329 total views

दस दिसम्बर तयको अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है मानवाधिकारों की पहली पहल 1948 को की गई यह वैश्विक घोषणा और नए संयुक्त राष्ट्र की पहली प्रमुख उपलब्धियों में से एक,है चूँकि मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा की 10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा मे हुई । इस उद्घोषणा का सम्मान करने के लिए तिथि का चयन किया गया था। मानवाधिकार दिवस की औपचारिक स्थापना 4 दिसंबर 1950 को महासभा की 317वीं पूर्ण बैठक में हुई, जब महासभा ने संकल्प 423 (V) की घोषणा की, जिसमें सभी सदस्य राज्यों और किसी भी अन्य इच्छुक संगठनों को इस दिन को मनाने के लिए आमंत्रित किया गया था।

सामान्यत: तानाशाह देश मानवाधिकारों का पालन नही करते । पूँजिवादी विकास के लिये रोडा बने कानूनों को सिथिल करते हुवे भी मानवाधिकारों का उलंघन करते है।

मानवाधिकार दिवस का इतिहास

संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने 10 दिसंबर, 1948 को विश्व मानवाधिकार घोषणा पत्र जारी कर प्रथम बार मानवों के अधिकार के बारे में बात रखी थी। हालांकि आधिकारिक तौर पर इस दिन की घोषणा 1950 में हुई। इस दिन अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस’ (International Human Rights Day) मनाने के लिए असेंबली ने सभी देशों को आमंत्रित किया, जिसके बाद असेंबली ने 423 (V) रेज़्योलुशन पास कर सभी देशों और संबंधित संगठनों को इस दिन को मनाने की सूचना जारी की थी। मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा 500 से ज्यादा भाषाओं में उपलब्ध हैं। वहीं, भारत में 28 सितंबर, 1993 से मानव अधिकार कानून अमल में लाया गया था।

क्‍यों मनाया जाता है अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस?

विश्व रो एक सूत्र मे बांधने व नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिये मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है ये नियम ब्यक्ति या उनके समुहों को दुनिया में स्वतंत्रता के साथ जीवन यापन करने की छूट देते है । किसी व्यक्ति के साथ किसी भी कीमत पर कोई भेदभाव न हो, समस्या न हो, सब शांति से खुशी- खुशी अपना जीवन जी सकें, इसलिए मानवाधिकारों का निर्माण हुआ। मानवाधिकार दिवस (Human Rights Day) लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से मनाया जाता है। मानव अधिकार का मतलब मनुष्यों को वो सभी अधिकार देना है, जो व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता एवं प्रतिष्ठा से जुड़े हुए हैं। यह सभी अधिकार भारतीय संविधान के भाग-तीन में मूलभूत अधिकारों के नाम से मौजूद हैं और इन अधिकारों का उल्लंघन करने वालों को अदालत द्वारा सजा दी जाती है। मानवाधिकार में स्वास्थ्य, आर्थिक सामाजिक, और शिक्षा का अधिकार भी शामिल है। मानवाधिकार वे मूलभूत नैसर्गिक अधिकार हैं जिनसे मनुष्य को नस्ल, जाति, राष्ट्रीयता, धर्म, लिंग आदि के आधार पर वंचित या प्रताड़ित नहीं किया जा सकता।

भारत में मानवाधिकार

भारत में 12 अक्टूबर 1993 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया, जिसके बाद से मानवाधिकार आयोग राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कार्य क्षेत्रों में भी काम करता है। जैसे मजदूरी, HIV एड्स, हेल्थ, बाल विवाह, महिला अधिकार। मानवाधिकार आयोग का काम ज्यादा से ज्यादा लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना है। हालांकि भारत में अगर मानवाधिकारों की बात की जाए तो यह साफ है कि आज भी बहुत सारे लोगों को मानवाधिकार के बारे में जानकारी ही नहीं है, जबकि वे उनके खुद के अधिकार हैं। पिछड़े हुए राज्यों एवं गांवों में जहां साक्षरता का स्तर थोड़ा कम है, वहां मानवाधिकारों का हनन होना आम बात है

भारत में नागरिकों को मिले मूल अधिकार

  1. समता या समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18)
  2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22)
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24)
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28)
  5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30)
  6. संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 32)

भारत के नागरिकों के मौलिक कर्तव्य

  1. देश के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं आदर करे।
  2. राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे।
  3. देश की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे।
  4. अपनी पूरी क्षमता से देश की रक्षा करे।
  5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे।
  6. हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका निर्माण करे।
  7. प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करे।
  8. नागरिक अपने अंदर वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करे।
  9. नागरिक सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे।
  10. सामूहिक एवं व्यक्तिगत गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे।
  11. 6 से 14 वर्ष के बच्चों को माता-पिता या संरक्षक द्वारा प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना

इस दिन को आम तौर पर उच्च-स्तरीय राजनीतिक सम्मेलनों और बैठकों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों और मानवाधिकारों के मुद्दों से संबंधित प्रदर्शनियों द्वारा चिह्नित किया जाता है। इसके अलावा, यह परंपरागत रूप से 10 दिसंबर को मानवाधिकारों के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र पुरस्कार और नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। मानवाधिकार के क्षेत्र में सक्रिय कई सरकारी और गैर-सरकारी संगठन भी इस दिन को मनाने के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित करते हैं, जैसा कि कई नागरिक और सामाजिक-कारण संगठन करते हैं।

रहने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता सैयरागुल सौबाय को देश के पश्चिमी क्षेत्र में नृजातीय अल्पसंख्यकों पर मानवाधिकार हनन को उजागर करने के लिए 2021 नुरेमबर्ग अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। जर्मनी की मानवाधिकारों की रक्षक संस्था ने एक बयान में सयारगुल सौयबय को इस अवार्ड की पुष्टि करते हुए कहा कि नूर्नबर्ग सिटी ऑफ ह्यूमन राइट्स हर साल कई पहलुओं में विशेष कार्य करने वाले एक्टिविस्ट को सम्मानित करती है और इस साल यह सयारगुल को दिया जा रहा है।

राइट्स बॉडी ने कहा कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा उसे धमकाने के प्रयासों के बावजूद उन्होंने निडर होकर दुनिया को बताया कि डिटेंशन सेंटरों के उन शिविरों में उइगरों के साथ क्या-क्या अत्याचार होते हैं और चीन सरकार की वास्तव में क्या योजना बना रही है।”राइट्स बॉडी के इस फैसले का स्वागत करते हुए विश्व उईगर कांग्रेस ने कहा कि यह उन लोगों व महिलाओं को चीन के खिलाफ आवाज उठाने का हौंसला देगा जो चीन के कैंपों में कैद हैं ।

इस वर्ष मानवाधिकारो का सबसे प्रमुख मुद्दा चीन मे उईगर मुसलमानों के अधिकार को लेकर बना। बता दें कि ह्यूमन राइट्स वॉच, एमनेस्टी इंटरनेशनल और मानवाधिकारों के लिए अंतर्राष्ट्रीय सेवा सहित 300 से अधिक सिविल सोसाइटी समूह संयुक्त राष्ट्र से चीनी सरकार द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन का पड़ताल करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय प्रहरी स्थापित करने का आग्रह कर रहे हैं। किन्तु चून सरकार का मानना है कि उसके देश में मानवाधिकार का उलंघन नही हो रहा ।

Leave a Reply

Your email address will not be published.