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आर्य कौन है ? आर्य कहाँ से आए? आर्य शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई? आर्यों का मूल देश कौन सा है?

मनुष्य, पशु, पक्षी, वृक्ष आदि भिन्न-भिन्न जातियाँ है। जिन जीवों की उत्पत्ति एक समान होती है वे एक ही जाति के होते है। अत: मनुष्य एक जाति है। जाति रूप से तो मनुष्यों में कोई भेद नहीं होता है परंतु गुण, कर्म, स्वभाव व व्यवहार आदि में भिन्नता होती है। कर्म के भेद से मनुष्य जाति में दो भेद होते है-आर्य और दस्यु। दो सगे भाई आर्य और दस्यु हो सकते है। वेद में कहा है “विजानह्याय्यान्ये च दस्यव:” अर्थात आर्य और दस्युओं का विशेष ज्ञान रखना चाहिए। निरुक्त आर्य को सच्चा ईश्वर पुत्र से संबोधित करता है। वेद मंत्रों में सत्य, अहिंसा, पवित्रता आदि गुणों को धारण करने वाले को आर्य कहा गया है और सारे संसार को आर्य बनाने का संदेश दिया गया है।

वेद कहता है “कृण्वन्तो विश्वमार्यम” अर्थात सारे संसार को आर्य बनावों। वेद में आर्य (श्रेष्ठ मनुष्यों) को ही पदार्थ दिये जाने का विधान किया गया है “अहं भूमिमददामार्याय” अर्थात मैं आर्यों को यह भूमि देता हूँ। इसका अर्थ यह हुआ कि आर्य परिश्रम से अपना कल्याण करता हुआ, परोपकार वृत्ति से दूसरों को भी लाभ पहुंचवेगा जबकि दस्यु दुष्ट स्वार्थी सब प्राणियों को हानि ही पहुंचाएगा। अत: दुष्ट को अपनी भूमि आदि संपत्ति नहीं दिये जाने चाहिए चाहे वह अपना पुत्र ही क्यों न हो।

बाल्मीकी रामायण में समदृष्टि रखने वाले और सज्जनता से पूर्ण श्री रामचन्द्र जी को स्थान स्थान पर ‘आर्य’ व “आर्यपुत्र” कहा गया है। विदुरनीति में धार्मिक को, चाणक्य नीति में गुणीजन को, महाभारत में श्रेष्ठबुद्धि वाले को, गीता में वीर को ‘आर्य’ कहा गया है। महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने आर्य शब्द की व्याख्या में कहा है कि जो श्रेष्ठ स्वभाव, धर्मात्मा,परोपकारी, सत्य विद्या आदि गुणयुक्त और आर्यावर्त देश में सब दिन से रहने वाले हैं उनको आर्य कहते है। आर्य संज्ञा वाले व्यक्ति किसी एक स्थान अथवा समाज में नहीं होते,अपितु वे सर्वत्र पाये जाते है। सच्चा आर्य वह है जिसके व्यवहार से सभी को सुख मिलता है, जो इस पृथ्वी पर सत्य, अहिंसा, परोपकार, पवित्रता आदि व्रतों का विशेष रूप से धारण करता है।

प्रश्न :- मनुष्यों की आदि सृष्टि किस स्थल में हुई ?
उत्तर :- त्रिविष्टप अर्थात जिस को ‘तिब्बत’ कहते है।

प्रश्न :- आदि सृष्टि में एक जाति थी वा अनेक ?
उत्तर :- एक मनुष्य जाति थी। पश्चात ‘विजानह्याय्यान्ये च दस्यव:’ यह ऋग्वेद का वचन है। श्रेष्ठों का नाम आर्य, विद्वानों का देव और दुष्टों के दस्यु अर्थात डाकू, मूर्ख नाम होने से आर्य और दस्यु दो हुए। ‘उत शूद्रे उतार्ये’ अथर्ववेद वचन। आर्यों में पूर्वोक्त कथन से ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य और शूद्र चार भेद हुए। मूर्खों का नाम शूद्र और अनार्य अर्थात अनाड़ी तथा विद्वानों का आर्य हुआ।

प्रश्न :- फिर वे यहाँ कैसे आए ?
उत्तर :- जब आर्य और दस्युओं में अर्थात विद्वान (जो देव) व अविद्वान (असुर), उन में सदा लड़ाई बखेड़ा हुआ करता, जब बहुत उपद्रव होने लगा तब आर्य लोग सब भूगोल में उत्तम इस भूमि के खण्ड को जानकार यहीं आकर बसे। इसी से इस देश का नाम ‘आर्यावर्त’ हुआ।

प्रश्न :- आर्यावर्त की अवधि कहाँ तक है ?
उत्तर :- मनुस्मृति के अनुसार उत्तर में हिमालय, दक्षिण में विन्ध्याचल, पूर्व और पश्चिम में समुद्र। हिमालय की मध्यरेखा से दक्षिण और पहाड़ों के भीतर और रामेश्वर पर्यन्त विन्ध्याचल के भीतर जीतने देश है उन सब को आर्यावर्त इसलिए कहते है कि यह आर्यावर्त देव अर्थात विद्वानों ने बसाया और आर्यजनों के निवास करने से आर्यावर्त कहाया है।

प्रश्न :- प्रथम इस देश का नाम क्या था,इस में कौन बसते थे?
उत्तर :- इस के पूर्व इस देश का कोई नाम भी न था और न कोई आर्यों के पूर्व इस देश में बस्ते थे। क्योंकि आर्य लोग सृष्टि की आदि में कुछ काल के पश्चात तिब्बत से सूधे इस देश में आकर बसे थे।

प्रश्न :- कोई कहता है कि ये लोग ईरान से आए है ?
उत्तर :- किसी संस्कृत ग्रंथ में वा इतिहास में नहीं लिखा कि आर्य लोग ईरान से आए। अत: विदेशियों का लेख मान्य कैसे हो सकता है। मनुस्मृति में इस आर्यावर्त से भिन्न देशों को दस्यु और मलेच्छ देश कहा है।

कुछ लोग हिन्दू शब्द के पक्षपाती हैं। उनकी कल्पना है कि “सिंधु” अथवा “इन्दु” शब्द से हिन्दू बन गया, अत: यहाँ के निवासियों को हिन्दू कहना ठीक है। यह बात अप्रामाणिक है। प्रथम तो उनके मत से ही सिद्ध है कि हिन्दू नाम पड़ने से पूर्व कोई और नाम था और वह नाम निःसन्देह आर्य ही था| कुछ हठी दुराग्रह लोग ऋग्वेद में आए विभिन्दो व इन्दु शब्द को तोड़ मरोड़ कर वेदों में हिन्दू शब्द सिद्ध करने का प्रयास करते रहते हैं!

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