यही नही नित नये – नये भगवान गढे जा रहे है । सम्प्रदायों रे आचार्य अपन् को ईश्वर बता कर भक्तो से पूजा करवा रहे है । मन्दिरो के ट्रष्ट्रो मे गैर सनातनी भी ट्रष्ट्री है ।मन्दिर अपने सनातन धर्म के प्रति उत्तरदायित्व नही निभा रहे है । जो सनातन धर्म छोड चुके है शंकराचार्य उन्हें फिर से स्वधर्म मे वापसी पर मौन ही नही अपितु बिरोधी भी है । ऐसे मे यह पद भारत में अपनी प्रासंगिकता खोता जा रहा है । वेद पाठ पर भी शंकरीचार्य तार्किक नही है वे शुद्रो व महिलाओ के वेद पाठ एवं हवन करने पर सवाल उठाते है पर यह नही बताते कि इन्हें हवन क्यों नही करना चाहिये । शकराचार्य ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी जगन्नाथपुरी पीठ के मामले में पारित फैसले में कहा कि मन्दिरों मे सरकार का हस्तक्षेप नही होना चाहिये ।इसी इसी दृष्टिकोण को वे स्वीकार करते है। प्रधानमंत्री से लेकर उड़ीसा के मुख्यमंत्री ने भी इसी दृष्टिकोण को माना है। किन्तु शंकराचार्य यह भूल गये कि यदि प्रधानमंनत्री ने यह दृष्टिकोण माना है तो देवस्थानम बोर्ड जैसे फैसले राज्य सरकार क्यों ले रही है ? इसके साथ ही उन्होंने कहा कि देश में सनातन संस्कृति खतरे में नहीं बल्कि सनातन संस्कृति को ना मानने वाले खतरे में हैं। उनका यह कथन भ्रमित करता है दुनिया के कई देशो से सनातन धर्म मिट चुका है अब तो अवशेष भी मिटा दिये गये है । उनका यह कथन सत्य है कि कि वर्तमान में दो प्रतिशत राजनेता ही अपने व्यक्तित्व व कार्यों के बल पर, चुनाव जीत रहे है जबकि 98 प्रतिशत राजनेता दूसरे हथकंडे अपनाकर चुनाव जीत रहे हैं।

पहली बार नैनीताल पहुँचे नगर के नैनीताल क्लब के शैले हॉल में आयोजित धर्म संवाद कार्यक्रम में उपस्थित लोगों के सवालों का जवाब देते हुवे शंकराचार्य जी ने कहा कि आज धर्म की सीमा में अतिक्रमण कर राजनीति को परिभाषित किया जा रहा है। उनके इस कथन की सराहना होनी चाहिये उन्होंने कहा कि आज की राजनीति उन्माद, सत्तालोलुपता व अदूरदर्शिता का कारण बन गई है। उन्होंने कहा कि राजनीति सुशिक्षित, सुरक्षित, सुसंस्कृत, सेवा परायण, स्वस्थ, सर्वप्रिय होनी चाहिए। ना कि स्वार्थ प्रेरित

उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता के बजाय पन्थनिर्पेक्षता होती तो धर्मप्रेमी राजनेता भी खुलकर भावनाओं को व्यक्त कर सकते थे । उनके सामने दलीय या पार्टी का अनुशासन आड़े आ रहा है। उन्होंने कहा की वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सनातन संस्कृति को स्थान नहीं दिया जा रहा है। संवाद कार्यक्रम के बाद शंकराचार्य द्वारा उपस्थित लोगों को दीक्षा भी दी गई और धर्म रक्षा का संकल्प भी दिलाया गया। इस अवसर पर रामसेवक सभा के भीम सिंह कार्की, शैलेंद्र मेलकानी, शैलेंद्र साह, भगवान सिंह, दिनेश आर्य, हरीश राणा, मंजू रौतेला, सुमन साह, कुंदन नेगी, भूपेंद्र बिष्ट, किशन नेगी, अनिल जोशी, मनोज पाठक, किशोर कांडपाल, दया बिष्ट व हरीश भट्ट आदि लोग प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। बताया गया है कि शकराचार्य मंगलवार को हाईकोर्ट बार एसोसिएशन में अधिवक्ताओं व न्यायिक अधिकारियों के साथ संवाद करेंगे।

नैनीताल मे शंकराचार्य के कार्यक्रम मे सिमिंत लोग पहुचें जहाँ एक ओर किसी राजनीतिक कार्यक्रम में लोग लाये जाते है वही शंकराचार्य जी के कार्यक्रम में बेहद सीमित लोगों की उपस्थिति ने कार्यक्रम आयोजकों पर ही सवाल खडे कर दिये ।कार्यक्रम में अंगुलियों में गिने जा सकने योग्य ही लोग पहुंचे इससे भी बड़ी बात यह कि नगर की धार्मिक संस्थाओं की ओर से भी शंकराचार्य जी के प्रति उपेक्षा ही दिखाई इसका कारण यह है कि शंकरीचार्य पद के प्रति लोगों मे सिमित जानकारी है ।व आयोजकों ने पर्याप्त मेहनत नही की ।

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