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जब असल मुद्दे गायब करने हो – तो काल्पनिक मुद्दे उछालने जरूरी है इन दिनों देश के सोसियल मीड़िया मे सत्ता पाने के लिये राजनैतिक कार्यकर्ताओं द्वारा जो मिथक तैयार किये जा रहे है इसका पूर्व इतिहास मे कोई उदाहरण नही है। जर्मनी मे यहूदियों को सबक सिखाने के लिये हिटलर के शासन को याद किया जाता है, जहां उन पर नस्लीय हमले इस कारण हुवे, क्योकि वे धन धान्य ब्यापार में उस जमाने मे भी आगे थे, जैसे वे इजराईल मे आज भी आगे है । पर वे ईर्ष्या द्वेष के शिकार हो गये वह दर दर भटकमे को विवस हो गये ।, क्योकि वे हिटलर के कार्यों मे बाधक बने थे उसी प्रकार आज भी सत्ता पाने के लिये व सत्ता मे बने रहने के लिये कई नफरती चाबिया तैयार की जा रही है ।इसके निर्माता वे हीन व कुंठित ब्यक्ति व स्वार्थी लोग है ,जो अपने जीवन मे तरक्की नही कर पाये या फिर वे लोग है जो अपने को शीर्ष मे देखना चाहते है । सोसियल मीड़िया मे जो माहौल तैयार किया जा है, उसके अनुसार राजपूतों को लगता है कि ब्राह्मणों ने उनका रोजगार समाप्त कर दिया , ब्राह्मणों को लगता है कि वे अल्प संख्यक है पढने मे आगे है उन्हे पीछे धकेला जा रहा है,। इस कारण एक खास वर्ग उन्हें पीछे धकेलने का प्रयास कर रहा है । दलितो को लगता है कि सवर्ण समाज उनकी तरक्की मे बाधक है । किसानों को लगता है कि शहर उनकी तरक्की में बाधक है शहरियों को लगता है कि किसान उनको महंगी सब्जिया व दूध बेचकर लूट रहे है ।

हिंदुओं को लग रहा है कि आने वाले कुछ वर्षों में भारत मुस्लिम राष्ट्र बन जाएगा और भारत में औरंगजेब जैसे शासकों का शासन आ जाएगा। सोसियल मीड़िया मे कहा जा रहा है कि वे रोटी रोजी रोजगार के सारे मुद्दे भूलकर
केवल मुस्लिमों की बढती आबादी पर ध्यान देे खुद परिवार नियोजन करें मुस्लिमों को परिवार बढाने के लिये कोसे , वही – मुस्लिमों को लग रहा है कि हिन्दु उन पर हावी हो रहे है उनका मजहब खतरे मे है , पाकिस्तान जैसे देशो का बजूद ही इस कल्पना पर आधारित है ,तो कुछ राजनैतिक दल इसी कारण से सत्ता मे भी है क्योकि वह सोसियल मीड़िया का नफरत व घृणा फैलाने में जबरदस्त उपयोग कर रहे है ।मुसलमानों की तड़फ ही सत्ता की चाबी है, मुसलमानों को सोसियल मीड़िया से पता लगता है कि हिन्दु खूंखार बन रहे है ।दलितों की राजनीति करने वाले समुहों को बताया जा रहा है कि मनुस्मृति व ब्राह्मण ही उनकी समस्या का मूल कारण है उनके कारण ही वे पाच हजार सालों से दबे कुचले है उनको सोसियल मीड़िया मे बताया जा रहा है कि जल्द ही नई संविधान सभा गठित होने वाली है और उन्हे जो संविधान मे बिशेष लाभ दिये गये है है कि उन्हे हटा दिया जायेगा ,इसमें मनुस्मृति के नियमों को लागू किया जायेगा साजिसों से उनके उनके विकास में रिवर्स गियर लग जाएगा।

वही देश के सवर्णो को लग रहा है कि उनकी दुर्गति का कारण आरक्षण व एस टी एस सी कानून है इसकी वजह से उसकी युवा पीढ़ी बेरोजगार और बेचारी होती जा रही है।

इन सभी कल्पनाएँ का एकमात्र कारण राजनेताओ की कुटिल चाले व सोसियल मीड़िया ही तो है ।जो आपस मे बैमनस्य फैला रहा है ।

