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नर्मदा बचाओ आंदोलन से राष्ट्रीय पटल पर छा जाने वाली मेधा पाटकर समकालीन आन्दोलनकारियों की वह बिरासत है जो आज भी जनआन्दोलनो का नेतृत्व करती हुई दिखाई देती है । जिनके पास राशन कार्ड नही है राशन पाने का हक उन्हें भी है । मेधा का यह नारा उनकी संवेदनशीलता का प्रतीक है।मेधा ने एक बार नही बार – बार पर्यावरण तथा विकास के संघर्ष को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनाया वे उत्तराखण्ड के जन आन्दोलनों मे भी सक्रिय रही है । कई आन्दोलनकारी जो वक्त के साथ थक गये घरों मे बैठ गये , प्रधानमन्त्री के ब्यंग से टूट गये मेधा उनसे अलग आज भी गरज रही है सरकार की किसान बिरोधी नीतियो का संयुक्क्त किसान संघ के साथ मिलकर संसक्त बिरोध कर रही है । किसान संगठनों ने देश की मोदी सरकार की तमाम आलोचनाओ को दररिनार करते हुवे एक बार फिर इस तत्थ्य को स्थापित कर दिया है कि आन्दोलन जीवी राजनीति के धुरन्धरों की मनमानियों पर रोक लगा देते है , सरकारों को धूल चटा देते है
मेधा ने नर्मदा मे केवल विस्थापित लोगों की ही लडाईया नही लडी अपितु आम जनता के साथ वे आज भी जुडी मे मुम्मई मे झुग्गी झोपड़ियो की लडाई एक मिशाल है ।उनके संघर्षो मे उनके साथ केवल आम जनता ही नही बल्कि वैज्ञानिकों, गैर सरकारी संगठनों तथा आम जनता की भी भागीदारी रही है ।
नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध परियोजना का उद्घाटन 1961 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने किया था। लेकिन तीन राज्यों-गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा राजस्थान के मध्य एक उपयुक्त जल वितरण नीति पर कोई सहमति नहीं बन पाने के कारण यह परियोजना विवादित हो गई । 1969 में, सरकार ने नर्मदा जल विवाद न्यायधिकरण का गठन किया ताकि जल संबंधी विवाद का हल करके परियोजना का कार्य शुरु किया जा सके। 1979 में न्यायधिकरण सर्वसम्मति पर पहुँचा तथा नर्मदा घाटी परियोजना ने जन्म लिया जिसमें नर्मदा नदी तथा उसकी 41 नदियों पर दो विशाल बांधों – गुजरात में सरदार सरोवर बांध तथा मध्य प्रदेश में नर्मदा सागर बांध, 28 मध्यम बांध तथा 3000 जल परियोजनाओं का निर्माण शामिल था। 1985 में इस परियोजना के लिए विश्व बैंक ने 450 करोड़ डॉलर का लोन देने की घोषणा की सरकार के अनुसार इस परियोजना से मध्य प्रदेश, गुजरात तथा राजस्थान के सूखा ग्रस्त क्षेत्रों की 2.27 करोड़ हेक्टेयर भूमि को सिंचाई के लिए जल मिलेगा, बिजली का निर्माण होगा, पीने के लिए जल मिलेगा तथा क्षेत्र में बाढ़ को रोका जा सकेगा। हालांकि इस परियोजना ने आंशिक रूप से सफलता प्राप्त की पर पुनर्वास का मामला आज भी अपनी जगह परकायम् है । सरकार के द्वारा इसकी ऊचाई बढा देने से डूब क्षेत्र का बिस्तार हो गया ।