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गढवाल में जहाँ ईगास पर्व बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जा रहा है वही कुमाँऊ में भी इस लोकपर्व को बड़े ही उत्साह के साथ मनाने की परम्परा है । जब से मानवीय सभ्यता का विकास हुवा है , पशु मानव जीवन के शहचर है , कुमाँऊ में आज बैलों को सजाने संवारने की प्रथा है । मेरा बैल तेरे बैल से अच्छा , इस प्रकार की प्रतियोगिता बड़ी रोमांचकारी होती थी । बैलों को फूलमालाओं से सजाना , सींगों को घी तेल लगाकर ,चमकाना बच्चों ही नही आम किसानों के लिये बड़ी खुशी की बात थी , बढता आधुनिकी करण घटता पशुधन आज की सभ्यता पर करारा प्रहार है ,
यद्यपि कुमाँऊ के इन गांव में आज एकादशी मनाई जा रही है ।बैलों को उनका मनपसन्द, आहार भट्ट के डुबुक मट्ठा खिलाया जा रहा है । पर अब यह लोकपर्व की तरह नही मनाया जा रहा हर घर परिवार मे अब बैल तो छोड़िये गाय व भैस तक नही है पशुओं के प्रति अनादर का भाव है , ना ही इस पर्व पर किसी शहरी या उन ग्रामीणों ने जिनके पास गौवंश या पशु नही उनके मन में गौवंश के प्रति आदर हो पर ईगास एकादशी पर्व तो यही संन्देश देता है । देव उठावनी अमावस्या सभी शुभ कार्यो को आरम्भ करने की तिथि है । भारत एक कृर्षि प्रधान देश है । इसकी सभी तिथियां कृर्षि से सम्बन्धित है । एकादशी के इस पर्व पर आज गौसदन ज्योंली मे सभी गौवंश को ग्रामीण परम्परानुसार मीठा भात व केले आदि खिलाये गये । यद्यपि परम्परानुसार उनका स्नान ध्यान नही हो सका , पर परम्परा प्रतीकात्मक रूप से निभाई गई । चन्द्रमणि भट्ट प्रात: ही गौसदन पहुचें वहां कर्मचारियों व सहयोगियो के साथ उन्होंने लोक पर्व की परम्पराओं को निभाया ।