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खाड़ी देशों के साथ हालिया सामप्रदायिक विवाद को देखकर यह अनुमान लगाना कठिन नही है कि धर्म आचार्यों विद्वानों के हाथों से फिसलकर , चाटुकारों व राजनैतिक दलालों के हाथों मे चला गया है । सत्ता संघर्षों को धर्म संघर्ष बताने से तो राजनीकि ही होनी है । पर इसका समाज मे क्या लाभ होना है ।इसे जानने के लिये सनातन को समझना जरूरी है । जो सगैव वर्तमान में ही जिये पिछली गलतियों से सीखे आहे बढमे के लिये वैज्ञानिक अनंसंधान करे उसे आर्य सनातन संस्कृति कहते है।
इस्लाम को सत्ता परिवर्तन के लिये जाना जाता है । , ईस्लामी सत्ता का सबसे प्रमुख विचार नवी से होते हुवे खलीफा तक ,फिर विश्व राजनैतिक पटल पर पहुंचा , ईस्लाम ने दुनियां की कई राजनैतिक सत्ताओं को चकनाचूर किया , तो कई देशों मे सत्ताये कायम की । इसके कारण कई धर्म दुनियां के नक्से से गायब हो गये तो कई धर्मों से इस्लाम आज भी लड़ रहा है ।

भारत मे दूरदर्शी आचार्य शंकर ने सनातन धर्म को एक माला मे गूँथ दिया , वर्ण ब्यवस्धा ने उसमे राष्ट्रीय दायित्व के बोध भरे यही कारण था कि गुलामी के बाद भी यह कायम ही नही रहा अपितु जो इसे छोडकर गया वह यहां से अपने वर्ण के संस्कार लेकर भी गया । सनातन धर्म को भलेहि दुनियां के कई देशों ने मिटा गिया गया हो, पर यह मिटा नही यह धर्म दुनिया के कई देशों मे अपने आचार्यो के बल पर कायम ही नही है अपितु फैल भी रहा है । शंकराचार्यों की नागा सेना जाटों व गुर्जरों की खाप पंचायते राजपूतों का गौरव ,ब्राह्मणो की धर्म शिक्षा बैश्यों का ब्यापार , व शिल्पकार तथा किसानों का शिल्प व परिश्रम से देश टिका रहा , भारत मे सनातन धर्म किसी हिन्दु राजा की वजह से नही शंकराचार्य की नागा सेना व वर्ण ब्यवस्था के कारण जीवित रहा । नागा (अखाड़ो)की सेनाओं को ना तो कभी मुगलों ने छेड़ा ना ही अंग्रेजों ने जब – जब छेड़ा मुह की ही खाई जब भी किसी ने उनके धर्म पर आघात किया ,तब -तब ,ये अखाडॉे उन पर टूट पड़ते थे जिस कारण सनातन धर्म बचा रहा ।अब भारत मे भी इस्लाम की तरह धर्म का पूर्ण राजनीतिकरण किये जाने के प्रयास हो रहे है । औरंगजेब मे बहुसंख्यक हिन्दुओं को कुचल कर इस्लामिक राज्य बनाने की कोशिस की किन्तु इतिहास में यह भी सत्य है कि औरंगजेब के बाद ईस्लामिक सत्ता भारत से उखड़ गई ।
भारत का समाज एक जटिल समाज है जिसे बदलने के कई प्रयोग हुवे किन्तु इसका सम्बन्ध प्रकृति से होने के कारण यह राजनीति से पोषित नही है । सनातन धर्म के मठ मन्दिर राजकोष में हजारों सालों से अपना योगदान देते आ रहे है । जबकि इस्लाम व ईसाई धर्म सत्ताओं से अपना अंश लेते रहे ये आज भी ले रहे है।
सनातन सार तो यही है कि” सार को गही रहे थोथा देय उड़ाय,; यह धर्म प्रकृति के परिवर्तन तथा मुनियों के अनुसंधानों को अपने आप मे समेट कर चलता है ।वेद इसके आधारभूत ग्रन्थ है
सनातन संस्कृति की दो चार बातें भी हम समझ लें,या अपना लें तो हमारी अनेक समस्याएं सुलझ जायेगी । आजकल का नशेड़ी गजेड़ी भगेड़ी सनातन धर्म के आदर्श नही है । धर्म की रक्षा के लिये बना यह समुदाय आज पाखण्ड़ का पर्याय बन गये है। ऋषि संस्कृति को समझने की कोशिशे ही सनातन तत्व हैं।
