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देश भर में इतिहास विषय पर आजादी के अमृत महोत्सव पर पर ब्याख्यान , शोध पत्र , वाचन , आलोचनायें, बामपन्थी लेखको पर ब्यंग सब हो रहे है । पर आश्चर्य की बात यह है कि एक इतिहास मिटाया भी जा रहा है । देश में आजादी के इतिहास में वे संगठन धूल धुसरित किये जा रहे है जिन्होंने आजादी का बीड़ा उठाया था।

इस सम्बन्ध में कई स्मारिकाये प्रकाशित हुई है जिसमें आजादी का अमृत महोत्सव पर कई लेख है । जिसमें मुख्यत; मुगलकाल को आधार बनाया गया है । आधुनिक नव इतिहासकार मुगलों के खिलाफ लड रहे , महाराणा प्रताप का खूब जिग्र करते है पर मुगलों के सेनापतियों पर खामोश हो जाते है । इतिहासकार यह तो मानते है कि अंग्रेजों ने अत्याचार किये पर उन अत्याचारें से सर्वाधिक पीड़ित समाज कौन सा था । इन बिषयो पर मुख्यत: इतिहास लेखक व उनके गाईड मौन है निम्नाकित विषयों पर शोध होना अभी भी लाजिमी है

1- भारत की शिक्षा ब्यवस्था पर मूगलों व अग्रेजों का हस्क्षक्षेप

2-राजनैतिक ब्यवस्था पर मुगलों व अंग्रेजों का हस्तक्षेप

3-अर्थब्यवस्था पर पर गुलाम भारत के शाषकों का हस्तक्षेप

4- गुलाम भारत मे जनस्वास्थ

5-गुलाम भारत में नागरिक अधिकार

6- गुलाम भारत में धार्मिक अधिकार

7-गुलाम भारत मे मुस्लिम व, ईसाई धर्म का प्रचार

8-गुलाम भारत में सस्कृत साहित्य का संस्कृत व हिन्दी में बिवादास्पद अनुवाद .

8- भारत मे समाज सुधार के आन्दोलन में आर्य समाज का योगदान व उसके , राजनीति , धार्मिक , व शिक्षा ब्यवस्था पर प्रभाव ,

9-भारत मे शिल्प का ह्रास के कारण व उसके फलस्वरूप शिल्पकारों की दयनीय हालात पर ऐतिहासिक दृष्ठिपात

यह कुछ बिन्दु है , जिसमे आजादी के अमृत महोत्सव के अन्तर्गत शोध पत्रों मे कोई सम्यक जानकारी नही आई , एक तरह से मोदी सरकार में जो नया इतिहास लिखा जा रहा है उसमें भी बहुत कुछ छिपाया जा रहा है ,।

यह बहुत ही आश्चर्य की बात है कि , आजादी के अमृत महोत्सव पर प्रकाशित कई स्मारिकाओं में जो अब तक जो सामग्री प्राप्त हुई उनमें भारतीय समाज सुधार आन्दोलन के नेताओं के नाम दर्ज तो किये है पर वे नेता यह आन्दोलन किस संगठन की प्रेरणा से चला रहे थे यह तत्थ्य षणयन्त्रकारी तरीके से हटा दिये गये । गोखले काग्रेस जो कार्य कर रही थी गांधी काग्रेस ने वे कार्य बन्द क्यों कराये क्या गाधी काग्रेस मे आर्य समाज का वह तबका नेपत्थ्य में नही गया जो गोखले काग्रेस मे सक्रिय था ।?

यदि स्पष्ठ तौर पर कहा जाय , तो विश्व के कई देशों व समूचे उत्तर भारत व गंगा के इर्द गिर्द के प्रदेशों मे सर्वाधिक लम्बे समय तक समाज सुधार के आन्दोलन चलाने वाला महर्षि दयानन्द द्वारा स्थापित आर्य समाज बामपन्थी इतिहासकारों की कलम से नदारत तो था ही अब दक्षिणपन्थी इतिहासकारों कलम से भी नदारत है । अल्मोड़ा में आयोजित दो दिवसीय इतिहास बिषय पर संगोष्ठी हुई शोधपत्र पढे गये ।एक स्मारिका निकाली गई उसमें समाज सुधारकों पर दृष्ठिपात किया गया , किन्तु जिस आर्य समाज के बैनर के नीचे ये आन्दोलन हुवे लेखन व शोध मे उसे 100% नजरअंदाज किया गया । हालांकि अकिथियों का स्वागत ओउम पट्टिकाओं से जरूर हुवा ।

अंग्रेजों के लिये वैश्विक चुनौती बन गया था आर्य समाज व वैदिक साहित्य

इतिहास की यदि पर्ते खोली जाय , को जबां बौद्ध दर्शन ने देश को शनै – शनै गुलामी की तरफ धकेला को आर्य संस्कृति ने लड़ने का एक नया दर्शन दिया । भारत मे यदि सनातन धर्म व उसकी जड़े बची है को इसमें शंकरातार्य संल्खा व 1875 के बाद आर्य समाज का योगदान है । अंग्रेजों के शासनकाल में जब सरकार ने अपने एक फऱमान पर अंग्रेजों के बनाये पाठ्यक्रम पर ही सिकूल संचालित करने का फरमान सुना दिया तो वर्णाश्रम ब्यवस्था पर संचालित सभी प्रकार के गुरुकुल समाप्त हो गये , तब देश में यदि किसी संस्था ने आगे बढकर काम किया ते वह आर्य समाज ही था ।

वैश्विक स्तर पर जिस देश में भारत के मजदूर ले जाये गये उन देशों के मजदूरों मे यदि किसी सस्था ने काम किया तो वह भी आर्य समाज ही था गांधी जी को दक्षिण अफ्रिका मे रंगभेद आम्दोलन के लिये बिक्तीय मदद भी आर्य समाज ने दी जर्मनी में हिटलर आजाद हुन्द फौज को जो मदद दी उसके मूल में भी आर्य समाज ही था , हुटलर ने रूस पर भी आक्रमण कर दिया ,जिससे हिचलर बामपन्थी इतिहासकारों का नम्बर वन दुष्मन था ।हिटलर ने जिस रैज को अपना मार्गदर्शक बनाया वह आर्य रेज ही था उन्होने आर्ये को खलनायक बनाया समझ में आता है पर दक्षिण पन्थी भा ज पा सरकार आदादी के अमृत महोत्सव से आर्य समाज के योगदान को क्यों नजरअदाज कर रही है यह समझ से परे है ।

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