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अभी कुछ दिन पूर्व पहले दिल्ली अब विहार के एक स्वनामधन्य मंत्रियों ने मनुस्मृति के विषय में बिषबमन किया है। सामान्यत: देखा जाय को यह एक राजनीतिक स्टंटबाजी से ज्यादा कुछ नही यह लोग अपने समाज को कविलाई समाज की तरफ धकेल कर नफरत व हिंसा के बल पर अपने समाज के मतों रा एक बैंक बनाना चाहते है मंण्डल आम्दोलन के बाद समरसता की राजनीति जातीय समुहों मे बट गई है यह जातीय राजनीति सनातन धर्म के लोगों को एक दूसरे के प्रति लड़ाभिड़ा कर ही संम्भव है । इसके लिये एक दूसरे के प्रति शक पैदा करना जरूरी है अब ये नेता रामायण , महाभारत व मनुस्मृति को आधार बना रहे है , पहले संविधान मे क्षत्रियों व शिल्पकारो , किसानों को पिछड़ा व अति पिछड़ा वर्ग मे अब उनके पिछड़ेपन के लिये धर्म ग्रन्थों को दोषी ठहराया जा रहा है यह प्रयास ,नफरत पर आधारित बोट,वैक तैयार करने का माध्यम है , ऐसा ही माध्यम भारत विभाजन के लिये इसके बाद कश्मीर में पंण्ड़ितो को धर्म के आधार पर बितण्ड़ावाद फैलाकर किया गया , अब इस प्रयोग को सारे भारत में दुहराने व कबीलाई राजनैतिक समुह बनाने की योजना बै जिस को भारत सरकार भी मूकदर्शक होकर देख रही है । यदि कुछ वोगों रो उनकी अल्पसंख्या देखते हुवे किना कुछ करें धपे लम्बे समय तक रादनैतिक पारी खेली जा सके तो इसमें तो उन्ही कबीलाई नेकाओं व उमके बच्चों का ही हित है । इस सब का उद्देश्य वोट बैंक को सहेजना है।

मनुस्मृति की आलोचना वे लोग करते है जिन्होंने कभी इस पुस्तक को देखा तक नहीं है। पढ़ना , समझना और चिंतन करना बहुत दूर की बात है। ृह सब कही सुनी बरगलाने की बातों के अवावा कुछ नही इनकी बातों मे कुछ लोंग बहक जाते है ।

ब्राह्मणो अस्य मुखमासीद यह वेद के पुरुष सूक्त का बचन है , ब्राह्मण क्या है ब्राह्मण शब्द को लेकर अनेकों भ्रांतियां हैं। इनका समाधान करना अत्यंत आवश्यक है। क्यूंकि हिन्दू समाज की सबसे बड़ी कमजोरी जातिवाद है। ब्राह्मण शब्द को सत्य अर्थ को न समझ पाने के कारण जातिवाद को बढ़ावा मिला है।

वह ब्यक्ति जिसका काम पढने-पढ़ाने से, चिंतन-मनन करने से, ब्रह्मचर्य, अनुशासन, सत्य-भाषण आदि व्रतों का पालन करने से, परोपकार आदि सत्कर्म करने से, वेद, विज्ञान आदि पढने से, कर्तव्य का पालन करने से, दान करने से और आदर्शों के प्रति समर्पित रहने से मनुष्य का यह शरीर ब्राह्मण किया जाता है। यह मनुसिमृति का बचन है , ऐसा आचरण ब्यवहार करने वाला ब्राह्मण कहलाता है –

मनुस्मृति के अध्याय.दो का अठठाईसवा मन्त्र कहता है( 2/28-) ब्राह्मण वर्ण है, जाति नहीं वर्णहै जिसका अर्थ है चयन या चुनना और सामान्यत: शब्द वरण भी यही अर्थ रखता है। व्यक्ति अपनी रूचि, योग्यता और कर्म के अनुसार इसका स्वयं वरण करता है, इस कारण इसका नाम वर्ण है। वैदिक वर्ण व्यवस्था में चार वर्ण है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।

ब्राह्मण का कर्म है विधिवत पढ़ना और पढ़ाना, बिधिवत पढमा व पढाना कोई सामान्य बात नही है इसके लिये स्वार्थ व लालच को छोड़ना पहली आवश्यकता है , यज्ञ करना ताकि प्रकृति मन विचार शुद्ध हो यज्ञ कराना, दान प्राप्त करना और सुपात्रों को दान देना। यह इसलिये महत्व पूर्ण है रि कि हम कीमत देकर किसी वस्तु को प्राप्त कर सकते बै पर किसी वल्कु का अविल्कार करने उसे सहेजने के समर्पण जरूरी है दान एक समर्पण है

