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भारत देश मे लोंगो ने भलेहि धर्म बदल लिये वे सनातनी से हिन्दु , मुस्लिम , सिख ईसाई , अब नव बौद्ध भी हो रहे है ,पर ईतिहास की यह सच्चाई है कि वे वर्णाश्रम धर्म की जातीय ब्यवस्था को नही बदल सके । इसका कारण परम्परागत रोजगार ही तो है , ।
बहुत से लोग जो अब परम्परागत ब्यावसायों में नही है अपितु अपमे ब्यावसाय बदल चुके है । उन्हें परम्परागत ब्यावसायों को अपनाने मे जो सुविधाये व खानदानी प्रशिक्षण मिलता था स्कूली शिक्षा में वह सुविधा प्राप्त नही है , । खानदानी व परम्परागत शिक्षा का सर्वाधिक विरोध वे लोग कर रहे है जो परम्परागत रूप से सरकारी रोजगार से पीढी दर पीढी जुड़ गये है या फिर कुछ वे लोग भी है जो औद्योगिक क्रान्ति के बाद नव धनाढ्य बन गये या अब उद्योंगो के साथ जुड़़ गये है ,। यह एक तरह से भाकत में पांचवा वर्ग बन गया है जो जाति धर्म , वर्ण से परे एक नया वर्ग य है , पर इस वर्ग को हम शंकर वर्ण भी कह सकते है , यह वर्ण मानवीय सम्वेदनाओं से नही बल्कि आर्थिक संम्वेदनाओं व उपभोग की प्रधानताओं से चलता है ज्यों ही आर्थिक हित या उपभोग के हित टकराते है यह एक दूसरे से दूर हो जाते है ।
वर्णा श्रम धर्म सह अस्तित्व के चार सिद्धान्तों की एक वैज्ञानिक ब्यवस्था है । जिसमें सोच, प्रवन्धन , तकनीकि व ब्यापार प्रमुख कारण है यह समाज की एक स्वचालित ब्यवस्था है ।
वर्णाश्रम धर्म के लोप हो जाने से हानियां
वर्णाश्रम धर्म के लोप हो जाने से सर्वाधिक नुकसान श्रमिक सेक्टर को हुवा है कुशल श्रमिक मिलना अब कठिन हो गया है यह समस्या केवल भारत की समस्या नही अपितु एक वैश्विक समस्या है । यद्यपि रोजगार सेक्टर में