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टेलीविजन पर चौबीसो घन्टो कू बहसों से नही वल्कि धरातल मे संस्कारों व मर्यादाओं से ही सनातन बचेगा वर्तमान मे संस्कारों का जो हाल हो रहा है उसे देखकर लगता है कि सनातन घर्म मे बौद्धिकता का नाश हो रहा है । इन दिनों दारू पीकर हुल्लड़ मचाने व फोटोग्राफी करा लेने का नाम ही विवाह हो गया है रिश्तेदारों और दोस्तों को इकट्ठा करके दारु मीट की पार्टी डीजे पर नाचते हुए लोगों पर पैसा लुटाने को को ही अब लोग विवाह कहने लगे हैं। विवाह में दारू पिलाना अनिवार्य हो गया है ।


विवाह एक कर्तब्य बोध व जिम्मेदारी की स्वीकारोक्ति है जो वेदी के ऊपर प्रज्वलित अग्नि के मंडप के सामने उपस्थित बिद्वानों को साक्षी मानकर पंडित जी के मंत्रोच्चारण के भाव के साथ देवताओं का आह्वान करके विवाह की वैदिक रस्मों को सम्पन्न कराने को विवाह कहते हैं

इन दिनों विवाह मे सबसे जरूरी कार्यो को लोग भूल जाते है लोग कहते हैं कि आठ 8 महीने से विवाह की तैयारी कर रहे हैं पंडित जी जब सुपारी मांगते हैं तो कहते हैं अरे वह तो भूल गए जो सबसे जरूरी काम था ,उसी को लोग भूलने लगे है ।इन दिनों विवाह की सामग्री भूलना आम बात है। दिखावे की तैयारी तो कर्जा ले लेकर भी सम्पन्न होती है ऋषियों ने कहा है जो जरूरी काम है वह अवश्य.होने चाहिये जो असली काम है, जिसे सही मायने में विवाह कहते हैं* वह काम गौण होने लगे है ।


6 घंटे नाचने में लगा देंगे, 4 घंटे मिलने में लगा देंगे, 5 घंटे* जयमाला में लगा देंगे, 4 घंटे फोटो खींचने में लगा देंगे किन्तु जब विवाह का असली काम आरम्भ होता है तब पंडित जी के सामने आते ही लोग कहते है । पंडितजी जी जल्दी करो जल्दी करो


पंडित जी बेचारा क्या करे, वह भी कहते हैं सर स्वाहा स्वाहा जब तुम खुद ही बर्बाद होना चाहते हो तो पूरी रात जगना , दिन भर रस्मों के लिये मंण्डप मे इन्तजार करना पंडित जी के लिए जरूरी है। ऐसा ही हाल रहा तो उन्हें भी अपना कोई दूसरा काम धंधा ढूंढना ही पड़ेगा ।। विवाह केवल 7 फेरों का ही काम नही है वह कर्तब्य बोध व मर्यादा स्थापित करने वाला संस्कार है, यदि केवल फेरे ही लगाने है तब तो वह वह किसी मंदिर में, किसी गौशाला में, किसी आश्रम या धार्मिक स्थल पर, किसी पवित्र स्थान पर करें पंण्ड़ित का क्या काम ।


अक्सर लोग इन दिनों उन मन्दिरों मे विवाह कर रहे है जहां हजारों पेटियां दारू की पी व पिलाई गई हों जहां हजारों बकरे मुर्गों की हड्डियां फेंकी गई हों, क्या उस मन्दिर मे वैदिक देवता स्वच्छ वातावरण की अनुभूति दिला सकते है । ऐसे भीभत्स स्थानों मे देवता नही भूतों पिचाशों का ही आवागमन होंगा , वैदिक देवता तो आशीर्वाद देने के लिए आ ही नही सकते , यज्ञ किसी अपवित्र स्थान में हो ही नही सकता , ।भलेहि वह आपके ईष्ट का ही मन्दिर क्यों ना हों ।

नाचना कूदना खाना-पीना जो भी करना है वह विवाह वाले दिन से पहले या बाद में करो; मगर विवाह का कोई एक मुहूर्त का दिन निश्चित करके उस दिन सिर्फ और सिर्फ विवाह से संबंधित रीति रिवाज होने चाहिए और यह शुभ कार्य किसी पवित्र स्थान पर करें जिस में गुरु जन आवें घर के बड़े बुजुर्गों का जिसमें आशीर्वाद मिले।


आप खुद विचार करिए हमारे घर में कोई मांगलिक कार्य है जिसमें सब आएँ और अपने ठाकुर को भूल जाएँ अपने भगवान को भूल जाएँ अपने कुल देवताओं को भूल जाएँ।
मेरा आपसे करबद्ध निवेदन है विवाह नामकरण अन्य जो धार्मिक उत्सव हैं, वह शराब के साथ संपन्न ना हो उन में उन विषय वस्तुओं को शामिल ना करें जो धार्मिक कार्यों में निषेध है ऐसा करने से सदैव कल्याण होगा। सनातन धर्म व उसकी वैज्ञानिक मान्यतायें बचेगी ।