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उत्तराखण्ड की चेतना आध्यात्म व पाखण्ड की नगरी हरिद्वार मे बिगत दिनों पूर्व आयोजित धर्म संसद का विवाद थमने का नाम नही ले रहा । फेश बुक व वड़सप पर कुछ लोगों द्वारा बोली जाने वाली अभद्र भाषा व मारकाट करने सम्बन्धी डाली जा रही पोस्टों पर यहा कुछ कथित सन्तों ने जब मुहर लगाई तब यहां नफरतों का केवल समर्थन ही नही हुवा । अपितु इस प्रवृति का बिरोध भी हुवा । इस धर्म संसद में हाल ही में इस्लाम छोंडकर सनातन धर्म अपनाने वाले वसीम रिजबी उर्फ त्यागी भी विवादो मे घिर गये । इस धर्म संसद में महन्त कालीचरण ने जहां गांधी पर बिवादास्पद टिप्पडियां गोडसे का महिमामण्डन किया तो वही महन्त राम सुन्दर दास मे कहा कि वह इस प्रकार के बक्तब्य का बिरोध ही नही अपितु इस प्रकार के धर्म संसंद से अपने को अलग करते है

इस धर्म संसद में आजादी आन्दोलन के सर्वमान्य नेता महात्मां गांधी को भी नही छोडा़ गया अपितु उन्हें भारत बिभाजन का दोषी ही नही, मुसलमानों का हितैषी भी कहा गया । किसी ने भी हिन्दु महासभा व मुस्लिम लींग की पंजाब मे बनी उस संयुक्त व मिलीजुली सरकार के प्रस्ताव का जिग्र नही किया । जिस सरकार ने ब्रिटिस सरकार को यह प्रस्ताव दिया था कि हिन्दु मुसलमान एक साथ नही रह सकते ये अलग – अलग संस्कृतियां है । अत : भारत का बिभाजन कर देना चाहिये । इस प्रस्ताव के पक्ष में दोनों ही दल प्रमुखता से डठे रहे अत: किसी भी संबैधानिक पद पर न होते हुवे भी गांधी को यह प्रस्ताव मानना पड़ा ,। बिभाजन के बाद संयुक्त पाकिस्तान मे 18/प्रतिशत हिन्दु व भारत मे 14/प्रतिशत मुसलमान रहने लगे । भारत के बजाय उस समय पाकिस्तान में हिन्दुओं की आबादी ज्यादा थी । 1972 में मुस्लिम चरमपन्थियों ने जब बंगाली हिन्दु व मुस्लिम आबादी को राजनैतिक व सामाजिक तौर से प्रताडित करना व वंगाल का पाकिस्तान मे नेतृत्व मानने से इनकार कर दिया तो भारत द्वारा बिभाजन कराने पर 1972 मे बांग्लादेश अस्तित्व में आया ,। बंगाल से हजारों हिन्दु मुसलमान भाग कर भारत आये जो असम त्रिपुरा , व उत्तराखण्ड के तराई मे बसाये गये । आज भी बाग्लादेश मे हिन्दुओं की एक बड़ी आबादी है । किन्तु पाकिस्तान मे यह आबादी कम है। गांधी व कांग्रेस की तत्कालिक सरकारों ने यदि पाकिस्तान के साथ समझौता ना किया होता तो दोनो देशों की लगभग 18/ फीशदी जनता का पुनर्वास करना एक बड़ी चुनौती थी जिसे कम करने का प्रयास किया गया । पाकिस्तान को तब अंमेरिका जैसे देश की पुचकार मिली तो ज्वाहर लाल नेहरू ने दुनिया मे गुट निर्पेक्ष आन्दोलन की नीव ड़ाली । पाकिस्तान ने भारत पर जो भी युद्ध थोपे वह अमेरिकी सहयोग के बिना संम्भव नही थे ।

आज के दौर मे धर्म संसद यदि सनातन धर्म की मूलभूत समस्याओं पर सोच व समझ बनाने का काम करती तो यह ज्यादा सार्थक होता टुकड़ों -टुकड़ों मे सनातन धर्म को बांट रही जातीयता पाखंण्डपूर्ण आचरण पर प्रहार होना ही चाहिये था । पर इसके के बजाय यह धर्म संसद नफरत व घृणा फैलाने का काम करने लगे तो यह देश कोअशान्त करने की ही कार्यवाही है । इस प्रकार का काम करने वालों पर सरकार को तुरन्त कार्यवाही करनी चाहिये पर तार्किक बहस को समाज मे नही रोका जाना चाहिये। पाकिस्तान , व ईल्लामिक देशों की इसी नकारात्मक सोच ने वहां के नागरिकों के जीवन स्तर को जिस प्रकार निम्न स्तर पर पहुंचा दिया है । उस सोच का धर्म संसद मे प्रसार व बिरोध यह दर्शाता है कि अभी भी सनातन धर्म में सच बोलने व स्वीकार करने की क्षमताये मौजूद है ।इन्ही क्षमताओं के कारण सनातन धर्म शान्तिप्रिय लोंगो की आखिरी उम्मींद हैं । इस उम्मीद पर तुसारापात करने वालों का वैसा ही साहसपूर्ण बिरोध होना चाहिये जैसा कि धर्म संसद मे हुवा । एक कथित सन्त यदि नफरत फैला रहा था तो दूसरे ने इसका बिरोध करते हुवे अपने आप को इस धर्म संसद से अलग कर दिया ।

इतिहास मे महर्षि दयानन्द का नाम इसलिये अमर है क्योंकि । महर्षी दयानन्द मे सड़े गले सनातन धर्म के बजाय वेदोक्त व तर्कपूर्ण संवाद को वल दिया तार्किक बुद्धि के विकास के लिये उन्होंने सनातन धर्म की उपयोगी शिक्षाओं को सत्यार्थप्रकाश नामक ग्रन्थ लिखकर यह स्पष्ट कर दिया कि उनका नया मत चलाने का कोई ईरादा नही है अपितु वे उसी वैदिक मत का प्रतिपादन कर रहे है । जिले सत्य सनातन वैदिक धर्म कहते है वेद दर्शन व उपनिषद इस धर्म के मौलिक ग्रन्थ । पर बहुत ही खेद का बिषय है किअब महर्षि दयानन्द के गूढ बिषयों पर लिखे गये सत्यार्थ प्रकाश के मन्तब्य को ना समझ कर आर्य जन भी मानववता की सेवा के लिये बिषपान करने वाले महर्षि दयानन्द, गोली खाने वाले स्वामी श्रद्धानन्द व फांसी पर झूल जाने वाले बिष्मिल्ल की शिक्षाओं को भुलाकर नफरते फैलाने वालोंं के सहयोगी बन रहे है