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देश मे चाहे कोई भी आन्दोलन हो पर  कुछ नारे आम हो गये है ,  इन नारों में इनकलाब जिन्दाबाद , तो आम नारा है ही सम्भवत: प्राचीन भी है ,। दूसरा  कौमन नारा है ,मनुवाद से आजादी , अब एक तीसरा नारा भी कम प्रसिद्ध नही है वह है ब्राह्मण वाद से आजादी

सोचनीय बात यह है कि क्या हर वाद मे केवल बुराईया ही है क्या?, देश मे जो भी तीज त्यौहार मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारे , व चर्च है क्या वहा केवल ब्राह्मण , मुल्ला , ग्रन्थी व पादरी ही लाभान्वित होते है या फिर समाज के अन्य लोग भी ।  हर वाद के नकारात्मक व सकारात्मक दोनों ही पहलू होते है , यदि देश ने अतीत मे निजि  कारोबार , राजनीति अर्थनीति को सहेजने संवारने के लिये कार्य के आधार पर जातिया निर्मित कर दी गई व इस आधार पर हजारों सालो से राज सत्ताये चलाई गई तो यह   यह अतीत की बातें है ,ये सब उस समय के जरूरत के अनुसार थी ,। वर्तमान में भारतीय संविधान ने यह ब्यवस्था  बनाई है कि लोग अपने पैत्रिक ब्यवसाय को  छोडकर नया ब्यवसाय सरकारी रोजगार आदि कर सकते है अब तो औद्योगीकरण के बाद मशीनों का युग आ गया है, इस युग में अब अधिकांश  कार्य मशीनों से हो रहा है तो ऐसे  मे हस्त शिल्पियों के लिये जातियां जो कवच का काम करती थी , वह ब्यवसाय को संरक्षण ना मिलने के कारण स्वत: ही ध्वस्त हो रही है । यदि सरकारी सुविधाये लेने के लिये जातीय प्रमाणपत्र समाप्त कर दिये जाय  व जातिगत पहचान नाम के साथ ना   लिखा जाय तो जातियां समाप्त  ना भी हो पर असरहीन जरूर हो जायेगी ।

  देश मे जैसे इनकलाब जिन्दाबाद एक कौमन नारा है उसका अर्थ भी कौमन ही है , जिसका मतलब है “परिवर्तन, हर आन्दोलन “परिवर्तन, की ही मांग करता है । पर “मनुवाद, “ब्राह्मण, वाद से क्या लाभ व हानि है, इस पर बहस करने के बजाय सीधे तौर पर , ब्राह्मण , राजपूत ,व वैश्य समुदाय को खलनायक की तरह प्रस्तुत कर देना व गालिया   देने से   इन आन्दोलन कारियों का कौन सा मकसद  पूरा हो रहा है ,यह जानना जरूरी है, इनमे से अधिकांश लोगों ने मनुस्मृति नही पढी , उन्हे नही पता कि इसमे अच्छा या बुरा बूरा क्या है ? पर बाबा साहेब ने कहा इसलिये इसे जलाना एक रस्म हो गया मनुवादी कहना एक परम्परा , मनुवादियों को गालिया देना मानो संवैधानिक अधिकार हो गया है , इन नारों से किसे व क्या लाभ हो रहा है , क्या इसे जानना आम लोगों के लिये जरूरी नही है , ,।यदि ब्राह्मणवाद ,मनुवाद से आजादी के नारे लग रहे है तो मुल्लावाद , व कुरानवाद से आजादी क्यों नही , पादरीवाद व बाईबिल वाद से आजादी क्यों नही त्रिपिचक व बौद्धिस्ट से आजादी क्यो नही , …आदि -आदि ,  क्या  दुनिया में जो कुछ गलत हो रहा है उसके दोषी केवल ब्राह्मण है , तब तो चायना,  अरब देश पाकिस्तान , युरोप आदि अधिसंख्य देशों मे ना तो मनुस्मृति है ना ही ना ही ब्राह्मणहै ,  फिर वहाजो गलत क्यों हो रहा है , उसके लिये दोषी कौन है ,क्या इस दुनिया मे उन देशों की सरकारों को छोडकर कोई यह कह सकता है कि वहाँ सब कुछ सही है ,सब नागरिक सुखी है वहा प्रताड़ना नही होती । दरअसल मुख्य मुद्दा समातन को मिटाने का है अरब देशो से मिटते मिटते यह, “सनातन . अब भारत से भी मिट जाय ऐसे उपाय हो रहे है ।जब तक सनातन दुनिया मे है तब तक , दुनिया का कोई मजहब यह नही कह सकता कि दुनिया मे सभ्यताओं का आरम्भिक विकास ,उन्होंने किया ,। सनातनियों के पास अनेको धार्मिक ग्रन्थ  है, यह इस बात का प्रतीक है कि सनातन परिवर्तनशील है , इसमें वक्त के साथ बदलाव आते है सनातन का  धार्मिक नेतृत्व करने के कारण ब्राह्मण इस परिवर्तन के केन्द्र में है । ब्राह्मण इस परिवर्तन को स्वीकार करता है । वह अपने को साबित भी करता है ।जब देश मे जब परम्परागत ब्यवसाय मे मशीनीकरण के कारण कमी व सरकारी रोजगार मे अवसर घटने लगे तब बैश्विक ब्यापार संगठन ने नये अवसर दिये कई लोगों ने इन अवसरों का फायदा उठाया  ,  वैश्विक तरक्की मे योगदान दिया दुनिया के तमाम देश इस बात की तस्दीक कर रहे है । 

