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अल्मोडा 24 नवम्बर उत्तराखण्ड के जनसंघर्षो को जब 1979 मे एक राज्य आन्दोलन के रूप मे संगठित करने रा बिचार हुवा तब पूर्व से ही राज्य की संकल्पना को मन मे सॆजोये हुवे स्व इन्द्रमणि बढोनी ने इसमें अपने आप को झों क दिया । आज 24 दिसम्बर को उनकी जयन्ती पर उत्तराखण्डी उन्हें याद कर रहे है । अलग राज्य बनाने के लिए आंदोलन की शुरुआत करने वाले इंद्रमणि बड़ोनी को उत्तराखंड का गांधी कहा जाता है ।राज्य आंदोलन को लेकर उनकी सोच व समझ को लेकर आज भी उन्हें शिद्दत से याद किया जाता है।
उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने के लिए आंदोलन की शुरुआत करने वाले इंद्रमणि बड़ोनी को उत्तराखंड का गांधी कहा जाता है, इंद्रमणि बड़ोनी आज ही के दिन यानी 24 दिसंबर, 1925 को टिहरी जिले के जखोली ब्लॉक के अखोड़ी गांव में पैदा हुए थे। उनके पिता का नाम सुरेश चंद्र बडोनी था। बड़ोनी का जीवन अभावों में गुजरा। उनकी शिक्षा गांव में ही हुई। देहरादून से उन्होंने स्नातक की उपाधि हासिल की थी। वह ओजस्वी वक्ता होने के साथ ही रंगकर्मी भी थे। लोकवाद्य यंत्रों को बजाने में निपुण थे।

जब गांधी की शिष्या मीराबेन पहुंची थी टिहरी

इस गांधिवादी विचारक के जीवन मे नया मोड तब आया जब 1953 मे वे सामाजिक कार्यो से जूड़े थे । इसी दौरान महात्मा गांधी की शिष्या मीराबेन टिहरी भ्रमण पर पहुंची थी। बड़ोनी की मीराबेन से मुलाकात हुई। इस मुलाकात का असर उन पड़ा। वह महात्मा गांधी की शिक्षा व संदेश से प्रभावित हुए। इसके बाद वह सत्य व अहिंसा के रास्ते पर चल पड़े। पूरे प्रदेश में उनकी ख्याति फैल गई। लोग उन्हें उत्तराखंड का गांधी बुलाने लगे थे।

उत्तराखण्ड क्रान्ति दस की नीव पड़ते ही वे दल मे विशेष रूप से सक्रिय हो गये । 105 दिनों की पदयात्र से उन्हों राज्य की अवधारणा को जन जन तक पहुचाया उनका सपना था कि गैरसैण उत्तराखण्ड की राजधानी बने इसी अवधारणा को उकांद ने 1992 में मकर संक्रांति के दिन बागेश्वर के प्रसिद्ध उत्तरायणी कौतिक से उत्तराखंड की राजधानी गैरसैंण करने की घोषणा कर दी थी। हालांकि आज तक गैरसैंण स्थायी राजधानी नहीं बन सका। पहाड़ के लोग पहाड़ में ही राजधानी बनाने के लिए संषर्घरत हैं। वर्तमान मे भी आन्दोलन चल रहा है ।

उत्तराखंड राज्य चाहते थे बडोनी

उत्तराखण्ड़ जन संघर्ष वाहिनी ने पहाड़ की जन भावनाओं को उभार दिया था। पर उनमे राजनैतिक दल बनाने के लिये मतैक्य नही था ।1979 में मसूरी में उत्तराखंड क्रांति दल का कुमाऊ विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति डी डी पन्त के नेतृत्व मे गठन हुआ था। वह तब से इस दल के आजीवन सदस्य रहे ।उन्होंने उक्रांद के बैनर तले राज्य को अलग बनाने के लिए काफी संघर्ष किया था।

तीन बार विधायक बने थे बडोनी सबसे पहले वर्ष 1961 में अखोड़ी गांव में प्रधान बने। इसके बाद जखोली खंड के प्रमुख बने। इसके बाद देवप्रयाग विधानसभा सीट से पहली बार वर्ष 1967 में विधायक चुने गए। इस सीट से वह तीन बार विधायक चुने गए। हालांकि उन्होंने सांसद का भी चुनाव लड़ा था। कांटे की टक्कर हुई थी। अपने प्रतिद्वंद्वी ब्रहमदत्त से 10 हजार वोटों से हार गए थे। संघर्ष करते हुए बड़ोनी का 18 अगस्त, 1999 को देहावसान हो गया।