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अल्मोड़ा , इन दिनों नगर में भागवत कथाओ की धूम मची हुई है । इसी क्रम में दुगालखोला में आज जहां भागवत कथा का समापन हुवा वही गुर्रानीखोला में आज भागवत कथा पाचवे दिन मे प्रवेश कर गई । इस अवसर पर भागवत कथा का मर्म बताते हुवे भागवताचार्य. ललित मोहन काण्डपाल ने कहा कि पशु की बलि महापाप है वेद मे पशु बलि का मतलब पशुओं की हत्या नही बल्कि जीवन मे जो पशुता पूर्ण ब्यवहार की हत्या करना है जो अर्थ का अनर्थ कर यज्ञ मे जीवित पशुओ का रक्त बहाते है वे घोर नर्क व पीड़ा का जीवन जीते है । उन्होने कहा कि नव द्वार रूपी इस पुरन्ञऩी नामक भवन यनि शरीर मे बुद्धि प्रदात्री देवी रहती है साथ मे मन भी है जब बुद्धि व मन मिलते है तभी सकारात्मक व नकारात्मक कार्य होते है । पुरन्जनी नामक इस नगर की रक्षा पन्च नाग यनि पांच प्राण करते है, यह पन्च प्राण यनि नाग अकेले ही रक्षा करते है , जब तक पन्च प्राण है कब तक यह नगर सुरक्षित है किन्तु पुरन्धि की पुत्री जरा इसे घेरने लगती है इसका फल होता है कि बाल सफेद व फिर दांत भी झड़ते है । फिर कमर झुक जाती है । अन्त मे शरीर क्षीर्ण हो जाता है । मरते समय प्रिय व स्वजनों की याद आती है तो पुनर्जन्म उन्ही झझावटों से घिरा हुवा होता है , इस संसार में ईश्वर ही सत्य है । जीवन की सच्चाई व कर्मठता के लिये सत्संग जरूरी है । भागवत कथाकार ललित मोहन काण्डपाल ने ने कहा कि वेदब्यास का यह मन्तब्य है कि हमे स्वयं को जानना चाहिये ।

उन्होने कहा कि तनाव को दूर करने का यही उपाय है ,कि हम अपना कर्म विचार कर करे जो हो गया उसे हम रोक नही सकते, जो नही हुवा इसे करना हमारे हाथ मे नही था । उन्होने कहा कि समय को चार भागों मे बांटकर कम से कम तीन घण्टे निष्ठा से ईश्वर का भजन करना चाहिये । राजा परिक्षित के जीवन का उदाहरण देते हुवे उन्होने कहा कि कल्युग मे अब धर्म अब एक ही पैर मे खड़ा है । यह पृथ्वी धर्म से ही सुरक्षित रहेगी कलयुग में पृथ्वी पर कुदृष्ठि पड़ी है ।

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