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अपने धार्मिक कर्तब्यों को छोडकर  , दूसरों को कोसना,पुतले फूंकना, फिर घर जाकर किसी नये समाचार में खो जाना , राजनेताओं कीचरण बन्दना व  अन्धी भक्ति करना ही इन दिनों धार्मिक कर्म बन गया है । इन दिनों कथित धर्म का एक नया संस्करण बाजार मे तैर रहा है । इसे धर्म के मूल  सिद्धान्तो से कोई लेना देना नही बल्कि राजनीति के लिये बिरोध व समर्थन करना  ही इस समुदाय का धार्मिक कर्तब्य रह गया है ।

  आज के समाज को बाजारों मे निराश्रित घूम रही गैया नही दिखती ।कूड़े ढेर मे पालीथीन खा रही गौवे ,जब बाजारो से पेट भरकर मालिक के पास पहंचती है तो ये केवल दूध नही देती बल्कि दूध के लाथ प्वास्टिक के अंश , खतरनाक कैमिकल भी प्रदान करती है ।शुद्ध दूध पीने क् लिये गौ वंशीय पशुओं का खान पान भी सुद्ध होना चाहिये तभी उनका दूध हमारे लिये अमृत हो सकेगा । पर बाजारों मे पालीथीन व कैमिकल युक्त कच़़डा खा रही गौवे  अपने जीवन को  ही खतरे मे ही नही डाल रही बल्कि यह प्रकृति को भी खतरों मे डाल रहे है । लोगो के पास इतनी भी सामान्य समझ नही है ,कि बचा हुवा खाना कूड़े़ में डालने के बजाय पास मे ही सुरक्षित जगह में डालना चाहिये ताकि गांय कुत्ते पौलीथीन ना खा सके , । धर्म नारों से नही , आचरण से ही बचेगा ।
ईस्लाम धर्म अपने आचरण के अनुसार ही आक्रामक है ।किसी भी मुस्लिम संगठन को हमने आज तक कहीं भी पुतला जलाते हुवे नही देखा । जबकि शुक्रवार उनके लिये नमाज पडने का केवल अक दिन नही बल्कि धार्मिक ,व सामाजिक समस्याओं के चिन्तन मनन का भी दिन है ईस्लाम के अनुयाई  महिने मे कम से कम चार दिन इकत्रित होते है । एक ही बात कहते है हम अल्लाह के शिवा किसी और की इबादत नही करेंगे ।पर तमाम पीर फकीरों , बाबाओं धर्म के ब्यापारियों , व तमाम तरीके के पुतले बनाकर उनको पूदमे के बाद नदियों मे धकेलने वाला समाज , ना तो कभी एक साथ बैठता है ना ही सामाजिक मुद्दों मे चिन्तन करता है , ना ही ृह उद्घोष करता है कि वह ईश्वर के शिवा किली से हार नही मानेगा ।भगत सिंह जैसा क्रान्तिवीर पैदा तो हो पर पड़ोसी के घर में इसी भावना वाले मानसिक अवसाद से ग्रसित फेशबुकिये इन दिनों  पर सेकुलरिज्म को गालिया दे रहे । जबकि वे स्वयं ही धर्म विहीन आचरण कर रहे है ।ये लोग हमेशा पुतलों का ही दहन करते है कभी अपनी जडता कमजोरियों का दहन तरने इकट्ठे नही होते  । मेलो को भी इम्होंमे अब बाजार का स्वरूप दे दिया है इन स्थलों मे  अब पूर्व की भांति मिलन नही होता बल्कि सरकारी पैसो से खरीदे सास्कृतिक कर्मी रही सही धार्मिकता को भी संमाप्त कर रहे है सृजनशीलता समापित हो पही है । प्रदर्शन ज्यादा हो गये है ।अब तो गाय सड़को मे घूम रही है गायों के पुतले  पूजा व मन्दिरों की शोभा बढा रहे है । असली गाय अपने अन्तिम दिनों को गिन रही है ।