मनु की वर्ण ब्यवस्था मे क्षत्रिय होना भी एक कर्म है जिसमे बाहुबल व बुग्धिबल अधिक हो जो समाज मे सत्य न्याय अनुशासन बनाये रखने के लिये अपने को इस तर्म मे प्रबृत करता है वह क्षत्रिय कर्म है विधिवत पढ़ना, यज्ञ करना, प्रजाओं का पालन-पोषण और रक्षा करना, सुपात्रों को दान देना, धन ऐश्वर्य में लिप्त न होकर जितेन्द्रिय रहना। जो ऐसा आतपण करें वह क्षत्रिय है ।

मनु की की वर्ण ब्यवस्था में तीसरा प्रमुख कर्म ब्यापार है यह वैश्य का कर्म है ,पशुओं का लालन-पोषण,, उत्पादन , प्रवन्धन , वितरण , सुपात्रों को दान देना, यज्ञ करना, विधिवत अध्ययन करना, व्यापार करना, धन कमाना, खेती करना। यह वैश्य कर्म है वैस्य समाज के अभाव को दूर करते है , राष्ट्र व धर्म को समृद्ध करते है

शुद्र का कर्म है सभी चारों वर्णों के व्यक्तियों के यहाँ पर सेवा या श्रम करना। यहा स्मरण रखने वाली बात यह है कि बहुत से शिल्पकार जो वैश्य वर्ण थे वर्तमान संविधान मे उन्हे शूद्र वर्ण में धकेल दिया है ।श्रमिक के बिना कोई भी कार्य इस धरा मे सम्भव नही है ।वह देश सर्वाधिक तरक्की करता है जिस समाज मे कुशल श्रमिक होते है मनुस्मृति के भष्यकारें ने भी भ्रम फैलाया है कि श्रमिक बुद्धिहीन होते है अनपढ होते है जबकि बिना ज्ञान व अध्ययन के श्रम सम्भव ही नही है शिल्पकार को निम्नतर मानना गलत है । यहा पर मनु के कथन को गलत तरह से प्रस्तुत किया जाता है । जबकि सेवक वह है जिसे सहायक कह सकते है वह स्किल्ड़ लेवर नही है र्ृोकि उसकी किसी एक काम में विशेषज्ञता नही होती ।

जहां तक शुद्र शब्द की बात है इस वर्ण को मनु अथवा वेद ने कहीं भी अपमानजनक, नीचा अथवा निकृष्ठ नहीं माना है। मनु के अनुसार चारों वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य एवं शूद्र आर्य है।- मनु 10/4

मनुष्यों में केवल एक ही जाति है। वह है “मनुष्य”। अन्य की जाति नहीं है। वर्ण बनाने का मुख्य प्रयोजन कर्म विभाजन है। यदि किसी कर्म को मनुष्य जन्म से ही सीखता है तो नि:सन्देह वह उस कर्म मे पारंगत हो जाता है हर बच्चे को उसके पिता का ब्यावसाय जन्म से हस्तान्तरित होता है , ब्यक्ति युवा व समझदार होने पर अपने पैत्रिक ब्यवसाय को बदल भी सकता है , उसकी कार्य कुशलता ही उसे समाज में लोकप्रिय बनाती है । वर्ण विभाजन का आधार व्यक्ति की योग्यता है। आज भी शिक्षा प्राप्ति के उपरांत व्यक्ति डॉक्टर, इंजीनियर, वकील आदि बनता है। जन्म से कोई भी डॉक्टर, इंजीनियर, वकील नहीं होता। किन्तु जिनके माता पिता डाक्टर है उसे विरासत में चिकित्सा ब्यवसाय व इम्फ्रास्टक्चर मिल ही जाता है , जिनके माता पिता वकील है , ब्यापारी है किसान है कारिगर है, जो उन्हें विरासत में यह गुण कर्म स्वभाव मिल जाता है ,मनु भी सम्पत्ति हस्तान्तरण को मानते है इसी आधार पर उपनयन संस्कार की अलग – अलग उम्र बताते है । विवाद का प्रमुख बिन्दु यह भी है कि भारतीय संविधान मे दक्ष श्रमिक व दक्षता विहीन श्रमिक को एक ही श्रेणि में मान लिया है उन्हें बार बार बताया जाता है जाति प्रमाण पत्र वितरित किये जाते है कि सिल्पकार भी शूद्र है इस संवैधानिक ब्यवस्था का दोषी मनु को बताना उचित नही है अत: नेताओं को अब मुगल व अंग्रेजों की बिभाजन कारी कूटनीति का त्याग कर भारतीय संमाज में समरसता को बढामा चाहिये आज तक के इतिहास मे कोई शासक ऐसा नही हुवा जिसने सत्ता में आने के बाद शत प्रतिशत अपने समाज का भला कर दिया हो । किन्तु किसी की प्रगति से जलने के बजाय प्रतियोगी बन कर दक्षता के बल पर आगे बढना लक्ष्य होना चाहिये ।

शंका 5- कोई भी ब्राह्मण जन्म से होता है अथवा गुण, कर्म और स्वाभाव से होता है?

