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इन दिनों उत्तराखण्ड़ में भर्ती घोटालो का जोर है 9 नवम्बर सन् 2000 को जब उत्तराखण्ड राज्य अस्तित्व में आया तो इसमें शामिल मैदानी जनपदों को राज से बाहर निकलने की छटपटाहट थी । इसी छटपटाहट को दूर करने के लिये , तब की बी जे पी की केन्द्र सरकार ने नित्यानन्द स्वामी को राज्य की मुख्यमन्त्री बनाकर भेजा । उत्तराखण्ड राज्य के नाम पर चलाृा गये आन्दोलन के बाद जब उत्तरांचल नाम से पाज्य बना तो आन्दोलनकारी नाम व राजधानी क् नाम पर उलझ तर रह गये , भगत सिंह कोस्यारी राज्य के सी एम बने बी जे पी चुनाव हार गई । काग्रेस सत्ता में आई एन डी तिवारी के रूप मे प्रदेश को एक मझा हुवा राजनैतिक खिलाड़ी मिला ।तिवारी देश की राजमीति के मझे खिलाड़ी थे उनके नेतृत्व मे राज्य मे उद्योंगो की नीव पड़ी , कई आज भी चल रहै । भष्टाचार की नीव भी उसीी दौरान पड़ी आन्दोलनकारियों को पेंन्शन अफसरो का प्रमोशन हेतु ढाचांगत परिवर्तन कई ऐसे काम तिवारी कर गये जिनसे आगे आकर एक परिपाटी बन गई ।इसके बाज भी अह तक के सभी मुख्यमन्त्रियों में एन डी तिवारी ही सबसे अब्बल सी एम माने जाते है ।तिवारी पल राज्य आन्दोलनकारियों के साथ ही मैदानी जनपदों का भारी दबाव था , राज्य का नाम बदल कर उत्तराखण्ड कर दिया पर राजधानी गैरसैण नही बनी , उन्होंने तुष्टीकरण

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