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आजादी के पिछले सत्तर सालों मे देश की एक बडी आबादी ने ना केवल शिक्षा पाई अपितु समाज के निचले पायदान पर खड़े लाखो परिवारों को आर्थिक रूप से समृद्ध भी किया है पर जिस शिक्षा के बल पर समृद्धि पाई अब वही शिक्षा समाज मे वैमनस्य फैलाने का आधार बन गई है । सोसियल मीड़िया पर हजारो बीडियो आड़ियो इन दिनों तैर रहे है । संघ द्वारा हिन्दुत्व को जिस प्रकार राजनीति की सीढी बनाया गया , उसी प्रकार अब ओ वी सी दलित संगठन भीम व बौद्ध को राजनीति का आधार बना रहे है धर्म का राजनीति मे प्रयोग करने से भलेहि सत्ता आसानी से मिल जाती हो पर इसके दूरगामी परिणाम बहुत ही घातक होते है ।

कथित मूलनिवासियों के सवाल हम सरस्वती को क्यों पूजें क्या उसमे स्कूल खोंले

आजकल सोसियल मीड़िया मे खूब विषवमन हो रहा है । जैसे हवा का गुण सुखाना , अग्नि का गुण जलाना है वैसे ही सरस्वती का गुण किसी विचारवान ब्यक्ति की आत्मा मे सत्य ज्ञान को प्रकाशित करना है , मूर्ति केवल एक संकेत है जैसे सैनिकों को किसी अज्ञात स्थल पर ले जाने के लिये किसी कूट या गोपनीय भाषा का प्रयोग होता है और सैनिक उसकी सहायता व संकेतों से निर्धारित स्थल तक पहुंच जाते है उसी प्रकार सरस्वती लक्ष्मी , दुर्गा , राम कृष्ण आदि उसी कूट भाषा के जीवन्त संकेतक है जो किसी तर्कशील ब्यक्ति को लक्ष्य तक पहुचाते है सरस्वती कोई डिग्री बांटने वाली देवी नही है जो भौतिक स्कूल खोले वह जिज्ञासुओं के अन्तरमन को ही स्कूल बना देती है । यह ज्ञान इन कुपढों को नही है

हम लक्ष्मी को क्यो पूंजे ?

या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता , संसार का वह कौन सा हिस्सा है जहां लक्ष्मी यनि धन नही पर उसे वही खोंज पाता है जिसे खोजने का प्राप्त करने का तरीका पता हो लक्ष्मी उसी का वरण करती है जो विष्णु जैसा रक्षक हो धन से ही मर्यादा की रक्षा के साथ ही व मर्यादा का विनास भी होता है , अंमेरिका , ब्रिटेन आदि – आदि देश दो आज सम्पन्न दिखाई देते है , उनकी सम्पन्न के पीछे उन करोड़ों गुलाम मजदूरो की हड्डी पसली लगी है जो इसके लिये मनु को गालिया देते है ।

मनु के अनुसार जन्म से सब अशिक्षित ही पैदा होते है परिवार मे माता पिता व आचार्य ही किसी को द्विज बनाते है

! जन्मने जायते शुद्रे संस्कारात द्विज उत्येते ! (मनु) संसार के पहले कानून निर्माता मनु ने लिखा कि मनुष्य का हर बच्चा जन्म से शूद्र ही जन्म लेता है उसे कुछ भी ज्ञान नही होता परवरिस व संस्कारों से वह ज्ञानवान बनता है । जो ना तो पढता है और पढकर भी प्रसंग व सन्दर्भों को नही समझता पढने के बाद भी जिसमे संस्कार नही आते वह ब्यक्ति केवल सेवक बनने के ही कविल है। कभी कभी सेवक बनने री काविलियत भी खो देता है । वर्णाश्रम धर्म मे इस लक्षण को शूद्र वर्ण मे रखा गया है । माता पिता की अर्जित सम्पत्ति का लाभ बच्चे को जन्म से ही मिलता है ,इसी कारण जातियों को जन्म से भी माना जाने लगा है । कालान्तर में वर्णाश्रम धर्म का विस्तार हुवा , तो कार्य की दृष्ठि से कई जातिया बनी ये अपने कार्य को करने के लिये स्वतन्त्र भी थे अत : शिक्षा शब्दार्थ नही समझ भी है । और रोजगार अनंसंधान का आधार भी , मनुष्यॊ परंपरागत कार्य मे परिवारिक संस्कारो से ही शिक्षित हो जाता है , गैर परम्परागत कार्यों मे उसे अतिरिक्त परिश्रम की आवश्यकता है । वर्तमान शिक्षा का जोर गैरपरम्परागत कार्यो को ही बढाना रह गया है । हालांकि इससे नये नये क्षेत्र खुले है पर बेरोजगारी भी बढ रही है बेरोजगारी का समाधान का एक तरीका वर्णाश्रम धर्म भी है । यह संसार मे मौलिक स्वरूप मे मौजूद भी है भलेहि सम्प्रदाय कोई भी हो ।

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