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अल्मोड़ा बंदर भगाओ खेती बचाओ जन अभियान संचालन समिति ने प्रदेश के वन मंत्री द्वारा सदन में दिए गए उस बयान को हास्यास्पद करार दिया है जिसमें उन्होंने पांच सालों से बंदरों की संख्या कम होने की बात कही है.सामाजिक कार्यकर्ता गोविन्द गोपाल के हवाले से  समिति का आरोप है कि यदि बंदरों की संख्या कम हुई है तो इनके आतंक के समाधान हेतु जनता सड़कों पर क्यों है।बंदरों के आतंक से उत्तराखंड की सामान्य जीवन चर्या बाधित होकर रह गई है।
बंदरों के आतंक की समस्या को विधान सभा के पटल तक पहुंचाने में कत्यूर घाटी के जन अभियान बंदर भगाओ खेती बचाओ से जुड़े सभी सहयोगियों और जनता जनार्दन के संघर्ष और समर्पण का विशेष योगदान है। प्रदेश के अन्य जनपदों में भी बंदरों का जबरदस्त आतंक व्याप्त है। पीड़ित जनता को चाहिए कि इस आतंक से निजात हेतु संगठित होकर सरकार पर दबाव बनाएं। सदन की चर्चा में वन मंत्री द्वारा पिछले पांच वर्षों में बंदरों की संख्या कम होने का सदन को दिया बयान सरासर हास्यास्पद है बंदरों की संख्या कम नहीं हो रही है बल्कि बढ़ रही है। सच तो ये है कि सरकार के पास बंदरों की संख्या का कोई भी आधिकारिक आंकड़ा ही नहीं है।बागेश्वर जिले के दोनों विधायक सदन की चर्चा दौरान चुप्पी साधे रहे जबकि इसी जिले के कत्यूर घाटी से इस जन समस्या को प्रदेश तक पहुंचाया गया है और मुख्य मंत्री से मिलने गए शिष्ट मंडल में ये दोनों विधायक भी सम्मिलित रहे। समिति ने मांग की है कि प्रदेश सरकार द्वारा बंदरों के आतंक समाधान हेतु जो कुछ भी किया जा रहा है उसे मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
सही मायने में मानव – वन्यजीव संघर्ष के मामले बंदरों से अधिक जुड़े हैं। इनका समय रहते समाधान बहुत जरूरी है।
समिति ने बंदरों के आतंक पर प्रदेश सरकार द्वारा की जा रही टालमटोली को प्रदेश की जनता के साथ घिनौना मजाक करार दिया है।

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