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नौ दिनो की प्रकृति तत्व की उपासना के साथ ही आत्म तत्व राम इस शरीर रूपी अयोध्या की बागड़ोर सभालते है । सृष्ठि का निर्माण करना , प्रकृति रूपी माता का काम है । जीवन निर्मित तर उसमे आत्म तत्व की प्रतिष्ठा हो ने के बाद उसका पालन पोषण , व ब्यवस्था मे सहयोगी बन जाना राम रूपी आत्म तत्व का काम है । राजा राम ही शरीर रूपी अयोध्या के अधिपति है , जिन्हे बिष्णु यनि प्रजापालक कहा जाता है ,। माता लक्ष्मी इस जीव की उत्पति कर्ता व भगवती इसकी सभी बाधाओंको दूर करने वाली महामाया है ।

जीवन जीना कोई आसान नही, यह पल – पल का संघर्ष है , सुख- दुख ,इसके “दो नेत्र ,व अच्छाई तथा बुराई इसके दो ‘कर्मफल, के साधन है । दिन व रात इसके” कर्म, व “बिश्राम, के समय है । शरीर इस “कर्म फल का साधन, , “विचार, व कर्मफल इस जीवन का “साध्य. है । राम इस के दृष्ठा है ।

बहुत से लोग कहते है कि यदि ईश्वर है तो फिर राग – द्वेश, शंका, समाधान ,पाप -पुण्य, सुख- दुख , यह सब क्यों है । , बहुत से लोग कहते है कि ईश्वर है ही नही , वे कहते है कि यदि ईश्वर है को दुख क्यो है , अमीरी -गरीबी क्यो है , भेदभाव क्यों है ।।

‘परमात्मा ,ने इस ‘संसार ,को एक जैसा नही ‘विविधता .के साथ रचा है,” ताकि, इस “मृत्युलोंक ,मे आया ‘प्राणि, विविध प्रकार का रसास्वादन कर सके , इसी लिये उसने हर “प्राणि, को कुछ ना कुछ अन्तर के साथ पैदा किया है “वैज्ञानिकों ,को जब इस बात की जानकारी हुई तो उसमे सबका “आधार कार्ड, बनाने की सोची , सरकार ब्यक्ति की पहचान के लिये इस “आधार कार्ड, का उपयोग कर रही है , कहा जाता है कि इस संसार मे चौरासि लाख यौनिया है, जो कर्म फल के अनुसार जन्म लेते रहती है ,।बहुत सी योनिया गर्भ में ही मर जाती है ,वे मृत्युलोक में केवल मां के गर्भ में आती है, फिर बाई -पास हो जाती है,” आज ,के समय जो लोग “भ्रूण हत्या ,कर रहे है , उन्हें भी इसका दण्ड़ अवश्य ही भुगतना होगा । यदि कोई बीज बोया ही ना जाय तो वह बीज की स्वभाविक मृत्यु है, पर यदि बीज बोया जाय तो उसे” खरपतवार, समझ लेना गलत है ।

भगवान राम सब देख रहे है वह शरीर के “आत्मतत्व ,की ही निगरानी नही कर रहे बल्कि राग- द्वेश, लोभ- लालच, से उत्पन्न विकारों की निगरानी भी कर रहे है । इसी को स्मरण करते हुवे जब जीवन का अन्त हो जाता है ,तो हम सब शव यात्रा में कहते है राम -राम सत्य है ,सत्य बोल गत्त है , यनि राम , जन्म – मरण , सत्य है जिसका जो भी कर्म का सत्य है उसी के अनुसार आगे की गति है ।

इस संसार मे दुख -सुख , लाभ -हानि, हमारे पूर्व व वर्तमान “कर्मों, का ही फल है , उसी के अनुरूप जन्म स्थल ,जन्म समय ,जन्म आधारित ,सुख -दुख प्राप्त होते है । कोई बलिस्ट पिता की सन्तान बन जाता है को कोई कमजोर कोई अमीर व बुद्घिमान परिवार मे तो कोई मानसिक व आर्थिक दारिद्रता मे ,पर वह अपने कर्म फल से अपना जीवन व योनि प्राप्त करता है यही सत्य है यही राम नवमी का आध्यात्मिक संन्देश ।

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