समाधान- व्यक्ति की योग्यता का निर्धारण शिक्षा प्राप्ति के पश्चात ही होता है। जन्म के आधार पर नहीं होता है। किसी भी व्यक्ति के गुण, कर्म और स्वाभाव के आधार पर उसके वर्ण का चयन होता हैं। कोई व्यक्ति अनपढ़ हो और अपने आपको ब्राह्मण कहे तो वह गलत है।

मनु का उपदेश पढ़िए-

जैसे लकड़ी से बना हाथी और चमड़े का बनाया हुआ हरिण सिर्फ़ नाम के लिए ही हाथी और हरिण कहे जाते है वैसे ही बिना पढ़ा ब्राह्मण मात्र नाम का ही ब्राह्मण होता है।-मनुस्मृति 2/157

शंका 6-क्या ब्राह्मण पिता की संतान केवल इसलिए ब्राह्मण कहलाती है कि उसके पिता ब्राह्मण है?

समाधान- यह भ्रान्ति है कि ब्राह्मण पिता की संतान इसलिए ब्राह्मण कहलाएगी क्योंकि उसका पिता ब्राह्मण है। जैसे एक डॉक्टर की संतान तभी डॉक्टर कहलाएगी जब वह MBBS उत्तीर्ण कर लेगी। जैसे एक इंजीनियर की संतान तभी इंजीनियर कहलाएगी जब वह BTech उत्तीर्ण कर लेगी। बिना पढ़े नहीं कहलाएगी। वैसे ही ब्राह्मण एक अर्जित जाने वाली पुरानी उपाधि हैं।

मनु का उपदेश पढ़िए-

माता-पिता से उत्पन्न संतति का माता के गर्भ से प्राप्त जन्म साधारण जन्म है। वास्तविक जन्म तो शिक्षा पूर्ण कर लेने के उपरांत ही होता है। -मनुस्मृति 2/147

शंका 7- प्राचीन काल में ब्राह्मण बनने के लिए क्या करना पड़ता था?

समाधान- प्राचीन काल में ब्राह्मण बनने के लिए शिक्षित और गुणवान दोनों होना पड़ता था।

मनु का उपदेश देखे-

वेदों में पारंगत आचार्य द्वारा शिष्य को गायत्री मंत्र की दीक्षा देने के उपरांत ही उसका वास्तविक मनुष्य जन्म होता है।-मनुस्मृति 2/148

ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य, ये तीन वर्ण विद्याध्ययन से दूसरा जन्म प्राप्त करते हैं। विद्याध्ययन न कर पाने वाला शूद्र, चौथा वर्ण है।-मनुस्मृति 10/4

आजकल कुछ लोग केवल इसलिए अपने आपको ब्राह्मण कहकर जाति का अभिमान दिखाते है क्यूंकि उनके पूर्वज ब्राह्मण थे। यह सरासर गलत है। योग्यता अर्जित किये बिना कोई ब्राह्मण नहीं बन सकता। हमारे प्राचीन ब्राह्मण अपने तप से अपनी विद्या से अपने ज्ञान से सम्पूर्ण संसार का मार्गदर्शन करते थे। इसीलिए हमारे आर्यवर्त देश विश्वगुरु था।

शंका 8-ब्राह्मण को श्रेष्ठ क्यों माने?

समाधान- ब्राह्मण एक गुणवाचक वर्ण है। समाज का सबसे ज्ञानी, बुद्धिमान, शिक्षित, समाज का मार्गदर्शन करने वाला, त्यागी, तपस्वी व्यक्ति ही ब्राह्मण कहलाने का अधिकारी बनता है। इसीलिए ब्राह्मण वर्ण श्रेष्ठ है। वैदिक विचारधारा में ब्राह्मण को अगर सबसे अधिक सम्मान दिया गया है तो ब्राह्मण को सबसे अधिक गलती करने पर दंड भी दिया गया है।

मनु का उपदेश देखे-

एक ही अपराध के लिए शूद्र को सबसे दंड कम दंड, वैश्य को दोगुना, क्षत्रिय को तीन गुना और ब्राह्मण को सोलह या 128 गुणा दंड मिलता था।- मनु 8/337 एवं 8/338

इन श्लोकों के आधार पर कोई भी मनु महाराज को पक्षपाती नहीं कह सकता।

शंका 9- क्या शूद्र ब्राह्मण और ब्राह्मण शूद्र बन सकता है?

