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भीमताल 27 जून को यहां कुमाऊनी भाषा सम्मेलन सम्पन्न हुवा । इस सम्मेलन का आयोजन नमिता सुयाल ने किया जिसमे कुमाऊनी भाषा के लिये विशेष रूप से काम कर रहे पहरु केसम्पादक डा हयात रावत , सहित पहरू के साथ काम कर रहे तमाम कुमाऊनी भाषा के साहित्यकारों मे अपनी बात रखी । कार्ृक्रम मे परम सम्मानित पद्मश्री डाक्टर यशोधर मठपाल जी भी उपस्थित रहें । बैठक मे वक्ताओं ने कहा कि आज देश की रई भाषआय़ाओं व ूोलियो पर ब्ृापारिक भाषाओका बड़ा प्रभाव पड़ा है ।
भारत की सबसे पुरानी भाषा तमिल भी आज संकट के दौर से गुजर रही है, तेलगू मलयालम सहिच कुमाऊनी गढवाली भाषाओपर भी संकट है । वक्ताओने कहा कि हम देश की तमाम बोलियों और भाषाओं के लगातार लुप्त होने की एक बड़े सांस्कृतिक संकट की तरह देख सकते हैं।ऐसे ही हमारे अंचल में मुख्य रूप से कुमाऊनी, गढ़वाली और जौनसारी बोली जाती हैं।उनकी पहचान का संकट भी वास्तव में सामने दिख रहा है।
छोटी छोटी लाखों जल धाराओं का संचित जल एक नदी और फिर तमाम छोटी बड़ी नदियों का जल महानदी बनता है।संकट जल शिराओं, जल धमनियों पर है।वे लुट रहीं हैं, सूख रही हैं और विलुप्त होती जा रहीं हैं।आंचलिक भाषाओं को देश की मुख्य भाषा की जल वाहिकाएं समझ सकते हैं।
पर्वतीय उत्तराखंड के गांव,किसान,बागवान, उनके साथ जुड़े शिल्पकार लगातार उजड़ रहे हैं, उनके स्थान पर व्यापारिक लोग और प्रतिष्ठान काबिज हो रहे हैं।जिनको सिर्फ मुनाफे से मतलब है। उनकी भाषा को हमारा समाज भी तेजी से आत्मसात कर रहा है और उन्हीं के व्यवहार को भी…
भाषा के असली संरक्षक किसान,बागवान,लोहार, ओड और महिलाएं जब गांवों में रहेंगी ही नहीं तो भाषा भी नहीं रहेगी। चिंता भाषा बचाने की नहीं है।चिंता है भाषा के बोलने वालों और उनके सम्मान को बचाने की।
यकीनन हरेक दुधबोली का यही संकट है।
तमाम नीतिकारों और अध्येताओं को पर्वतीय उत्तराखंड के ग्राम समाज की, रहवासियों की चिंता करनी चाहिए।उनका जीवन लगातार मुश्किल हुआ है और वे अपनी जड़ों से उखड़ रहे हैं।यही लोग वास्तव में भाषा के असली रक्षक हैं और सूखती जल धाराओं के भी।
अगर लोगों की आजीविका किसी और भाषा से चलेगी तो वे तुरंत उसे ग्रहण करेंगे ही।
पर्वतीय उत्तराखंड के गांवों की रक्षा से ही पर्वतीय उत्तराखंड की सभी दुधबोलियां बच सकती हैं।
जोड़, आन, कथा, भगनौल,बैर,न्यौली, झवाड़, भेईनी, ढोसका जैसी तमाम विधाएं सीमेंट और कंक्रीट के ढेर में नहीं जन्म लेती और न गईं, बोली जाती हैं।इनके लिए ग्राम्य समाज का जीवंत परिवेश चाहिए और हम उस परिवेश को बचाने में मददगार बनेंगे तो निश्चित ही हम जमीन की भाषा को भी बचा सकेंगे। बैठक मे जनमैत्री संदठन के बची सिह बिष्ट , पद्मश्री यशोधर मठपाल , हयाद रावत ,सहित कई बिद्वानों ने अपनी बाकें रखी , अन्त मे कुमाऊनी के लिये काम कर रही शिक्षुका नमिता सुयाल ने सबका आभार ब्ृक्त किया

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