एक दौर था जब जर्मनी मे हिटलर ने यहुदियों के खिलाफ माहौल बनाया , यहुदियों को हिटलर ने गैस के चैम्बरों  मे भून डाला , यहूदी कारोबारी लोग थे अर्थब्यवस्था व साहित्य मे उनकी पकड़ थी ।जो आज के दौर मे ब्राह्मणों के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है वही माहौल जर्मनी मे यहूदियों के खिलाफ बनाया गया, इस समय केवल ब्राह्मणों को बिदेशी कहा जा रहा है यह सोची समझी राजनीति के तहत है , द्विजों को तोड़ने की योजना है, जबकि ब्राह्मणो व राजपूतों , बनियों मे एक समान गोत्र इस बात का परिचायक  है कि मौलिक रूप से इनंमें कोई मौलिक अन्तर नही है ।  केवल कार्य विभाजन का अन्तर है यह भारत की सभी जातियों मे बिध्यमान है ।

कश्मीर मे ईस्लामिक जेहादियों ने ब्राह्मणवाद से मुक्ति के नारे लगाये एक एक कर हिन्दु मुस्विम बनते गये , एक दिन मस्जिदों से आवाज आई पंँण्ड़तो भारत छोड़ो ,  पण्ड़िकों ने रातों रात अपने घर छोड़े पूर्वजों की बसाई  की अपनी  मातृ  भूमि को ऐसे छोडकर आ गये मानों वह  पराया देश हो गया हो फिर कभी लौटकर कश्मीर नही गये कोई भी राजनैतिक पार्टी उनके सहायता के लिये सामने नही आया दबकि गेश मे हिन्दु रक्षक होने का दम्भ भरने वाले कई संगठन व लोग है । कश्मीर मे अनगिनत शहादतें हो गई , सभी कौम के सैनिक अपने सीने मे गोलिया खा रहे है पर बिषभरी मानसिकता  अब भी मानने के लिये तैयार नही है कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है यह देश ,सबका है । देश जे एन यू की दिवारों मे यदि ब्राह्मणों,भारत छोड़ो का नारा नही लिखा होता  तो जो समुदाय कश्मीर की घटना से नही जागा वह अब भी नही जागता ,पहली बार महिला  पहलवामो के आन्दोलन में ब्राह्मणवाद से आजादी के नारो का प्रतिवाद किया गया ये नारे लगाने वाली वे मुस्लिम छात्राये भी शामिल है जिन्होंने मुल्लावाद से आजादी के लिये नारे कभी नही लगाये है, जबकि इनका ब्राह्मणों से  कोई लेना देना  नही है , यह महिला पहलवानों की लड़ाई को भटकाने की साजिश नही तो क्या है देश का कोई भी  आन्दोलन , टी बी सीरियल हो खलनायक ब्राह्मण , ठाकुर , व बनिया ही होता है अब दिल्ली के जन्तर मन्तर मे ब्राह्मण वाद से आजागी का नारा लगाने वाले पहली बार ब्राह्मण संगठनों के निशाने पर है ।

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