समाधान -ब्राह्मण, शूद्र आदि वर्ण क्योंकि गुण, कर्म और स्वाभाव के आधार पर विभाजित है। इसलिए इनमें परिवर्तन संभव है। कोई भी व्यक्ति जन्म से ब्राह्मण नहीं होता। अपितु शिक्षा प्राप्ति के पश्चात उसके वर्ण का निर्धारण होता है।

मनु का उपदेश देखे-

ब्राह्मण शूद्र बन सकता और शूद्र ब्राह्मण हो सकता है। इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य भी अपने वर्ण बदल सकते है। -मनुस्मृति 10/64

शरीर और मन से शुद्ध- पवित्र रहने वाला, उत्कृष्ट लोगों के सानिध्य में रहने वाला, मधुर-भाषी, अहंकार से रहित, अपने से उत्कृष्ट वर्ण वालों की सेवा करने वाला शूद्र भी उत्तम ब्राह्मण जन्म और द्विज वर्ण को प्राप्त कर लेता है। -मनुस्मृति 9/335

जो मनुष्य नित्य प्रात: और सांय ईश्वर आराधना नहीं करता उसको शूद्र समझना चाहिए। -मनुस्मृति 2/103

जब तक व्यक्ति वेदों की शिक्षाओं में दीक्षित नहीं होता वह शूद्र के ही समान है।-मनुस्मृति 2/172

ब्राह्मण- वर्णस्थ व्यक्ति श्रेष्ठ–अतिश्रेष्ठ व्यक्तियों का संग करते हुए और नीच- नीचतर व्यक्तिओं का संग छोड़कर अधिक श्रेष्ठ बनता जाता है। इसके विपरीत आचरण से पतित होकर वह शूद्र बन जाता है। -मनुस्मृति 4/245

जो ब्राह्मण,क्षत्रिय या वैश्य वेदों का अध्ययन और पालन छोड़कर अन्य विषयों में ही परिश्रम करता है, वह शूद्र बन जाता है। -मनुस्मृति 2/168

शंका 10. क्या आज जो अपने आपको ब्राह्मण कहते है वही हमारी प्राचीन विद्या और ज्ञान की रक्षा करने वाले प्रहरी थे?

समाधान- आजकल जो व्यक्ति ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होकर अगर प्राचीन ब्राह्मणों के समान वैदिक धर्म की रक्षा के लिए पुरुषार्थ कर रहा है तब तो वह निश्चित रूप से ब्राह्मण के समान सम्मान का पात्र है। अगर कोई व्यक्ति ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होकर ब्राह्मण धर्म के विपरीत कर्म कर रहा है। तब वह किसी भी प्रकार से ब्राह्मण कहलाने के लायक नहीं है। एक उदहारण लीजिये। एक व्यक्ति यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर है, शाकाहारी है, चरित्रवान है और धर्म के लिए पुरुषार्थ करता है। उसका वर्ण ब्राह्मण कहलायेगा चाहे वह शूद्र पिता की संतान हो। उसके विपरीत एक व्यक्ति अनपढ़ है, मांसाहारी है, चरित्रहीन है और किसी भी प्रकार से समाज हित का कोई कार्य नहीं करता, चाहे उसके पिता कितने भी प्रतिष्ठित ब्राह्मण हो, किसी भी प्रकार से ब्राह्मण कहलाने लायक नहीं है। केवल चोटी पहनना और जनेऊ धारण करने भर से कोई ब्राह्मण नहीं बन जाता। इन दोनों वैदिक व्रतों से जुड़े हुए कर्म अर्थात धर्म का पालन करना अनिवार्य हैं। प्राचीन काल में धर्म रूपी आचरण एवं पुरुषार्थ के कारण ब्राह्मणों का मान था। इस लेख के माध्यम से मैंने वैदिक विचारधारा में ब्राह्मण शब्द को लेकर सभी भ्रांतियों के निराकरण का प्रयास किया हैं। ब्राह्मण शब्द की वेदों में बहुत महत्ता है। मगर इसकी महत्ता का मुख्य कारण जन्मना ब्राह्मण होना नहीं अपितु कर्मणा ब्राह्मण होना है। मध्यकाल में हमारी वैदिक वर्ण व्यवस्था बदल कर जाति व्यवस्था में परिवर्तित हो गई। विडंबना यह है कि इस बिगाड़ को हम आज भी दोह रहे है। जातिवाद से हिन्दू समाज की एकता समाप्त हो गई। भाई भाई में द्वेष हो गया। इसी कारण से हम कमजोर हुए तो विदेशी विधर्मियो के गुलाम बने। हिन्दुओं के 1200 वर्षों के दमन का अगर कोई मुख्य कारण है तो वह जातिवाद है। वही हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। आइये इस जातिवाद रूपी शत्रु को को जड़ से नष्ट करने का संकल्प ले।

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