गुरूकुल सनातन संस्कृति की पहचान रहे है ।जिसे मैकाले की शिक्षा व मदरसों ने समाप्त कर दिया । बच्चों को घरों से दूर ,आचार्यों के संरक्षण मे बाहर पढ़ने भेजना ही सनातन धर्म की मजबूती का आधार है। पर यदि इसमे सरकारे हस्तक्षेप करें तो लक्ष्य हासिल नही हो सकता ,यही पर सरकार अहम् हो जाती है । सनातन धर्म के छ आधारभूत व चार वैदिक दर्शन है । योग दर्शन के अनुसार मूलाधार और सम्पूर्ण चक्र सिस्टम को समझना,आधुनिक युग में ग्रन्थियां की खोज ही सनातन तत्व है। मिंमाशा दर्शन के अनुसार विज्ञान, जीवन और प्रकृति के रहस्यों को तार्किक ढंग से समझना जानना ही सनातन तत्व हैं।
आजकल ईश्वर को अपने शरीर आत्मा प्रकृति से बाहर खोजना आस्थाओं का जंजाल बन गया है । हिन्दू सोच का नतीजा है जो एक बाजारू उत्पाद बन गया है । सनातन धर्म का इस सोच से कोई लेना देना नही है, किन्तु इसी उत्पाद व इससे उत्पन्न ब्यावसायिक लाभों ने सनातन धर्म को आम लोंगो मे बनाये भी रखा है ।सवाल,तर्क और विमर्श सनातन तत्व हैं।
दुनिया का कोई भी विषय अछूत, तर्क से बाहर और छुपाने योग्य नहीं हैं यह घोषणा ही सनातन तत्व हैं।किन्तु अन्धविस्वास धर्म की बैखाखी नही बल्कि झूठ का कारोबार है ।झूठ का जाल ज्यादा दिन नहीं चलता ,सत्य का अनुसंधान ही सनातन तत्व हैं।आत्मा, परलोक, ईश्वर,समाज सेवा, किसी मन्दिर मे मूर्ति की अराधना से पहले हो तो यही सनातन तत्व है।शरीर को वलिष्ट बनाना उसे परिवारिक व सामाजिक उत्तरदायित्व मे लगाना यही सनातन धर्म है।
किसी मन्दिर मे सनातन धर्म की जय बोलने से , राजनैतिक नेताओं का भाटचारण करने से सनातन धर्म की रक्षा नही होगी। राजनाति एक स्वार्थ परक कर्म है जिसमे राजनैतिज्ञ धर्म को एक बैशाखी की तरह प्रयोग करते है । जबकि प्रचंड पुरुषार्थ से ही सनातन धर्म की रक्षा हो सकती है।
सनातन धर्म नारों से नहीं सनातन विज्ञान से ही जीवित है जो इन वैज्ञानिक परम्पराओं को समाज से जोड देता है वही ऋषि है ।
यह धारणा ही निर्मूल है कि कोई अवतार किसी की रक्षा करेगा ।यदि किसी ने किसी कालखण्ड़ मे हमारी संस्कृति की रक्षा की है तो उसके चरित्र के बजाय चित्र को पूजने से कल्याण होने वाला नही है । यदि हमें धर्म के नाम पर स्थापित इस्लामिक राजनैतिक दलों से लडना है तो इसका बिकल्प हिन्दुओं के नाम पर स्थापित राजनैतिक दल नही है .।यह तो निजि लाभ के लिये धर्म का दोहन वैसे ही कर रहे है। जैसे इस्लामिक खलीफा ।अवतारवाद, यानि कोई आयेगा हमारी रक्षा करेगा यह विचार ही लोगों को कायर व भाग्यवादी बनाता है यह हिन्दूओं के लिये दुर्भाग्यपूर्ण है ।मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि सनातन कोई युग,कालखंड विशेष नहीं हैं ।
सनातन का मतलब है सजग बर्तमान , ना कि काल्पनिक भविष्य , सनातन धर्मावलम्बी हमेशा वर्तमान मे ही जीता है , कर्म मे लीन रहता है । वनों मे बिचरने वाले मुनि भी ब्यर्थ नही बल्कि प्रकृति के उपयोगी बनस्पतियों की खोंज व उस पर अनुसंधान करते है ।

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