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केन्द्र की मोदी सरकार सरकार धार्मिक पर्यटन का नया कन्सैप्ट लाई है । इसी कन्सैप्ट रे तहत काशी विश्वनाथ कैरिड़ोर , केदानाथ कैरिडोर , आदि इसी सोच का हिसिसा है पर जैन समाद को धार्मिक पर्यटन मंजूर नही है । पहली बार इस धार्मिक पर्यटन के नाम पर देश भर मे प्रदर्शन हो रहे है । संम्वेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित किये जाने के खिलाफ जैन समाज उठ खड़ा हुवा है ।झारखंड के गिरिडीह जिले में पारसनाथ पहाड़ी को प्रधानमन्त्री की सोच के अनुरूप झारखण्ड़ सरकार ने पर्यटन स्थल घोषित कर दिया है । इसे पर्यटक स्थल घोषित किये जाने के खिलाफ जैन समाज पूरे देश में बिरोध प्रदर्शन करने लगा है । इस साधना स्थली को पर्यटन स्थल घोषित करने के बाद देश भर में विरोध में प्रदर्शन का सिलसिला जारी है। पारसनाथ पहाड़ी जैन समाज के लिये जैन धर्मावलम्बियों का वैश्विक स्तर पर सर्वाेच्च तीर्थ ,सम्मेद शिखरजी के रूप में विख्यात है। यह पहाड़ी इसलिये महत्वपूर्ण है कि यहां जैनियों के 24 में से 20 तीथांकरों की निर्वाण भूमि है। इसी कारण यह उनके लिए पूज्य क्षेत्र है। जैन समाज का कहना है कि पर्यटन स्थल घोषित होने से इस पूज्य स्थान की पवित्रता भंग होगी। इनका कहना है जैन समाज अपनी पवित्र खानपान , शुद्ध आचार ब्यवहार का हिमायती है, पर्यटक स्थल साधना व आचार ब्यवहार के केन्द्र ना होकर ब्यभिचार, मांस भक्षण और मदिरा पान जैसी अनैतिक गतिविधियों के केन्द्र बन जाते है । इससे अहिंसक जैन समाज की भावना आहत होगी। जैन समाज के लोग पारसनाथ को वैष्णव देवी और वाराणसी की तरह तीर्थ स्थल घोषित करने की मांग कर रहे है। ना कि पर्यटन स्थल बनाने की , हालाकि सरकार इन्बें भी धार्मिक पर्यटन के कन्सप्ट पर ही बिकसित कर रही है । जैन समाज सरकार पर आरोप है कि सरकार इसे पर्यटन स्थल बनाने मे आमादा है । इस संबंध में झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने भी केंद्र सरकार को पत्र लिखकर पारसनाथ को तीर्थस्थल घोषित करने का आग्रह किया है। राज्य सरकार की ओर से भी जैन समाज को भरोसा दिलाया गया है कि पारसनाथ की पवित्रता बरकरार रहेगी। पर जैन समाज आशंकित है ।भारत में जैन समुदाय के लोगों ने नई दिल्ली में इंडिया गेट के अलावा देश के अलग-अलग जगहों मे प्रदर्शन किया है। 27 जनवरी से 3 फरवरी तक जैन धर्मावलंबियों नें पारसनाथ में धार्मिक सम्मेलन का आयोजन किया है। इस सम्मेलन में सम्नेद शिखर को लेकर भावी कार्यक्रमों पर भी चर्चा प्रस्तावित है।झारखंड सरकार के मुताबिक सम्मेद शिखर के रूप में विख्यात पारसनाथ को केंद्रीय वन पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अगस्त 2019 में ही इको संसेसेटिव जोन के रूप में अधिसूचित किया है। ऐसे क्षेत्र में वन और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली किसी भी नई संरचना का निर्माण नहीं हो सकता है। जबकि पर्यटन स्थल के रूप में नोटिफाई किए जाने के पीछे का उद्देश्य जैन धर्मावलंबियों के लिए इस स्थान पर समुचित सुविधाएं उपलब्ध कराना है पर जैन समाज की आशंकाये कम होने का नाम ही नही ले रही
जैन समाज का कहना है कि सम्वेद शिखर उनका तीर्थ स्थल है , ना कि मनोरंजन स्थल पर्यटक किसी भी स्थल में मनोरंजन के लिये आते जाते है , इस पवित्र शिखर को जूता चप्पल , मांस शराब , मनोरंजन , ब्यभिचार का केन्द्र नही बनने दिया जायेगा ।
क्या हुवा था केदारनाथ में क्या जैन समाज भी ऐसी ही पर्यटन की आशंका कर रहा है ?
केदारनाथ आपदा 2014 में भी पाया गया कि वहां कई गर्भवती महिलायें व नवविवाहित जोड़े व प्रेमी – प्रेमिकाये भी आपदा की भेंट चढ गये । बहुत से लोग बचा लिये गये जबकि बहुत से नही बचाये जा सके । पौराणिक आख्यानों के अनुसार केदारनाथ पाण्डवों की मोक्षयात्रा का एक पड़ाव था । किन्तु यह अब धार्मिक पर्यटन का केन्द्र है लाखों लोग हिमालय की रोमांचक यात्रा का अनुभव लेने के लिये केदारनाथ जा रहे हे ,। हिमालय की उन बर्फीली पहाड़ियो में जहां शँख व घण्टियां बजाना भी मना है वहां अब हौलिकैप्टर की गड़गडाहटे हिमालय की शान्ति भंग करती है । केदारनाथ अब साधको की साधना स्थली ना होकर सरकारी कमाई का जरिया बन चुका है , जैन समाज इन सब आशंकाओं से परितित होकर ही सम्वेद शिखर को कमाई का जरिया बनाने के खिलाफ है यह समाज इसे तीर्थ स्थल बनाने की मांग कर रहा है , ताकि आम पर्यटकों के बजाय सलैक्टिव धार्मिक मान्यताओं के लोग ही सम्बेद शिखर जा सकें ।