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लोकतन्त्र में बोट लेना व बोट के आधार पर माननीय , व सम्पन्न हो जाना कोई नई बात नही है , पर इन दिनों जो सबसे मुखर आन्दोलन देश में चल रहा है वह दलित आन्दोलन है , बाबा साहब भीमराव अम्बेदकर इस समाज के मार्गदर्शक है । सोसियल मीड़िया मे अक्सर यह सवाल मुखर है कि क्या 85%आबादी वाला दलित समाज 15%वाले सवर्ण समाज की राजनीति के मापदण्ड़ो पर काम करेगा ।

भारत की राजनीति समाजवाद से पूंजीवाद की तरफ करवट ले चुकी है ,समाजवाद का अन्तिम किला NDTVभी अब अड़ानी की सम्पत्ति है । वर्तमान भारत में जो संवैधानिक ब्यवस्था लागू है , इसे बाबा साहब का संविधान कहा जाता है । बाबा साहब अंग्रेजों के विस्वासपात्र रहे , अंग्रेजी सरकार मे जो – जो कानून बने वे सब हमारे संविधान के हिस्से है । हालांकि कुछ कानून हटाये भी गये है ।

आजकल देश मे जो दलित विमर्श है उसके अनुसार ओ बी सी , दलित समुदाय व ओ बी सी समुगाय के बीच एकता की बातें कही जा रही है । संविधान मे राजनैतिक व लोकसेवक पदों पर दलितो को 19%आरक्षण प्राप्त है जबकि ओ बी सी में यह कन्डिशनल है , यहा रिजर्वेशन के लिये आय एक पैमाना है , पर यदि समग्र समाज के हित की बाते है तो सबको समान रूप मे लाभ मिलना चाहिये , इसके लिये तो राजनीतिक ब्यवस्था ही बदलनी पड़ेगी , जब तक समाज मे गैर बराबरी है तब तक समानता हो ही नही सकती ,। पर यह भी सच है कि समानता का जाप करते करते सोवियत संघ बिखर गया , बौद्ध भारत मे बौद्धों का समूल नाश हो गया ।ऱिर कोई नेता अपने समाज का शत प्रतिशत हित कैसे कर सकता है ।

प्रकृति में मनुष्यों का शारिरिक ढांचा व रक्त समुह लगभग एक जैसे है ,इसके बाद भी इन सब मे जैव विविधता मौजूद है , इस जैव विविधता को बनाये रखने के लिये जातिया कल्पित की गई तियों रे बीच संक्रमण रोकने के लिये , कट्टर सामुदायिक नियम भी बनें पर इन नियमों का उलंघन भी होता रहा है ।समाद में कई वर्ण शंकर समुह भी निर्मित हुवे ,

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