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एक आघ्यात्मिक विवेचना
अल्मोड़ा नगर मे इन दिनों रामलीलाओं का जोर , दुर्गा पंडालें में दर्शको की भीड़, पुतला कमेटियों की रात – रात भर मेहनत , एक ऐसी नजारा प्रस्तुत कर रहा है ,कि इस बार का दशहरा महोत्सव भी पिछले वर्षों की तरह ही आकर्षक होंगा ।
रामलीलाओं का मंचन कोई मनोरंजन नही आध्यात्मिकता की नाटकीय अभिब्यक्ति है । यह समाजवाद , प्रकृतिवाद व पूंजीवाद के प्रति एक द्वन्द है । राजा जनक (उत्पत्तिकर्त)चाहते है कि उनका दामाद(संयोगी ) कोई प्रकृति पालक विष्णु हो , प्रकृति मे शिव ही विनास के देवता है सृष्चि को विनास से ही भय है वे भीषण युद्ध का प्रतीक शिवधनुष को तोडकर सीता का व्याह करवाना चाहते है धनुष युद्ध का प्रतीक है जो युद्ध समाप्त कर सके वही सृष्ठि का पालक(विष्णु)हो सकता है वास्तव मे जनक विष्णु को ही अपना दामाद बनाना चाहते है ।राजा जनक की सभा में रावण भी है पर रावण धनुष तोड़ने के लिये नही युद्ध लडने के लिये ही उठाता है । राम व लक्ष्मण में ही वह क्षमता है जो इस धनुष को उठा सकतॆ है पर लक्ष्मण(शेषावतार पृथ्वी रक्षक ) भी इसे तोड नही सकते , यहां महर्षि बाल्मीकि की रचना की विशेषता है कि वह अपनी रचना में रावण(धन लोलुप) को कपटपूर्ण आकाशवाणी से सभा स्थल से बाहर जाने को विवस कर दिया जाता है ,रावण यहाँ पर भी अपनी वहिन (सूपनखा उपभोक्तावादी प्रबृति )के प्रति संवेदनशील है ।आकाशवाणी के कथनानुसार वह वहिन को प्राथमिकता देता है संकल्प लेता है कि वह सीता को लंका जरूर ले जायेगा ।( यहां भी सीता रूपी प्रकृति को महल मे रखना संम्भव नही है वह अशोक वाटिका बनवाता है )
जब जनक (उत्पत्तिकर्ता)की सभा में कोई भी शिवधनुष नही तोड़ पाता तब एक पिता को आत्मग्लानि होती है कि उसकी घोषणा के अनुरुप पुत्री का विवाह नही हुवा , राजा जनक दुखप्रकट करतॆ है , कहते है कि जिस धनुष को सीता उठा सकती ,इस पृथ्वी में उसे कोई हिला नही सका । उन्होंनें यह कैसी शर्त रख दी कि वेटी अविवाहित ही रह गई ,वे राजाओं को ललकारते हुवे कहते है कि इस धरा मे कोई क्षत्रिय नही बचा , जिससे सीता का ब्याह हो सके , तब शेषावकार लक्ष्मण यनि पृथ्वी मे हलचल होती है यहाँ बहुत से लोग शेष की अर्थ नाग से लेते है पर वास्तव मे लक्ष्मण पृथ्वी के उस चुम्बकीय शक्ति के प्रतीक है जो पृथ्वी को थामे रहती है वे राम से कहते है कि यह लज्जित करने वाली बात है कि इस पृथ्वी कोई ऐसा नही जो धनुष तोड़ सके उनमे (लक्ष्मण मे )इसे फैक देने की क्षमता है । ऱाम जिन्हें जीवन का प्रतीक माना जाता है , लक्ष्मण को आश्वस्त करते है कि सीता रूपी प्रकृति व राम रूपी जीवन का मिलन अवश्य होगा । जनक की वाटिका मे राम व सीता का मिलन तो पहले ही हो चुका बस धनुष की औपचारिका ही बाकी थी । अन्त मे विश्वामित्र यनि संसार के कल्याणकारक गुरु जीवन रूपी राम को आदेश देते है कि प्रकृति रूपी सीता कॆ मिलन की औपचारिकता पूरी कर जनक रूपी उत्पत्तिकर्ता व लक्ष्मण रूपी शेषावतार(पृथ्वी को थामे रखने वाली शक्ति ) की ब्यथा दूर करे , राम युद्ध के प्रतीक शिव धनुष को उठाते है लक्ष्मण पृथ्वी को थामे रखते है , धनुष टूट जाता है यानि प्रकृति व जीवन के बीच का संघर्ष इस धनुष के टूटते ही मिलन मे परिवर्तित हो जाता है , एक नई ब्यवस्था बनती है । पर बाधांये दूर नही होती ।परशुराम(वह शक्ति जो अयोग्य को पनपने से रोकती है ) साक्षात काल बनकर आ जाते है ।लक्ष्मण फिर से परेशान हो जाते है । पर राम यह सावित कर परशुराम को संन्तुष्ट व आस्वस्त करते है कि सृष्ठि के सब राक्षस रूपी खर पतवार दूर होंगे । अन्तत: रामरूपी जीवन का प्रकृति रूपी सीता से मिलन होता है पृकृति महल मे नही जंगल उगती है , राम सीता रूपी जीवन अयोध्य मे अंकुरित तो होता है पर विस्तार पाते ही जंगल बन जाता है राम सीता (फल फूल बीज अंकुर ) महल मे नही बन मे ही शोभायमान होते है , जहां पूंजीवादी रावण उन्हे नष्ट करने का उपाय सोचता रहता है ।प्रकृति पोषको को परेशान कर बन मे प्रकृति चूषकों को भेजते रहता है । यही राम इन्हें नष्ट करते रहते है ।राम व रावण का युद्ध जो युगों -युगों से जारी है जब तक पृकृति है जारी रहेगा । रावण का पुतला जलाने से यह समाप्त होने वाला नही है ।