115 total views

इन दिनों आस्था व मानहानि पर देश में एक बहस छिड़ी हुई है ,। आस्था व पाखण्ड पर बागेश्वर सरकार कटघरे मे है तो रादनीति मे मनमाफिक ना बोलने के आरोप मे राहुल गाधी फिलहाल सजायाप्ता मुजरिम है ,

कुछ साल पहले की बात है , देव मन्दिरों से एक अफवाह चली की देश भर में देव प्रतिमाये दूध पीने लगी है देश भर मे मन्दिरों मे बड़ी – बड़ी लाईने लग गई मूर्तियों को दूध पिलाने की होड़ लगा गई , । सवाल यह था क्या सच में मूर्तियां दूध पी रही थी ,जबाब था नही , पर लोग सच मानने को तैयार ही नही थे । खबर फैलते जा रही थी , भीड़ बढती जा रही थी ,एक शिक्षक अल्मोड़ा बाजार में कट्टर आर्य पूरन सिह के पास जाकर बोले , तुम कहते हो मूर्ति भगवान नही अब बताओं मूर्ति दूध कैसे पी रहीहै , पूरन सिंह जी बोले , जब दूध पीने का लोक ब्यवहार मूर्ति कर रही है तो प्राणियों के सौचादि ब्यवहार भी करेगी , तब मानेगे कि वह सजीव है , प्रेरणा लेना व सक्य मान लेने मे फर्क है वह शिक्षक निरुत्तर हो गये ,

मंडन ही नही खंडन भी है आवश्यक है?

जैसे केवल सत्ता पक्ष ही जरूरी नही बल्कि बिपक्ष भी जरूरी है ताकि सत्ता के गलत कार्यों पर भी ध्यान जा सके उसी प्रकार मण्ड़न के साथ ही खण्डन भी जरूरी है , जब निवर्तमान शंकराचार्य ने साईं बाबा के ईश्वर होंने का खंडन कर दिया तो साई बाबा के करोड़ो भक्त शंकराचार्य के विरोध में उठ खड़े हुवे उन से कहा जाने लगा कि उन्होंने भक्तोंका दिल दुखाया हैं। सलाह दी गई कि आपको खंडन नहीं करना चाहिए केवल मंडन करना चाहिए। यदि वे खन्ड़न ना करते तो जैसे हनुमान जी साई बाबा के मन्दरों के गेट पर बिराजित है राम जी भी उसी जगह यदि ना आते यह सम्भव ही नही है , समाज को केवल भक्ति मे नही डूबना चाहिये बल्कि भक्ति में भी जागरूक रहना जरूरी है । आज राजनैतिक क्षेत्र मे भी यह बात सामने आ रही है कि सरकार के खिलाफ बोलना सरकारों को आइना दिखाना राष्ट व सरकार का अपमान ही नही उन मतदाताओं का भी अपमान है ।जिन्होंने मत देकर सरकार बनाई , जबकि सरकार बर्तमान कार्ये पर नही पिछले कामो पर चुनी गई , चुनाव जीतना , व सरकार बनाना इस बात की गारन्टी नही है कि जनता सरकार के कामकाज पर नजर ना रखे अच्छे कामों का फल तो जनता सरकारी पार्टी को देती ही है पर बोलकर या बिरोध मे मतदान कर चेतावनी देना ,सरकार बदल देना भी जनता का ही काम है ।
इसी प्रकार धार्मिक जगत में भी धर्म के नाम पर अनेक प्रकार कि भ्रांतिया और असत्य बातों का समावेश कुछ अज्ञानी लोगो ने कर दिया है, वही यह काम राजनैतिक जगत मे भी होता है यदि एक किसान अपने खेत में फसल बोता है तो बीज के साथ – साथ ,खर पतवार का भी उग जाना तय है अब आप बताये कि अगर किसान उस खर पतवार को नहीं हटायेगा तो उसकी फसल का क्या हाल होगा? समाज में आध्यात्मिकता का भी यही हाल हैं, राजनीति का भी ! ,नाना प्रकार के अन्धविश्वास, नाना प्रकार कि मिथ्या प्रपंच, नाना प्रकार के गुरुडम के खेल, नाना प्रकार कि देवी देवताओं के नाम पर कहानियाँ रच लिए गई हैं, जिनका सत्य से दूर दूर तक भी किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नहीं हैं

आदि शंकराचार्य, यदि अवैदिक मतों का खण्ड़न व वैदिक मत का मंण्ड़न नही करते तो आज की समय वैदिक ग्रन्थ लुप्त हो गये होते , लोग उन्हे मस्तिष्क से भुला चुके होते कंठ से गायन नही होता तो विरासतें लुप्त हो जाती , यदि विरासतों व परम्परा पर ही चलते तो नया दिग्दर्शन नही हो पाता , महर्षि दयानन्द ने जब वेदें की ओर लौटे का नारा दिया तो वेद के उन भाष्यकारों का खण्डन भी किया जिन्होंने वेदों की अत्यधिक अमर्यादित भाष्य किये थे , यह भी बताया कि भाष्य की सही बिधि क्या है । महर्षी दयानन्द हमेशा गुण दोष पर जोर देते रहे, इसी आधार पर मण्डन व खण्डन करते रहे । आध्यात्म ही नही राजनीति में भी गुण व दोष के आधार पर समर्थन व बिरोध जरूरी है ।

सोचनीय बात है कि यदि परिक्षा दे चुके किसी छात्र के गलत उत्तर पर भी यदि अंक दे दिये जाय तो परिक्षार्थी व परिक्षक होने का क्या लाभ । गलत का खण्डन कर अंक काटना व सही का मण्डन कर अंक देना ही मर्यादा है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published.