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देश में यो तो बोलियो के विकास में हिन्दी की सहायक बोलियों का बड़ा योगदान है जिसमे कृष्ण व राम भक्तिधारा ,तथा कवीर , रसखान सहित कई कवि मोजूद है । पर खड़ी बोली हिन्दी साहित्य के विकास मे महर्षी दयानन्द का योगदान प्रमुख है ।136 साल पहले उदयपुर में हिन्दी का पहला ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश , जब उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश को सबसे पहले संस्कृत में लिखा तब सहयोगियों की सलाह पर वे सीघ्र ही वह समझ गये कि लोकभाषा व राष्ट्रभाषा का अपना महत्व है । उन्होंने कहा कि यद्यपि मेरी मातृ भाषा गुजराती है पर देश के एक बडे भू भाग में आंचलिक हिन्दी बोली जाती है । उन्होंने कहा कि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है पर प्रचलित भाषाओं मे हिन्दी की बोलिया ज्यादा है । 1870 के दशक मे उन्होंने जब सत्यार्थप्रकाश हिन्दी मे लिखी तब खडी बोली हिन्दी उतनी परिष्कृत नही थी । हिन्दी विकास के क्रम मेॆं महर्षि दयानन्द से प्रेरित बाबू भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ,मुंशीप्रेमचन्द्र , विद्यासागर नौटियाल बाबू गुलाब राय ,अल्मोड़ा मे 1911-13 मे आर्य समाज के सत्य बृत सत्यार्थी ने पहला पुस्तकालय खोला इससे साहित्यकारों को एक पढन -पाठन का माहौल मिला । साहित्यकारों की एक शंखला स्थापित हो गई । शिवानी से लेकर सुमित्रानन्दन पन्त , वलवन्त मनराल , से आगे बढते हुवे वर्तमान में रमेश चन्द्र साह तक यह यात्रा जारी है

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