एक ओर इस परियोजना को समृद्धि तथा विकास का सूचक माना जा रहा है जिसके परिणाम स्वरूप सिंचाई, पेयजल की आपूर्ति, बाढ़ पर नियंत्रण, रोजगार के नये अवसर, बिजली तथा सूखे से बचाव आदि लाभों को प्राप्त करने की बात की जा रही है ।वहीं दूसरी ओर अनुमान है कि इससे तीन राज्यों की 37000 हेक्टेयर भूमि जलमग्न हो जाएगी जिसमें 13000 हेक्टेयर वन भूमि है। यह भी अनुमान है कि इससे 248 गांव के एक लाख से अधिक लोग विस्थापित होंगे। जिनमें 58 प्रतिशत लोग आदिवासी क्षेत्र के हैं। जिनके पुनर्वास की समस्या है । जब टिहरी मे सुन्दर लाल बहुगुणा के नेतृत्व मे टिहरी बांध को पर्यावरण के खिलाफ बता कर आन्दोलन किया जा रहा था तब मेधा नर्मदा के लिये आन्दोलन कर रही थी ।डा शमशेर सिंह बिष्ट इन जन आन्दोलनो के साथ जुडे रहे टिहरी व नर्मदा मे पुनर्वास के मामले जोर शोर से उठे ।नर्मदा के प्रभावित गाँवों के करीब ढाई लाख लोगों के पुनर्वास का मुद्दा सबसे पहले स्थानीय कार्यकर्ताओं ने उठाया । इन गतिविधियों को एक आंदोलन की शक्ल 1988-89 के दौरान मिली जब के स्थानीय स्वयमसेवी संगठनों ने खुद को नर्मदा बचाओ आंदोलन के रूप में गठित किया। मेधा इन सब आन्दोलनों की निर्विवादित नेता बन गई ।
मेधा नर्मदा घाटी मे ऐसे छा गई कि राष्ट्रीय स्तर पर उनकी राय को गम्भीरता से लिया जाने लगा ।आज को दौर मे जब भारत के इतिहास मे पहली बार लोंगों ने एक प्रधानमंन्त्री को जन आन्दोलनों का उपहास करते हुवे देखा । आन्दोलनजीवी शब्द ऐला प्रचलित हुवा कि सरकार समर्थको को आन्दोलनकारी राष्ट्रद्रोही लगने लगे ।सरकार ने यह दिखाने की कोशिस की कि आन्दोलनकारियों को गम्भीरता से ना लिया जाय । शहरी मतदाता व सरकार समर्थक प्रपोगण्डा करने लगे कि आन्दोलनकारी , गांधिवादी , बामपन्थी , खालिस्तानी , व आन्दोलनजीवी है । इनका काम ही आन्दोलन करना है । चैनलो मे आन्दोलन जीवियो पर बडी – बडी बहसे आने लगी । पर अचानक क्या हुवा कि सरकार को तीन कृर्षि कानून वापस लेने पड़े । टी वी डिवेड ने सरकार के पक्ष मे माहौल तो बनाया पर मुक्त ब्यापार ने जो महंगाई बढाई उस हालात मे कोई भी राजनैतिक पार्टी ज्यादा दिनों तक सरकार नही चला सकती शायद समय रहते सरकार को यह अहसास हो गया कि जो कौमे अंग्रेजो के आगे नही झुकी उन्हे कोई सरकार नही झुका सकती। किलान संगठनों का बिरोध भी देश की सीमाओं को पार कर गया । जिस प्रकार सरकार झुकी उससे स्पष्ट है कि देश मे जन आन्दोलनों की बिरासत अब भी जिन्दा है मेधा , राकेश टिकैत योगेन्द्र यादव जैसे हजारो लोग अब भी जन आन्लनो के साथ है । जो अब नही है उनमे स्वामी अग्निवेश , सुन्दर लाल बहुगुणा , डा सुनील , बननारी लाल शर्मा स्वामी सानन्द , ब्रह्मदेव शर्मा सहित सैकडो लोग , आधुनिक जन आन्दोलनों के स्वप्नदृष्टा रहे है । मेधा पाटकर की यह मुहिम भी रंग लायेगी कि दिनके पास राशन कार्ड नही है उन्हें भी राशन पाने का हक है । उन्हें भी खाद्य सुरक्षा के दायरे मे लाया जाय ।