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जिन्हें मेहनत करनी है वे सदैव निष्ठा पूर्वक  अपनी पार्टियों को सीचते रहते है ।भारतीय राजनीति मे ऐसे कई चेहरे है  जो विचारधारा की कसौटी पर  हमेशा ही खरे उतरे । कुछ लोग ऐसे होते है कि वह बिना सत्ता के जी ही नही सकते उनके लिये सिद्धान्त कोई मायने नही ऱखते बल्कि सत्ता मायने रखती है , जिधर शहद देखा उधर ही जीब फेर ली ।, मेहनतकश राजनैतिक कार्यकर्ता उन मधुममक्खियों की तरह है जो शहद बटोरती रहती है पर खा नही पाती , शहद के लालची उन्हें शहद से दूर कर देते है , कृतज्ञता ब्यक्त करना तो दूर उनको याद तक नही किया जाता , ।

देश की राजनीति भी ऐसी ही है , बहुत से लोग है, जो शहद नही बटोर पाये , पर चने खाकर भी अपने दलों का झंण्ड़ा उठाये हुवे है , उन्हे ना तो जय की चिन्ता है ना ही पराजय की वह जनपक्षीय मुद्दे उठाते रहते है , पर जनता उनके संघर्षों का मूल्यांकन  नही करती , पैसो की खनखनाहट मूल्यांकन करने ही नही देती ,

  सत्ता की मलाई के चटोरे ताक पर बैठे रहते है कि उन्हे अवसर मिले तो फिर से सक्रिय हो जाये व निष्ठावान कार्यकर्ताओको या तो निर्देशित करे या  फिर निष्क्रिय कर दे बस मुख्य नेता को पकड़ लो तो सब कुछ अपना है उन्हे पता है  सत्ता हमेशा  उन्हें ही पसन्द  करती है व मुह बाहे खडी रहती है , अपने निष्ठावान कार्यकर्ता तो केवल संघर्ष के लिये ही बने होते है , ।

सोचिये जरा उन लोगों के बारे मे जिन्होंने सत्ता के सामने बिना किसी प्रलोभन  के अपना संघर्ष जारी रखा , वे लोग ब्यावहारिक दृष्ठि  से  अपने- अपने दलों के पिता व पितामह है ,यदि वे ना होते को ये सत्ताये कैसे बदलती ,।ये मलाई के चटोरे  हर जगह मलाई कैसे चाटते ।

सराहना के पात्र वे नेता नही है जो दलबदलू है, बल्कि सराहना उनकी होनी चाहिये जो तब भी पार्टियों के निष्ठावान कार्यकर्ता  थे जब सत्ता नही थी या नही है ,अब भी  निष्ठावान है जब सत्ता मे  है ,पर लाभ नही ले रहे , इसके बाद भी  अपनी पार्टियों मे डठे है ,पार्टियो को छोडकर शिकायत नही कर रहे , पार्टी का भला सोचकर ऐसे अवसरवादियों को गले लगा रहै है । खुद अभाव मे जी रहे है , किन्तु दलबदलुओं को मालामाल कर रहे है ।

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