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अल्मोड़ा 28 जून सोमेश्वर घाटी अपनी उपजाऊ भूमि के लिये पूरे ऐशिया मे प्रसिद्ध घाटी है इन दिनो यह कृर्षि उत्पादों की बेकद्री तथा रोजगार के नये – नये बिकल्पों के सामने आने के बादलगभग स्वरूप बदल चुकी है नदियों के इन तटीय ईलाको मे अब खेती की जगह कंक्रीट के जंगल उगने लगे है ।

पर्वतों के देव पुरुष कभी भी नदियों के किनारे भवन आदि निर्मित नही करते थे यह सुरक्षा व नदियों की स्वचंछता की दृष्ठि से उचित नही समझा जाता था । वह जमीन जहां नदियो के किनारे खेती होती थी । वहां सौच करना भी मना था पूरी सोंमेश्वर , गरूड , व बैराठ घाटी में कही पर भी नदियों के किनारे कोई गांव नही है । गांव नदियों से ऊपर पहाड़ी ढलानो मे बने है । सरकार नदियों की स्वच्छता के लिये बेचैन है तो लोगो को पीने का पानी नसीब नही हो रहा आबादी बढने से नदिया प्रदूषित हो रही है ।

इन सुन्दर सिचाई सुविधा से सम्पन्न नदियों के तटीय जमीनों में भरपूर अन्न उगाया जाता था अब यह केवल औपचारिकता रह गई है । पर जिस भाग मे भी खेती हो रही है वह भाग बरबस अपने सौन्दर्य से लोगो को आकर्षित करते रहता है । आज भी यहां सामुहिक कृर्षि कार्य हो रहे है । इन दिनों खेतों मे रुपाई कार्य हो रहा है

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