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अल्मोडा मेड़िकल कालेज के अस्तित्व मे आने के बाद अल्मोड़ा वेस चिकित्सालय अब सफेद हाथी बन गया है चिकित्सालय में साफ सफाई , पानी की समस्या आये दिन रोगियों को परेशान करने लगी है । अधिकांश टकनीशिय व प्रोफेसर हल्द्वानी व अल्मोड़ा मेड़िकल कालेज के बीच पैन्डुलम की तरह झूल रहे है । मेड़िकल कालेज में जरूरी उपकरणों व तकनीशियन का भी अभाव है ।
यो तो मेड़िकल कालेल शैशवावस्था में है, किन्तु वेस चिकित्सालय पुराना है उसकी हालत खराब करना एक प्रशासनिक कमी नही तो क्या है ।चिकित्सकों का वर्ताब भर्ती रोगियों के प्रति यदि ठीक रहे तो ओ पी ड़ी मे बृद्धि होगी , किन्तु वेस चिकित्सालय में ओ पी ड़ी मे कमी आ रही है जबकि इसंमे अब अनुभवी प्रोफेसर अपनी सेवायें दे रहे है । फिर भी रोगी परेशान है ओ पी उपकरणों के विना प्रशिक्षु छात्र नर्स र्या सीखेगे सोचनीय है ।
चिकित्सा शिक्षा मन्त्री धनसिंह रावत ने कहा है कि पहाड के मेड़िकल कालेजों को 50% अतिरिक्त बजट मिलेगा पर यदि इससे उपकरण खरीदें भी गये तो उन्हें औपरेट करने वाले औपरेटरों के बिना इनका हाल भी वही हो जायेगा जो कोरोना काल में चिकित्सालयों को उपलब्ध कराये गये बैन्टिलेटर व आई सी यू बैड का हो रहा है ,ये गोदामों मे सड़ रहें हैं। अधिकारियों का कहना हैं कि इन्हें वार्ड मे लगाने की समुचित ब्यवस्था की जा रही हैं । इनका हाल भी बेस अस्पलाल मे खड़ा चिकित्सा सचल वाहन की तरह हो जाय तो कोई आश्चर्य नही , यह वाहन जब से खरीदा गया कुछ दिन चलने के बाद वही खड़ा है । इसे चलाने की इच्छा शक्ति यदि सरकारों के पास होती तो करोड़ो रुपयों की लागत से वने ये वाहन गांव – गांव जाकर रोगिंयों की सेवा कर रहे होते लोगों को चिकित्सालय नही चिकित्सालय को रोगियों के पास भेजने के लिये यह चिकित्सा सचल वाहन खरीदे गये थे , योजना आकर्षक थी ।
खरीद के प्रति आकर्षण के बाद खरीदी गई सामग्री का धुँवा करना हो तो उत्तराखण्ड की अब तक बनी सरकारे व उनके अधिकारी सटीक उदाहरण है । हम सरकारी आफिसों के आसपास वाहनों की कतारें देख सकते है जिनके लिये चालक व पेट्रोल डीजल की ब्यवस्थाओं के लिये अब आफिसों बजट ही नही होता ,ना ही इनके विना काम अटक रहा है । जब जरूरत ही नहीथी तो कभाड बनाने के लिये ये क्यों खरीदे गये , सवाल तो पैदा होता ही है ?।