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एक लाख तैतीस हजार करोड रुपये के कर्ज मे डूबी , भारतीय अर्थब्यवस्था , के सभले बिना रोजगार के अवसरों मे बृद्धि सम्भव नही है ,। इसके लिये देश मे पूंजी निवेश व परम्परागत रोजगार को पुनर्जीवित करना पडेगा यदि गरीबों मजदूरों व आम जनता के हाथ मे पैसा ही नही आयेगा तो इन्डस्ट्री में उत्पादिक , कार बाईक , सरिया सिमेन्ट लोहा , सोना चांदी , कपडे आदि – आदि खरीदने के लिये धन कहा से आयेगा।यदि खरीददारी नही हुई तो ये उद्योग बन्द हो जाईगे।मन्दी से लाखो लोगो के बेरोजगार होने का भय है अकेले बैको के बिलय से ही लाखो पद समाप्त हो गये है । सरकार बैकों को धनवानों को सौपने की लगभग तैयारी कर चुकी है किन्तु कर्मचारियों के बिरोध के कारण यह संम्भव नही है ।देश के आम नागरिकों पर जी एस टी का बोझ बढा है तो देश मे कार्पोरेट यानि कम्पनियों पर टैक्स का बोझ घटा है । सवाल यह है कि कार्पोरेट टैक्स के कम होने के बावजूद देश मे नये उद्योग क्यों नही लग रहे , ये कार्पोरेट आखिर देश का पैसा कहां ले जा रहे है ।क्या बिदेशों मे सुरक्षित भाग जाने का ठिकाना तो नही ढूढ रहे । यह सोचने योग्य विषय है ।

एक लाख तैतीस हजार करोड रुपये के कर्ज मे डूबी , भारतीय अर्थब्यवस्था , के सभले बिना रोजगार के अवसरों मे बृद्धि सम्भव नही है , यदि गरीबो मजदूरों व आम जनता के हाथ मे पैसा ही नही आयेगा तो इन्डस्ट्री मे उत्पादिक , कार बाईक , सरिया सिमेन्ट लोहा , सोना चांदी , कपडे आदि – आदि खरीदने के लिये धन कहां से आयेगा । देश के आम नागरिकों पर जी एस टी का बोझ बढा है तो देश मे कार्पोरेट यानि कम्पनियों पर टैक्स का बोझ घटा है ।अधिक कमाई होने के बाद भी कम्पनियां अपना कारोवार समेट रही है ।यह सोचने की बात है ।कोई भी ब्यापारी अपना शो रूम तब खोलता है जब सामान की बिक्री होती है । सामान की बिक्री तब होंगी जब लोगों के हाथों में पैसा होगा पैसा तब होगा जब रोजगार होगा

देश मे कर्ज का बोझ बढा है ।सरकार को यह पैसा ब्याज समेत बिदेशी बित्तीय संस्थाओं को लौटाना है । यह कर्ज पिछली सरकारों का इतना नही है जितना नई सरकारों ने ले लिया है । नई सरकारो ने देश को चकाचौध के सपने दिखाये है , सरकार देश को अमेरिका बनाना चाहती है । इसके लिये सरकार के पास ढचांगत ईमानदार तन्त्र नही है ,। नेहरू युग मे अधिकारी व कर्मचारी ईमानदार व जबाबदेह थे अंग्रेजो का कल्चर कुछ बचा था ,तब के आई सी एस अधिकारी अधिकार सम्पन्न व सरकार व आम नागरिको के प्रति ज्यादा जबाबदेह थे अब देश उन आई ए एस अधिकारियों के सहारे चल रहा है , जिन्हे राजनेताओं ने कठपुतली बना कर रखा है । ये अधिकारी यदि सत्ता के चहेते है तो जनता कुछ भी नही कर सकती ये सर्वोच्च बुद्धिमान लोग केवल ठेकेदारी के लिये नेता बने लोगो की चापलूसी करने के लिये वाध्य है ।

कोई भी देश अपने पन्थीय क्रियाकलापों के कारण महान नही बनता बल्कि कर्तब्यो के निर्वाह से महान बनता है ।यदि केवल धर्म से ही आगे बढना होता तो तिब्बत गुलाम नही शक्तिशाली देश होता वहां के लांबा लोग तो आध्यात्मिक साधना मे लगे रहने वाले लोग है , पाकिस्तान , बांग्लादेश , सीरिया ईरान ईराक अपने साम्प्रदायिक आचरण के बाद भी आगे नही बढ पाये ।

अब भारत के लोग भी इन्ही देशों की राह पर चल रहे है । इस्लामिक चरमपन्थ की राह पर हिन्दु चरमपन्थ भी बढ रहा है । ये एक ऐसा द्वन्द है जिसमे राजनीति तो मजबूत हो रही है पर अर्थ तन्त्र कमजोरी की ओर है । आज वे सब लोग जो नेहरू इन्दिरा की नीतियों के कारण पेन्शन पा रहे थे जिनके बल पर अभी भी अर्थब्यवस्था बची हुई है , वे सब नेहरू व काग्रेस के कटु आलोचक है ।इन्होंने टी वी चैनलों द्वारा फैलाये गये धार्मिक आवरण ओड़ लिया है। वे 1947 से पूर्व की परिस्तिथियों का आंकलन फेसबुक व वडसप ज्ञान व टी वी के तिलिस्म से कर रहे है । लोग अपने धर्म से सुखी नही है बल्कि दूसरों से कह रहे है कि वह अपने सम्प्रदाय के नियमों का पालन क्यों कर रहा है ,। धन से धर्म की रक्षा होती है विचारों से नही अत: आम लोंगो को रोटी रोजी रोजगार पर भी चिन्तन जरूर करना चाहिये ।

एक बात जो महत्वपूर्ण है आने वाले दिनों में अब बैक भी निजि हाथों मे देने की तैयारी है ऐसे मे फिर से यदि साहुकारी लौट आये तो आश्चर्य नही , अब दूध का पहरा बिल्ली के हाथों मे जाने की तैयारी है ।

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