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उत्तराखण्ड मे बी जे पी सरकार ने सडक परिवहन की बडी- बडी परियोजनाओ को मंजूरी दी है इन पर काम भी चल रहा है । परन्तु पहाडों के मिजाज के समझे बिना बनाई गई ये परियोजनाये जी का जंजाल बन गई है । आल वेदर रोड केन्द्र सरकार की एक महत्वांकांक्षी परियोजना है । इस पर केन्द्र सरकार का सडक परिवहन मंन्त्रालय हजारो करोड रुपये खर्च कर चुका है पर जिस प्रकार पहाड दरक रहे है । इससे स्पष्ठ होता है कि पहाडो मे उस तरह के निर्माण कार्यो मे विशेषज्ञ व भू वैज्ञानिको की सलाह नही ली जा रही य़ा सलाह मानी ही नही जा रही है । सडक मंत्रलय आल वेदर रोड की चौडाई बारह मीटर तक कर रहा है । गढवाल की खडी पहाडियो के बीच बारह मीटर सडक बनाने के लिये चौडाई मे पहाडों की कटिंग के लिये ,काफी उचाई तक पहाडो की काटना जरूरी है । सूत्रो के अनुसार इसी पहलू को लेकर उत्तराखण्ड के कई पर्यावरण बिद सुप्रिम कोर्ट गये । सुप्रिम कोर्ट ने विशेषज्ञो की सलाह को मानते हुवे केन्द्र सरकार को निर्देश दिये कि सडक की चौडाई बारह मीटर के बजाय सात मीटर किया जाय । इसके लिये पी एस आई के निदेशक रवि चौपडा की अध्यक्षता मे एक निगरानी समिति बनाई गई । निगरानी समिति ने जब सडक मन्त्रालय से इसे सुप्रिम कोर्ट के दिशा निर्देश परसात मीटर करने पर चर्चा की तो सडक मन्त्रालय अब तक किये गये कार्य का हवाला देते हुवे कहता है कि सडक बारह मीटर चौडाई तक खोदी जा चुकी है । इस नुक्ताछीनी का परिणाम यह है कि चार धाम व चायना बार्डर को जोडने वाली आल वेदर रोड सीमान्त क्षेत्रो की आसान पहुंच व चार धाम यात्रा के लिये जी का जंजाल बन चुकी है । अब भी वक्त है सरकार को ठेकेदारो के बजाय विशेषज्ञो की सलाह मान लेनी चाहिये । पडाडो मे कटिंग के बजाय खड्ड की तरफ दिवार व पीलरो की तकनीकि अपनाकर काम करना चाहिये ताकि चार धाम यात्र व चायना सीमान्त तक पहुंच आसान हो सके ।

दरकते पहाड

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