एक चलती फिरती गाय  अपने तन से ,प्रकृति की सफाई , दूध से पालन, मूत्र से रोगो व कीटाणुओं का दमन , गोबर से खाद्य , उत्पादन, व उसका बछड़ा यानि बैल  अपने कन्धों से भूमि की जुताई ,कटाई मड़ाई , ढुलाई  सब करता है ।ये गौवंशीय पशु  स्वभाव से प्रेम पूर्ण ब्यवहार अपने पालने वाले को प्रदान करती है । पर  कथित धार्मिक सेकुलरिज्म को गालिया दे रहा ,संवेदनहीन मनुष्य उसे लावारिस छोड़ रहा है । सनातन धर्म का यह सनातन नियम है कि उसमें गाय के बिना जीवन की कल्पना ही नही है ।सेकुलरिज्म का अर्थ है कि सभी धर्मो की सम्मान करना , जो धार्मिक जानकारियों से  अनभिज्ञ है , वही यह समझ सकता है कि धर्म एक  ही है, सबका सम्मान हो ,पर इसके लिये सह अस्तित्व जरूरी है जो सहअस्तित्व मे बाधक है उनसे लड़मा भिडना एक राजब्यवस्था बनाना भी धर्म है  यदि दो बिचारधारायें एक दूसरे के खिलाफ है, तो ये धर्म नही सम्प्रदाय कहे जाईगे ,यह तो मत है ।
जो खुद धार्मिक आचरण नही करते ,सनातन धर्म के छ : दर्शनों ,चार वेदो , व कमसे कम आठ उपनिषदों से परिचित नही है  तैतीस कोटि देवताओं को नही जानते ।  वे पुतला पूजन , पुतला ,संरक्षण ,पुतला दहन , पुतला मंण्डन को धर्म मान रहे है । ऐसे बचपने वाले काल्पनिक अब्यवहारिक धर्म का मिट जाना एक स्वभाविक प्रक्रिया है । जैसे कि हम देख रहे है , हाल के वर्षो मे गौ पालन, खेती , नैतिक शिक्षा , कुल परम्परा , शारिरिक विकास के खेल ,मानसिक मंथन ,मे कमी ,  माता पिता आचार्यो के सम्मान में कमी, गुरुड़म , चमत्कारों पर श्रद्धा, भूत प्रेत पूजन , कर्म से बिमुखता ,कम समय मे धनवान बनने की लालसा , धनार्जन मे ही सुख , स्त्री मातृत्व मे कमी, यह प्रदर्षित कर रहा है कि मानव पूरी तरह बाजार की गिरफ्त मे है , अब वह राजनैतिक बाजार का भी प्रोडक्ट बन बन गया है । यह प्रोडक्ट राजनैतिक पार्टियों के लिये खाद बीज , पानी का काम कर रहा है जिसकी आड़ मे राजनेता समाज बिरोधी कार्यो को अंजाम दे रहे है । मानवता धनवानों की गिरफ्त मे फंसती जा रही है । इसे रोकने हेतु आध्यात्मिक बल बढाना जरूरी है । आप्य समाज ने देश मे दो भी कार्यक्रम  चलाये थे   आर्य समाज में आये धनपशुओं ने  इन कर्मयोगियों को अस्थिर कर दिया है  आर्य समाज भी अब वेद बिरोधी राजनैतिक ब्यावसाईयों के हाथों में जा रहा है। संसाधन राजनीति के लिये प्रयोग मे लाये जा रहे है । अब यह वैगिक प्रचार आन्दोलन  राजमैतिक भाटचारण के स्थल बन गये है । जिससे आर्य समाज कमजोर व नेता मदबूत , नेताओं के पुत्र पुत्रिया खानदान आर्थिक सम्पन्न होते जा रहे है । ओउम अयंत इद्म आत्मा …का भाव संाप्त हो गया है । मम्त्र केवल बोलने के लिये रह गये है मनन दूर हो गया है ।

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