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यो तो उत्तराखण्ड कई प्रकार की विधाओ के लिये जाना जाता है पर कुछ लोग अपने विशिष्ट जुनून के लिये जाने जाते है । पिछले दिनों कोटद्वार जाना हुवा तो कमल दा की याद आ गई हमारे साथ भी कमल दा विभिन्न आन्दोलनों मे सक्रिय रहे थे ।

पिछले तीस सालों से हर दस साल मे पहाड संस्था द्वारा आयोजित होने वाली असकोट से आराकोट यात्रा में कमल जोशी , पद्म श्री शेखर पाठक की टीम के एक शानदार अग्रणी शाथी के रूप मे सामने आते रहे यदि अगली यात्रा सम्भव हुई को कमल दा उसमे नही होंगे। क्योंकि अब वे दुनिया मे नही है । असकोट से आराकोट यात्रा 1974 मे जिन नवयुवकों ने आरम्भ की थी जिसमे शमशेर सिंह बिष्ट , शेखर पाठक , कुवर प्रसून प्रताप शिखर का नाम प्रमुख है । सम्भवत: यह पहाड को समझने की पहली यात्रा थी , इस यात्रा मे कई नवयुवक शामिल हुवे थे ,। यात्रा के बारे मे शमशेर सिंह बिष्ट बताते थे कि पहली बार हमने पहाड को असकोट से आराकोट तक पैदल ही नापा था बिना किसी संसाधन के आयोजित हुई इस यात्रा को वे पहाड को समझने की यात्रा कहते थे । वाहनी के विचारधारा से एकदम उलट जाने वाले एड गोविन्द भण्ड़ारी भी इस यात्रा के रोमान्चकारी अनुभवो को बताते है कि किस तरह से यात्रियों को अनुशासन मे रहना पडता था । यह पहाड़ को जानने समझने व आपस मे जुड़ने की यात्रा थी ।आगे चलकर इस यात्रा ने उत्तराखण्डीय समाज मे एकता का अंकुर पैदा किये उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक एकता कायम की । इन्ही यात्राओं की उपज थी कमल जोशी । हिमालयी उत्तराखण्ड़ अपनी विशिष्टताओ के लिये जाना जाता है ।कमल जोशी की तस्बीरे इन्हीं बिशिष्टताओं को रेखांकित करती थी ।

पहाड के महिलाओं के दर्द को उकेरती तस्वीर

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