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ये सड़क जोशीमठ से लगभग 25 किलोमीटर दूरी पर स्थित दूरस्थ गांव (एक समय कठिनतम पैदल रास्ते की पहुंच पर स्थित).. मोल्टा को जा रही है ।
मजे की बात यह है कि यह करोड़ों की लागत से बनी सड़क मोल्टा गांव को जाती जरूर है ..पर पहुंचती नहीं ..
कैसे..? वो ऐसे कि गांव नीचे गहराई में है और सड़क गांव से दो किलोमीटर ऊपर आकर खत्म हो जाती है । अर्थात अब भी सड़क गांव के आम गरीब ग्रामीण की पहुंच से दूर ही है ..सड़क तक आने को दो किलोमीटर की तीखी चढ़ाई कटनी पड़ती है । जबकि यदि सड़क का समरेखण ठीक होता तो सड़क कम लागत में ही ऐन गांव तक पहुंच सकती थी । पहले गांव वालों को 5 किलोमीटर चढ़ना पड़ता था .. अब सरकार ने करोड़ों खर्च कर के 2 किलोमीटर चढ़ाई छोड़ी है ।
इसके अलावा सड़क बनाने वाले ठेकेदार साहब का सारा फोकस सड़क पूरे होने पर ही है ..सड़क के टिके रहने पर नहीं .. क्योंकि अधिकांश सड़क पर कहीं भी सुरक्षा दीवार नहीं है । सड़क कटिंग से जो लूज मलवा है वह बरसात में नीचे आएगा और सड़क साफ ..इसको रोकने को सुरक्षा दीवार देना जरूरी होता है ..पर वह गायब है ।
वैसे भी अधिकांश प्रधानमंत्री सड़क योजना की सड़कों का यही हाल है ।
सारा जोर किसी तरह गांव को नाममात्र सड़क से जोड़ देने भर पर है । सड़क की गुणवत्ता, सही समरेखण..सड़क के टिकाऊ होने .. दुर्घटना से सुरक्षा आदि सामान्य जरूरी बातों से इन सड़कों का कोई वास्ता ही नहीं है ।
ग्रामीण भी लंबे आन्दोलन संघर्ष से किसी तरह मिली सड़क का जैसे तैसे ..बुरी से बुरी हालत में .. जान जोखम में डाल इस्तेमाल करते हैं ..! और तब साल में एक आध गंभीर दुर्घटनाएं होने पर ही थोड़े दिन का हल्ला होता है ..फिर सब यथावत।
इन्ही बदहाल सड़कों से प्रशाशनिक अमला भी सफर करता है पर मजाल क्या कि कभी स्वतः संज्ञान लेकर कोई कार्यवाही हो जाए ।
मोल्टा अभी सड़क से जुड़ा ही है (तथाकथित तौर पर) और अब वहां एक लिंक रोड़ की जरूरत आन पड़ी है ..जो इस मुख्य सड़क को गांव से जोड़ दे ..यह विकास का अलग चेहरा है ..!