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चुनाव जेहन मे आते ही  बोट के शौदागरों केे मुह मे पानी आ जाता है ।  जब से चुनाव तय होते है इन शौदागरों के पास अलग अलग ब्रान्ड का नशा पहुचने   लगता है । इनका काम होता है कि जब से चुनाव घोषित हो तब से जब तक चुनाव सम्पन्न ना हो जाय बोटर को बेहोस ही रखना है

गांव का समाज किसी जमाने मे बेहत ईमानदार समाज था मेताओॆ की चाल ढाल देखकर अब ग्रामीण मतदाता भी बेईमान होने लगा है । जिसके पास धन नही उसके लिये बोटर के पास बोट गेमे का मन नही बताईये ऐसे मे भ्रष्टाचार नही होगा तो क्या होगा ।

नेतागण चुनाव लड़ने व जीतने के लिये अपनी सारी सम्पत्ति दांव पर लगा देते उसके बाद भी यह तय नही होता कि तुनाव मे जीत किसकी हेगी पर तय मानिये जिसके कार्यकर्ता  जितने खुथ होंगे उसकी जीत तय मानिये ।

लाखों रुपये जेब  से खर्च करने या किसी बडे ठेकेदार  से  पैसा लेकर चुनाव लड़ चुका मेता हारे या जीते पहला फोकस अपना धऩ वसूलना होता है । जनता केे काम दूसरे नम्बर पर है । ऐसे मे मेता बेईमानी ना कपे तो क्या करे ।

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