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अल्मोड़ा 1जुलाई , आज उपचार की कई चिकित्सा, बिधिया देश व दुनियां मे कई पैथियों के साथ सर्वत्र सुलभ है किन्तु एक पुरानी पैथी जो दुनियां के सभी धार्मिक मान्यताओं मे कम या ज्यादा थोडे बहुत अन्तर के साथ मौजूद है। उले हिन्दु धर्म मे देव जागर , ईशाई धर्म मे चंगाई तथा ईस्लाम मे जिन्न बाधा कहा जाता है आज भी इन सबको मानने वाले करोडो लोग है । कुछ दशाब्दी पूर्व आज की जैसी सुविधाये नही थी अलग – अलग धर्मो के लोग अपने अपमे धर्म का आशय लेकर मौलवी , पादरी , देव जागरियों के पास जाते है हिन्दु धर्म में मानसिक अवसाद , डर , भय , छल , छिद्र सम्बन्धी विमारियों के लिये के लिये जागर बिद्या प्रयोग मे लाई जाती थी जो अब लुप्त हो रही है ।

कौसानी में ऐसे ही एक जागर बिद्या मे पारंगत जगरिये से वार्ता हुई , जागर की बारीकियो को समझाते हुवे वह ब्यक्ति बोले कि समाज मेॆ बिमारी का एक कारण मानसिक अवसाद कपटपूरिण ब्यवहार , शोक , भय प्राकृतिक घटनाये भी है । जिनकी कोई औषधियां अब तक नही खोजी गई ।

जागर विद्या इसी अवसाद को दूर करने की चिकित्सा है । गोल्ज्यू की कथा सुमाते हुवे जगरिया बोला कि बाल गोरिया को भी इस बात का अवसाद था कि माता कलिंगा ने उन्हें क्यो छो़ड़ा । उन्होंने कहा कि कहानी गढ तम्पावत , व रैलाश से आरम्भ होती है कैलाश गेवकाओका प्रिय स्थल है ।गोल्ज्यू की कहानी गढ चम्पावत से आरम्भ होती है । रादा झालराई की इस सन्तान को साजिशन घर से निकाल दिया । इसके स्थान पर लोडिया , शिलाये पखी गई गोल्ज्यू को पंण्डत गौल भैरव भी रहते है ।ऊैरव का अर्थ है रखवाली करने वाला । इसी कहानी को जब जगरिये अवसादग्रस्थ रोगी के सामने लाते है तो वह मनन के उपरान्त प्रायश्चित करता है । प्रायश्चित ही मनुष्य को अवसाद से वाहर निकालता है इसमें संगीत बडा मददगार है । ढोल के श्वर इस संगीत की उक्पत्ति करते है ।

ढोल शास्त्र को समझाते हुवे धामी ने कहा कि इसके इग्यारह श्वर , छत्तीस तालों तक पहुंचते है । जो मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालते है ।जागर मे डंगरिये से ज्यादा महत्व जगरिये का है वह जैसा जैसा बजायेगा डंगरिया वैसा ही नाचेगा। जगरियो को ये 36 ताल मालूम होनी चाहिये । बर्तमान समय में ढोल शास्त्र की उपेक्षा, के कारण नई पीढी की उलाहना से सीघ्र ही यह विद्या भी वेद के श्वरों की गायन शैली की तरह लुप्त हो रही है जिसका संरक्षण जरूरी है ।

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