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अल्मोडॉ 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के अवसर पर राजकीय महाविद्यालय लमगड़ा में शिक्षाशास्त्र विभाग की ओर से “राष्ट्र निर्माण में शिक्षा की भूमिका विषय पर गोष्ठी का आयोजन हुवा । सरस्वती की वंदना तत्पश्चात स्वागत गीत के साथ ही कार्यक्रम के संयोजक हेमन्त कुमार बिनवाल, (असिस्टेंट प्रोफेसर) द्वारा गोष्टी की रूपरेखा रखी गई | कार्यक्रम के संयोजक श हेमन्त कुमार बिनवाल द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के बारे में विस्तार से बताया कि देश के पहले शिक्षा मंत्री के रूप में मौलाना अबुल कलाम आजाद का अतुलनीय योगदान रहा तथा उन्होंने स्वतंत्रता के बाद देश में आधुनिक शिक्षा पद्धति लाने के लिए अत्यंत प्रयास किए, जिस कारण उनको याद करने के लिए उनके जन्मदिन को संपूर्ण राष्ट्र में राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए बीए प्रथम सेमेस्टर की छात्रा नेहा कुँवर द्वारा मौलाना अबुल कलाम आजाद की जीवनी पर प्रकाश डाला, साथ ही कविता साह , अनीता, पिंकी आर्या , भावना आर्या, गीता राणा, मीना आर्या तथा रेनू आर्या ने भी अपने विचार गोष्टी में रखे | बीए प्रथम सेमेस्टर की छात्रा रेनू आर्या ने राष्ट्र निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका हो सकती है विषय पर विस्तार से बात की। कार्यक्रम को अर्थशास्त्र विभाग के प्राध्यापक नरेंद्र प्रसाद आर्या ने भी संबोधित किया, महाविद्यालय की वरिष्ठ प्राध्यापिका साधना पंत ने कहा कि प्लेटो द्वारा दिए गए कथनों के आधार पर शिक्षा व्यवस्था से ही राष्ट्र निर्माण किया जा सकता है | अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ उषा रानी ने छात्र छात्राओं को विभिन्न प्रकार के प्रेरक प्रसंग तथा भिन्न प्रकार के शिक्षा के अभिकरणों द्वारा किस प्रकार राष्ट्र निर्माण हो सकता है के बारे में विस्तार से बताया और छात्र छात्राओं से आह्वान किया कि राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दें। कार्यक्रम का संचालन कार्यक्रम के संयोजक श्री हेमन्त कुमार बिनवाल द्वारा किया गया | कार्यक्रम के अंत में कार्यक्रम के संयोजक द्वारा सभी का आभार व्यक्त किया गया, इस अवसर पर महाविद्यालय की शिक्षणेत्तर कार्मिक सुश्री रेनू असगोला, डीएस नेगी, डी के तिवारी, अर्जुन सिंह, दीपक कुमार, हेम आर्य, ललित परिहार समेत बीए प्रथम सेमेस्टर के छात्र-छात्राएं उपस्थित थे |

प्लेटो के अनुसार शिक्षा सामाजिक बुराईयों को नष्ट करने का प्रत्यन हैं तथा त्रुटिपूर्ण जीवन को सुधारने की एक योजना हैं। प्लेटो का कहना है कि,” शिक्षा बौद्धिक बुराई के लिए बौद्धिक उपचार हैं। प्लेटो की शिक्षा के दो रूप हैं– दार्शनिक पक्ष तथा सामाजिक पक्ष। दार्शनिकता के विषय में प्लेटो ने कहा है कि,” शिक्षा निरपेक्ष सत्य के दर्शन का एक साधन है और यह सत्य आत्मा का दर्शन हैं तथा सामाजिक पक्ष के संबंध में प्लेटो ने कहा हैं कि,” शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया हैं, जो व्यक्तियों को समाज के प्रति कर्त्तव्यों का ज्ञान कराती हैं। 

शिक्षा के सम्बन्ध में भारतीय.दार्शनिकों के मत

प्राचीन भारतीय समाज, संस्कृति तथा शिक्षा के मूलाधार वेद रहे हैं। वेद ही भारतीय दर्शन के स्रोत हैं। डाॅ0 एस0एस0 माथुर का कथन है कि ‘‘वेद स्वयं में कोई दार्शनिक ग्रन्थ नहीं है, वरन् इनमें सब भारतीय दर्शनों के आधार मिलते हैं।’ वेद के अनुसार शिक्षा वह अनमोल ज्ञान है जो तर्क व ज्ञान की कसौटी पर सत्य हो , इसके लिये तीन सूत्र दैहिक दैविक भौतिक , भूतकाल बर्तमान भविष्य में एकसमान अपरिवर्तनीय हो , किताबों को पढने का बाद उसे तीन बिधियों से आत्मलात करना ही ज्ञान है अन्यथा भ्रम भी पैदा हो जाता है

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