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अपने उत्तराखण्ड में ज्यों – ज्यों चुनाव नजदिक आ रहे है नेता व जनता दोंनो को लिये ही दाने फैके जा रहे है ताकि उन्हे फसाकर अपनी राजनैतिक गोटियां फिट की जा सके । उत्तराखण्ड भारत का एक ऐसा राज्य बन गया है । जहां राजनैतिक दलो के ग्राम प्रधान बनने की योग्यता रखने वाले नेता भी अपने को बिधायक का उम्मीदवार समझ रहे है । भा ज पा मे वह हर कोई ब्यक्ति उम्मीदवार है । जिसने संघ मे परेड की है किन्तु दूसरे दलों से भा ज पा मे शामिल हुवे नेताओं के लिये भा ज पा मे भी अवसर है पर सी एम वही बनेगा जो संघ परिवार का सदस्य होंगा बिगत पांच साल मे संघ ने अपने तीन स्वंसेवको को मुख्यमन्त्री पद से नवाजा । तीनों मे सबसे काबिल सी एम के तौर पर हरीश धामी अपने को स्थापित करने का प्रयास कर रहे है। कई योजनाओ का शिलान्यास व पुरानी योजनाओं का लोकार्पण रिक्त पदों पर बिज्ञप्तियां , आशा , आंगनवाडी होमगार्डो के बाद भोजन माताओ रा मानदेय बढाकर धामी सरकार पुन: सत्ता मे आमे की कोशिसे कर रही है इस बार सामप्रदायिक मुद्दे कमजोर नजर आऩरहे है।

महंगाई कौरोना मे अवरुद्ध विकास , गोल्डन कार्ड मे कटौती ,किन्तु उपचार की कोई गारंन्टी ना मिलने से सरकार के प्रति उपजी नाराजगी को लपेटने हेतु काग्रेस चारा डाल रही है तो बी जे पी भी कोई कम नही वह विकास के दाने बिखेर रही है ।मुफ्त राशन के बाद विकास के शिलान्यास हो रहे है। वही काग्रेस में भी कई ध्रुव काम कर रहे है सबसे बडी बात यह है कि कांग्रेस मे सी एम के उम्मीदवार हरीश रावत एक दलित सी एम का नारा उछालने के बाद स्वयं केदारनाथ मे भगवान केदारनाथ से सी एम बनने की मन्नत मांग कर आये है । उन्होंनें पार्टी के नेताओं को आस्वस्त किया है कि यदि वे टिकट से वंचित भी रह गये तो घबरायेे नही प्रदेश मे बिधान परिसद का गठन करेगे । हरीश रावत अपने कुनबे को मजबूत कर रहे है । पार्टी छोड़कर गये लोगो की पार्टी मे वापसी करा रहे है ।

छोटा सा राज्य बिधायकों की भारी भरकम सेलरी देने मेंं देश का दूसरा बडा प्रदेश , उत्तराखण्ड दो – दो राजधानियों का बोझ सभाल रहा है । अब नेताओं के लिये कुछ नये पद बिधान परिसद के माध्यम से सृजित करने की घोषणा राज्य को किस ओर ले जायेगी कह नही सकते ।

इस बार भी अपने परम्परागत तौर तरीकों के साथ क्षेंत्रीय दल भी अपनेव को अजमाने के लिये तैयार बैठे है । राज्य की लडाई लडनेे वाले यू के डी , उ प पा व जन संगठन उ लो वा , महिला मंन्च , एक साथ एक मन्च मे नही है । इसकी जो कोशिसें हुई उसमें सफलता नही मिल रही इसका लाभ उठाने के लिये , आम आदमी पार्टी मैदान मे आ रही है

इन दिनों काग्रेस व बी जे पी मे अपनी महत्वाकांक्षा से बंचित रह गये या फिर उत्तराखण्ड मे क्षेत्रीय दलों मे नेतृत्व संकट से जूझ रहे लोगों के लिये आम आदमी पार्टी एक नया बिकल्प प्रस्तुत कर रही है । आम आदमी पार्टी के गठन मे सक्रिय लोग अब पीछे हटाये जा रहे है शिद्धान्त आज की राजनीति मे केवल किसी दल को स्थापित करने तक ही काम करते है ।।फिर धीरे – धीरे अवसरवादी सैद्धान्तिक लोंगो को पीछे धकेल कर पार्टी मे काबिज हो जाते है । यू केडी के बाद आम आदमी पार्टी मे भी यही हो रहा है । बडे – बडे संस्थापक नेताओ के पार्टी छोड देने के बाद अब अरविन्द केजरीवाल को उत्तराखण्ड मे दिल्ली माडल की तर्ज पर स्थापित करने के प्रयास हो रहे है। पार्टी उत्तराखण्ड मे इन चुनाओं मे अपने को साबित करने की कोशिसों मे लगी है । अपने चुनावी घोषणाओं के हिसाब से आम आदमी पार्टी प्रदेश में अब्बल दर्जे पर है । अजय कोठियाल जैसे कर्मठ सैनिक को सामने लाने के बाद धामी सरकार सकते मे है ।सरकार ने शहीद सैनिक सम्मान यात्रा निकाल कर भूतपूर्व सैनिको केे दिल जीतने के प्रयास किये है । देखना बाकी है कि ऊट किस करवट बैठता है फिरहाल यह बक्त ही बतायेगा कि जनता मुफ्त राशन का चुनाव करती है या मुफ्त बिजली या तीर्थ यात्राओ का ।”क्या वह प्रदेश मे एक और बिधान परिसद देखना चाहता है’ ।कुछ ही महिने शेष है। चुनाव सामने है। देखना यह भी है क्या पिछले चुनाव की तरह इस बार निर्दलीय व नोटा क्या भूमिका निभाता हैं पर्वतीय अस्मितता का प्रतीक गैरसैण स्थाई राजधानी का मुद्दा कितना प्रभावी होता है।यह मुद्दा लोगो के जेहन में अवश्य है ।

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