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मध्यप्रदेश के सीहोर में कथावाचक प्रदीप मिश्रा के रुद्राक्ष महोत्सव में लाखों की भीड़ में  भगदड़ मचाने वाले कोई और नही वे लोग थे जो चमत्कार को नमस्कार करने गये थे उन्हे अभिमन्त्पित रुदांक्ष की आवश्यकता थी   इसीलिये मेले मे लाखों की भीड़ रुद्रांक्ष   लेने गई  ।कथावाचक प्रदीप मिश्रा को भी यह एहसास नही रहा होगा कि इतनी बड़ी भीड़ रुद्राक्ष महोत्सव मे पहुंच जायेगी शासन-प्रशासन पर  भी बड़ी जिम्मेदारी थी कि वह कानून व  ब्यवस्था  को दुरुस्त करें किन्तु मेला  अब्यवस्थाओं की भेंट चढ  गया ।

लोगों में ब्याप्त  विस्वास का नतीजा है यह भीड़

इन दिनों  धार्मिक जगत में एक बहस है कि चमत्कार क्या होते है ?।  क्या कोई चमत्कार किसी का जीवन लौटा  सकता है , किसी ब्यक्ति को कर्म बन्धनों  से मुक्त कर सकता है , धार्मिक जगत मे इस बात को लेकर काफी विवाद है ।  कुछ लोग कहते है कि हां यह हो सकता है  कुछ कहते है कि ना यह नही हो सकता है । शास्त्रों का  मत है  कि चमत्कार कोई मनुष्य कभी नही कर लकता ईश्वर सर्वशक्तिमान है वह सृजन व विनास करने मे समर्थ है पर उसका कोई भी कार्य अकारण व अवैज्ञानिक नही है भलेहि आम वोग उस वैज्ञानिकता से अपरिचित होते है ।

क्यों करते है चमत्कारों पर यकीन

सामान्यत:  कई मानसिक रोगी  काल्पनिक बातों को सोच- सोच कर  या किसी घटमाकृम रे बसीभूत होकर सोच -सोच कर  परेशान व रोगी हों जाते है , उन्हे अपनी सोच को सच सावित करने के लिये एक ऐसे मध्यस्थ की आवश्यकता होती है जो मनोरेगी पर घटित हो रही घटनाओं का उल्लेख व निवारण कर सके  । मन की बातों का निवारण करने के  कई  तरीके हो सके है , एक तरीका है कि  उन्हें औषधि देकर  सोचने की प्रबृति रोकी जाय  दूसरा तपीका है कि शौक (भय ) दिखाकर उनकी सोच बदली जाय , कीसरा तरीरा बै उनकी मन की बात उनरे सामने  रखी जाय ताकि पोगी भरोषा  कर सके  पांचवा तरीरा है कि उसकी सोच बदलने के लिये कोई वस्तु महत्वपूर्ण बताकर  से उनकी  सोच  उसकी तरफ लगा दी  जाय , या फिर किसी ब्यक्ति को चमत्कारी बता कर उसके पास जाया जाय ,। वास्तव मे यह  कोई चमत्कार  नही है ।  यह मनोविज्ञान की एक प्रक्रिया व सकारात्मक उर्जाओं का नतीजा है ।

क्या औषधियां इन रोगों का उपचार नही कर सकती ?

आयुर्वेद मे  कई  औषधिया है कुछ खाई जाती है  और कुछ लगाई जाती है ,।कुछ सूंघी जाती है , कुछ पहनी जाती है ।  सनातन धर्म मे उपचार की इन परम्पराओं को  आयुर्वैदिक उपचार कहा गया है  । सूंघकर उपचार करने के लिये औषधियों से  हवन किया जाता है  खाकर उपचार के लिये चूर्ण व गोलिया  सिरप बनाई  जाती है ,  ठोस स्पर्स के लिये अंगूठिया  मालाये पहनी जाती है . ।  चूंकी सबको सबकी जानकारी  नही होती लोंग जानकारों के पास जाने के  लिये  बाध्य हो जाते है ।  रुदांक्ष भी एक अनेकों बीजों की तरह ही है पर लोंगों की मान्यता है कि  इसमें  चुम्बकीय शक्ति  अधिक  है  । लोग इसी को   पाने  के  लिये इतनी बड़ी संख्या  में रुदांक्ष मेले मे गये थे । वहां भगदड़ मच गई कुछ घायल हो गये कुछ  मौत के मुह ंे चवे गये ।

बागेश्वर धाम में भी बढ रही है भक्तों की भीड़

  मनोविकार अशान्त जीवन  को दूर करने के लिये काउन्सलिंग जरूरी है यह विस्वास  पर आधारित है , ना कि डिग्री पर स्कूली शिक्षा से इसका ज्यादा सम्बन्ध नही है । हमापे उक्तराखण्ड़ मे भी पस्टन करने वाले पंण्ड़ित नाचने वाले डंगरिये -जगरिये , , भविष्य व भूतकाल बताने वाले  हस्तरेखा शास्त्री जगह -जगह बैठे ही रहके है , हजारों चिकित्सक  , सब कुछ है पर आज तक कोई किसी को जिन्दा नही कर पाये , सुख -दुख जीवन मृत्यु सब एक ब्यवस्था के अधीन है । इसके असर को चिकित्सक मनो चिकित्सक धर्म गुरु मौलवी पादरी , कम या ज्यादा कर सकते है पर असर को बेअसर नही कर सकते विमारियों का रूपान्तरण होते रहता है , अन्तत: यह सब सबकों मृत्यु तक खीच कर लाते ही हैं । सबकों अपना उपचार अवश्य करना चाहिये पर अमरता की चाहत नही रखनी चाहिये , भीड के बदाय एकान्त ज्यादा सकून देगा । शास्त्र कर्म के लिये प्रेरित करते है सत्य व निष्ठा की वरालत करते है मनोरोगों से बचने के उपाय बताते है । पाखण्ड़ो व चमत्कारों मे पडकर भी जीवन अपने समय पर ही समाप्त हो जाता है ।

अल्मोड़ा मे मुरगन का चमत्कार

लगभग पन्द्रह वर्ष पूर्व की बात है , एक ब्यापारी जिसका नाम मुरगन था अल्मोड़ा पहुंता पहले पहले प्वास्टिक की हल्की फुल्का सामान बेचने लगा फिर एक दिन पूर्व सामान के लिये एडवान्स जमां करमे पर दूसरे दिन दुगुनी रीमत का लामान देने लगा , फिर दुगुना तरमे रे दिन बढ कर पन्द्रह दिन हो गये वोग अपने लाखों रूपये दुगुना करने के लालच में उसके पास पैसा जमा करने लगे करोड़ो रूपये उसके पास जमा हो गये , एक दिन हाथ हिलाता हुवा मुरगन शहर से बिदा हो गया ,मूर्ख लोग इस यकीन रहे रहे कि मुरगन उनकी जमा की गई राशि की दुगुनी राशि देने जरूर आयेगा ना तो मुरगन आया ना ही धनराशि । जो लाभ ले चुके थे वे अपनी होशियारी पर जो धन डुबा चुके वे अपने मूर्खता पर चुप है , ।

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