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अल्मोड़ा शहर के नजदीक पाताल देवी के निकट कभी प्रसिद्ध सन्यासी माता आनन्दमयी का आश्रम हुवा करता था , एक जमाने मे यहा काफी तहल – पहल रहा करती थी , इन दिनो यहां कोई विशेष गतिविधिया नही होती पर इसी के निकट एक प्रचीन शिवालय है यहा आज भी लोग एकान्त मे चिन्तन मनन करते है, यह पाताल देवी के एक कोने में शान्त वातावरण में सुशोभित है । इस शिवालय का स्थल भी पाताल देवी के नाम से जाना जाता है । इस मन्दिर में फर्श से कुछ नीचे शिवलिंग, साथ में  शिव और माता पार्वती की प्रस्तर प्रतिमा व  देवता गणेश जी की प्रस्तर प्रतिमा मन्दिर के गर्भगृह के फर्श के कुछ नीचे शिलाखंड से लगी हुई हैं। मन्दिर के प्रांगण के नीचे एक चौकोर कुण्ड है जिसमें प्राकृतिक स्रोत का पानी भरा रहता है। इसी कुण्ड के नीचे पानी का एक धारा है जिससे अनवरत बारह मास पानी बहता रहता है। गर्मीवके इस मौसम मे जब एकाएक सोमेश्वर मे बादल फट गया कोसी मे मलुवा तबाही लेकर आया तब ऐसे ही धारे व नौले वोगों की प्यास बुझाते है , अभी लगभग गो दिन पहले की बात है जब प्रदेश की प्रमुख सचिव राधा रतूड़ी ने प्रदेश के नौलो धारों के लिये कोई योजना ना बनाने के लिये प्रदेश के सभी जनपदो को एक सप्ताह के तहत कार्यक्रम देने के निर्देश दिये , पर सवाल यह है कि क्या इस सब के बावजूद इन धारों व नौलों का संरक्षण हो रहा है । यदि हम पाताल देवी की बात करे तो इस शान्त -एकान्त वातावरण में कभी कभार कोई साधु-सन्यासी आकर मन्दिर के नीचे बने धर्मशाला में कुछ दिन निवास कर लेते हैं। आजकल साधु सन्याशियों के लिये बने देवालय समितियों के अधीन हो गये है । अब पात्री बिश्राम के विकल्प बहुत कम रह गये है ।इस स्थान में महाशिवरात्रि के शुभ दिन में मेला भी लगता है। मन्दिर परिसर सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। कुछ समय पूर्व चिन्तन-मनन करने और आत्मिक शांति के लिए लोग इस शान्त और एकांत वातावरण वाले परिसर में दिखाई देते थे। पाताल देवी के पास ही घुर्स्यू गाव मे कल्प बृक्ष भी है , कल्प बृक्ष को दुनिया का सबसे लम्बी उम्र वाला बृक्ष माना जाता है , । इसे देखने दूर -दूर से लोग आते है और इसकी प्रतीनता को सलाम करते है , ।

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