असल में हम ईमानदारी से विश्लेषण करें तो पाएंगे कि ये सारी अवधारणाएं वाट्सऐप और फेसबुक पर अंधाधुंध फैलाए जा रहे संन्देशो के ही नतीजें है । इन्हे कैयार करने वाले लाधारण लोग नही बड़े लोग है , जो सत्ता बनाने व बचाये रखने का उद्यम करते रहते है ।

सोसियल मीड़िया मे उस मनु स्मृति का भय दिखाने वाले हजारों पोस्ट मौजूद है , जो दलितों आदिवासियो को इन पोस्टरों के माध्यम से इतना डरा रही है कि उनके मन मे सवर्ण समाज के प्रति नफरत पैदा हो जाय, इस प्रकार के कापी पेस्ट लंबे लंबे मैसेज,भड़काऊ फोटो और तमाम वीडियो की शक्ल में सोसियल मीड़िया मे बहुतायत से प्रचलित हैं।

अगर हम सोशल मीडिया की छद्म दुनिया से निकलकर अपने आसपासके लोगों को देखें तो यकीनन एक सौहार्दपूर्ण भारत नज़र आएगा.किन्तु यदि इसे नही रोका गया और अगर हम अभी भी नहीं चेते और इन्हीं वाहियात फारवर्डेड मैसेजों के आधार पर दूसरों के लिए अपनी अवधारणाएं बनाते रहे तो यह भी संभावना है कि पास में खड़ा आदमी अचानक हमला कर बैठे। भारत के हर राज्य को कश्मीर बनते देर नही लगेगी जहां हर अल्पसंख्यक जाति के ब्यक्ति को अपना , घर मकान व दुकान रोजगार छोडना पडेगा , देश जातीय हिंसा की चपेट मे आ सकता है ।

ये सब राजनैतिक प्रयोजन हैं जो सत्ता मे पहुचने के शौर्टकट तरीके है । राजनेताओ का तो कुछ खास नही जायेगा उन्हे बचाने पुलिस व सेना खड़ी है पर इनमें उलझने से आम लोगों की जानें जा सकती है नफरतों से आम लोगों के घर जलेंगे यहां तक कि पुलिस भी आम लोगों को ही धुनेगी इसकी नफरतों से नेताओकी राजनैतिक फसले उगेंगी , हालांकि यह लम्बे समय तक नही चलेगा पर कष्मीर उदाहरण है वहा पहले लोगो मे अपना धरम व फिर दिम्बोंने धर्म नही छोड़ा वे कश्मीरी पंडित अपने पूर्वजों के बने बनाये घर खेत खलिहान रोजगार छोडने के लिये बाध्य हो गया , यही नही इन नफरतों ने बृहद भारत की सीमाओं रो लघु भारत मे बदल दिया , यह सच हैै कि सत्ता की पंजीरी आज भी वेहील लूट रहे है जो कल लू रहे थे , दाति धर्म भलेहि बदल गये हो पर रक्त वही है जो पहले था पर यदि कुछ नही बदला तो वह है गरीबी लाचारी भुखमरी , इन नेताओं व राजनैतिक दलों मे मैसेजों की बमबारी के लिए आईटी कम्पनियां खोली है इनमे सेकड़ो कर्मचारी नियुक्त किये गये हैं, तो लाखो मूर्खाधिराज उन्माद मे बह कर इन मैसेजों रो अग्रसारित कर नफरतों की फसल उगा रहे है ,जिन्हे आने वाली पीढिया काटेंगी ।

यह समय सावधान रहने का है । सावधान रहिये नफरत फैलाने वाली कोई भी पोस्ट शेयर न करें। भारतीय अभी भी अजनबियों को भी प्रेम से चाचा ताऊ भैया दद्दा कहने वाले लोग है , अपनी इन संस्कृति व बिरासतों के संवाहक हैं। हममें से बहुत ही कम लोग है जो जाति पूछते हो और जाति पूछकर ही संबोधन करता हो। सोशल मीडिया से फैलती आग में जलने और समाज को जलाने से बचाना ही लक्ष्य होना जातिगत व धार्मिक नफरत फैलाने वाले समुहों से अपने को हटाना जरूरी है ताकि सामाजिक शौहार्दय कायम हो सके ।

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