Loading

चमोली 30 जून हेमकुण्ड साहिब के आस पास वाला मार्ग पूरी दुनिया में फूलों की घाटी के नाम से जाना जाता है ।यहां लोक निर्मीण विभाग द्वारा एक हैलीपैड का निर्माण किया जा रहा है। यह सामलगढ बैण्ड {हेम कुण्ड साहिब ) घाघरिया से पांच किलोमीटर उपर है । इस निर्माण पर स्थानीय जनता व प्रबुद्ध पर्यावरण प्रेमियो द्वारा विरोध दर्ज किया जा रहा है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि श्री हेमकुण्ड़ साहिब के पास जहां से सीढियां समाप्त होती है वही पर बीस पच्चीस वर्ष पूर्व एक हैलीपैड बना था । उसकी छायाप्रति व ज्ञापन स्थानीय लोगो ने बद्रीनाथ के विधायक को दिया है । लोगो ने कहा है कि हैलीपैड के स्थान पर गेट बन गया है ।यदि गेट को हटा दिया जाय तो आपातकाल मे आज भी वहां पर होलिकैप्टर उतर सकता है ।
जोशिमठ के लोगो ने कहा है कि जिस स्थान पर बर्तमान मे हैलीपैड़ बन रहा है वह स्थान बिभिन्न प्रकार के फूलों व जड़ी बूटियों तथा दुर्लभ पक्षियों का आशय स्थल है । जिसमे ब्रह्म कमल दुर्लभ ब्लू पेपी , ब्राह्मी, तगर ,नीरू कडवी ,अतीस ,जय विजय ,हत्था जोडी ,टाटर एव् दुर्लभ संकटग्रस्थ जीव पाये जाते है । इस ईलाके मे हिम तेदुवा , हिमालयन भालू , मोनाल पक्षी आदि का निवास स्थान व चुगान स्थल है । इस वर्ष घांघरियांसे हेमकुण्ड़ साहिब तक रूपवे का निर्माण भी हो रहा है ऐसे मे इस उच्च हिमालयन क्षेत्र में हैलीपैड का निर्माण रोक दिया जाय। यह ईको सैन्सटिव जौन मे आता है इस कारण वन बिभाग ने भी इसमें आपत्ति दर्ज की है फिलहाल काम रुकवा दिया है ग्रामीणों व स्थानीय ब्यापार मण्डल महिला मंगल दल ने कहा है यदि हैलीपैड का निर्माण जारी रहा तो ग्रामीण व अन्य संगठन इसका बिरोध करेगे । ज्ञापन देने वालो में उद्योग ब्यापार मंण्डल घाघरियां , ग्राम पंतायत भ्यूड़ार पलना तथा महिला मंगल दल भ्यूडार आदि के हस्ताक्षर है ।

ये दुर्लभ पक्षी व जानवर , यहा के स्थाई निवासी है । इनके स्थाई आवास मे छेडछाड को विकास नही कहा जा सकता प्रकृति ने अपने फूलों व जड़ी बूटिृो की महक से इस धरती को सीचा है । इसे नुकसान पहुचाने की सनक बन्द होनी चाहिये

जोशीमठ के सामाजिक कार्यकर्ता अतुल सती का कहना है कि हिमालय की इकोलौजी को हर हाल में बचाये रखना यहां के ग्रामीण अपना फर्ज समझते है । यदि सरकार नही मानी तो आन्दोलन होगा

Author

One thought on “क्या ये खूबसूरती को लील जायेगा विकास ,हेमकुण्ड़ मे हैलीपैड विकास या विनाश!”
  1. प्रशासन को स्थानीय लोगों के विचार और चिंताएं सुनने की आवश्यकता है . जब वहाँ पर एक हेलीपड बना हुआ है तो दूसरे हेलिपैड को क्यों विकसित किया जा रहा है ? इसे समझाने और समझाने की आवश्यकता है . उत्तराखंड में विकास के नाम पर पहिले ही पर्यावरण के विरुद्ध बहुत उत्पात हो चुका है . विकास तो हुआ नहीं पर इकोलॉजी का विनाश हो गया है.

Leave a Reply

Your email address will not be published.