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घटना दिल्ली की है यहां एक सोलह वर्षीय बालिका साक्षी को इसलिये मार दिया गया ,क्योकि वह साहिल नामक मुस्लिम युवक के साथ अब रिलेशन सिप मे नही रहना चाहती थी , यदि देखा जाय तो साक्षी की उम्र अभी इस पायदान मे नही पहुची थी कि वह अपना भला बूरा संमझ सके , , दिमांग से भी साक्षी बच्ची ही थी , । पर उसने तय किया कि उससे जो गलतिया हुई वह उन्हे नही दुहरायेगी ।
साहिल इस बात से खपा था कि साक्षी ने उससे रिवेशनसिप में रहने के लिये मना कर दिया था रात का समय था साढे आठ बजे का समय कोई ज्यादा समय तो नही था , साक्षी घर को लौट रही थी , इसी समय साहिल जो उसी की गली मे रहने वाला एक आबारा किस्म का लड़का था साक्षी को रिलेशनसिप तोड़ने की सजा देने के लिये बेताब था , मौत बनकर उस पर तब झपट पड़ा जब साक्षी लौट रही थी , उसने साक्षी पर तेईस बार चाकू से बार किये , जब उसका मन नही भरा तो उसने कई बार एक बड़े पत्थर से भी हमला किया । कमाल की बात यह है कि यह सब सैकड़ों लोगो की उपस्तिथि मे हूवा पर किसी ने भी साक्षी को बचाने की कोशिस नही की । लगता है कि इनसानियत का दौर खत्म हो चुका है ।संवेदनाये मर चुकी है ।
जहां तक इस्लाम की बात है तो इस समुदाय में , बकरीद के दिन यह ट्रेनिंग दी जाती है कि अपने प्रियकी कुर्वानी से भी कभी पीछे नही हटना चाहिये , जानवरो को तड़फा -तड़फा कर मारना वकरीद की रस्म है ऐसा करते हुवे यदि किसी की संवेदनाये भी मर जाये तो यह तोसंंभव है ही ।
साहिल ने अपने जीवन मे कई कुर्वानिया देखी होंगी , ऐसा माहौल इस्लाम मे आम है ,इसीलिये साक्षी पर चाकुओं से इतने प्रहार करने पर भी ना तो उसके हाथ कांपे ना ही इसे इस कृत्य पर अफसोस हुवा । उल्टा वह एक बड़ा पत्थर लेकर साक्षी को ऐसे कूटने लगा मानो वह हत्या नही किसी का कीमा बना रहा हो ।
यह सर्वविदित है कि हिन्दुओं मे धार्मिक ज्ञान बहुत कम होता है । वह कही भी ईश्वर को मान लेते है या ना मानने की भी छूट है पर धार्मिक कृत्य के नाम पर क्रूरतम प्रथाओं का विरोध तो इस धर्म मे एक सतत् नियम है , पर साहिल जैसे क्रूर लोगों को कौन ट्रेनिंग देता है वह किस समाज से आते है इसका ज्ञान तो बच्चियों को होना ही चाहिये ।