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भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष डा राजेन्द्र प्रसाद का जन्म दिवस तीन दिसम्बर देश भर मे अधिवक्ता दिवस के रूप मे मनाया जाता है । इसदिवस पर न्यायालयों मे न्याय की प्रक्रिया को सहज व सरल बनाने की कोशिसो पर देश मे चर्चाये होती । भारतीय संबिधान मे वर्णित चैखम्बा राज के चारों पीलरो को अपने स्थान मे टिकाये रखना न्यायालय की जिम्मेदारी है अधिवक्ता इस जिम्मेदारी के महत्वपूर्ण स्तम्भ है ।

डा राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष होने के साथ साथ देश के प्रथम व द्वितीय राष्ट्रपति भी रहे उनका जन्म दिवस तीन दिसंबर को अधिवक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है। डाा राजेनिद्र प्रसाद नही चाहते थे कि अदालतों मे तारीख पर तारीख लगे वे चाहकते थे कि तारीख पर तारीख का सिलसिला खत्म होना चाहिए। सभी अधिवक्ताओं को इस दिन यह प्रण लेना चाहिये कि मुकदमो का समय से निस्तारण होना जरूरी है । नैनीताल उच्च न्यायालय के वरिष्ट अधिवक्ता जनपक्ष को प्रमुखता से उठाने वाले एड डी के जोशी ने बताया अधिवक्ता वादकारी को न्याय दिलाने में अहम भूमिका निभाता है। अधिवक्ता का सामाजिक दायित्व यह भी है कि उसे देशहित व समाजहित के लिये आगे आना चाहिये यही विचार उन्हे जनपक्ष को न्यायालय मे उठाने के लिये प्रेरित करता है ।वरिष्ठ अधिवक्ता गोविन्द भण्डारी बागेश्वर से कहते है डा. राजेंद्र प्रसाद ने भारतीय राजनीति एवं देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।वे संविधान सभा के अध्यक्ष थे जिसमे पन्द्रह समितियो ने मिलकर भारतीय संविधान के अलग – अलग पहलुवो पर विचारोपरान्त संबिधान को पारित किया था ।उनके त्याग व बलिदान को भूलाया नहीं जा सकता। वे कहते है कि कोर्ट मे तारीख पर तारीख लगने के बजाय त्वरित न्याय होना चाहिये अधिवक्ता समाज को दर्पण दिखाने का काम करता है। उन्हों उत्तराखण्ड अधिवक्ता संघ की ओर से डा राजेन्द्र प्रसाद को श्रद्धान्जली दी

उत्तराखण्ड के अधिवक्ताओ का भी राष्ट्रीय पटल पर महत्वपूर्ण योगदान है पं गोविन्द बल्लभ पन्त ने जहां आजादी से पूर्व देश की ब्यवस्थाओ को आकार देने की काम किया वही वे देश के गृहमन्त्री बने आजादी से पूर्व एडवोकेट दुर्गा दत्त जोशी(जज) ने 1817 सिगौली की शन्धि के तुरन्त बाद उत्तराखण्ड को पृथक राज का दर्जा देने की मांग की थी उन्होंने अंग्रेजो को याद दिलाया की कुमाँऊ की जनता ने उन्हें इसलिये सहयोग दिया कि वे इस पहाडी प्रदेश के हितों की रक्षा करेगे । अल्मोडा बार एसोलयसियेशन का यह शताब्दी वर्ष है । स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर राजनैतिक, सामाजिक क्षेत्र में अधिवक्ताओं का योगदान अहम रहा है।पंडित मोतीलाल नेहरू ने देश की आजादी मे प्रमुख योगदान दिया देश मे चेतना फैलाने में आगरा के अधिवक्ताओं का गौरवशाली इतिहास रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के पिता पंडित मोतीलाल नेहरू ने यहां पर वकालत की थी। उस समय हाईकोर्ट आगरा में था। बाद में हाईकोर्ट का स्थानांतरण इलाहाबाद होने पर नेहरू जी वहां चले गए। आगरा मे प्रथम कोर्ट का गठन 1832 में हुआ था पहले सिविल कोर्ट का निर्माण मुगलकाल में सन् 1832 में हुआ था।ये अदालतें सदर नियामत दीवानी अदालत कहलाती थी, जो हाईकोर्ट के समकक्ष होती थी। वर्ष 1865 से 68 तक हाईकोर्ट यहीं पर था। स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारियों का आगरा अड्डा था। इस कारण हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण रिकार्ड नष्ट होने की आशंका थी। इस कारण इलाहाबाद में हाईकोर्ट को स्थानांतरित किया गया। लखनऊ में बेंच बनाई गई। उसके बाद यहां की कोर्ट जिला अदालतें हो गईं। व्रिट्रिस भारत मे जनपद स्तर परअदालते खोली गई तब के वकीलो ने जनता को नियम कानूनो के प्रति जागरूक किया तथा जन बिरोधी कानूनों के प्रति जनता को आगाह भी किया।आजाद भारत मे राम मनोहर लोहिया के अवसान के बाद भी कई अधिवक्ता अब भी जनपक्ष की कानूनी व जमीनी लडाई लड रहे है जिसमे सुप्रिम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशान्त भूषण प्रमुख है उनके अलावा भी बहुत से लोग है जो जनपक्ष की लडाईयां लड रहे है । पर उनकी दलीय प्रतिबद्धता किसी से छुपी नही है ।

एड गोविन्द भण्डारी अध्यक्ष उत्तराखण्ड अधिवक्ता संघ

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