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सुप्रिम कोर्ट द्वारा केन्द्र सरकार से यह पूछे जाने पर कि क्या देश में वे दलित जो मुस्लिम और ईसाइ बन गये क्यी उनको अनुसूचित जाति (SC) का दर्जा दिया गया है।

सुप्रिम कोर्ट में इस सवाल के जबाब में केन्द्र सरकार ने कहा है कि ऐसे लोगों को एससी आरक्षण के तहत नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में कोई आरक्षण नहीं दिया जाता है।केंद्र सरकार ने बुधवार को शीर्ष कोर्ट में कहा कि नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण वर्तमान में सिर्फ हिंदू, सिख या बौद्ध समुदाय के लोगों को ही मिलता है। यह आरक्षण संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 के तहत प्रदान किया जाता है।सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि अतीत में जो समूह दलित कहलाते थे, लेकिन वे बाद में इस्लाम या ईसाई धर्म में शामिल हो गए, धर्म का त्याग करने के बाद इन दोनों धर्मों में अस्पृश्यता जैसी सामाजिक बुराई नहीं है, इनको भी एससी का दर्जा नहीं दिया गया है। इसलिये उन्हें इसका लाभ नही दिया जाता । कतिपय लोगों ने संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 को कई याचिकाओं के जरिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इन पर बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान केंद्र ने अपना पक्ष रखते हुवे यह बात कही ।इन याचिकाओं में मांग की गई है कि दलित मुस्लिमों और ईसाईयों को भी आरक्षण प्रदान किया जाए जिन्होंने इस्लाम या ईसाई धर्म अपना लिया है। इस पर केंद्र ने कहा कि अनुसूचित जाति का दर्जा एक सामाजिक कलंक और पिछड़ेपन पर केंद्रित है। यह सुविधा 1950 के उक्त आदेश के तहत मान्यता प्राप्त समुदायों के लिए ही सीमित है।ईसाई या मुस्लिम समाज ने कभी सामाजिक उत्पीड़न का सामना नहीं किया केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 ऐतिहासिक आंकड़ों पर आधारित था। इसने स्पष्ट रूप से यह साबित किया कि ईसाई या इस्लामी समाज के सदस्यों ने कभी भी सामाजिक पिछड़ेपन या उत्पीड़न का सामना नहीं किया सरकार ने दलील दी कि अतीत में अनुसूचित जाति के लोगों का इस्लाम या ईसाई धर्म जैसे धर्मों को अपनाने का एक कारण यह है कि वे अस्पृश्यता के कलंक से मुक्ति चाहते थे। अस्पृश्यता ईसाई या इस्लाम में बिलकुल नही है सरकार ने शीर्ष कोर्ट से कहा कि उसने पिछले महीने पूर्व सीजेआई केजी बालकृष्णन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय आयोग का गठन किया है। यह आयोग इस बात की जांच करेगा कि क्या दलित मुसलमानों और ईसाइयों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जा सकता है।

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