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वेदों में वर्णित पुरुष सूक्त पर भ्रान्ति व निवारण

इन दिनों दलित समाज को ज्ञान के रूप मे कचड़ा परोसने व उन्हें भड़काकर अपनी राजनीति करने वालो की बाढ आ गई है भारतीय दलित साहित्य अकादमी से सम्बद्ध पूर्व बी जे पी नेता व सांसद वर्तमान में कांग्रेस नेता उदित राज ने ट्विटर पर पुरुष सूक्त के विषय में भ्रामक जानकारी देते हुए लिखा कि शूद्र यदि वेद-पुराण पड़ता है तो, आंख फोड़ दो, सुनता है तो कान में पिघला शीशा डाल दो & उच्चारण करता है तो जीभ काट दो।’ उन्होने यह कही से पढा या स्वयं ही मनगणन्त बात कह दी यह तो उदित राज ही जानते होंगे पर उन्हे ताली पीटकर राजनीति करने वालों को एक नया सूत्र मिल गया । इन राजनेताओं ने समाज को तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी हैं। अपने अध कचरे ज्ञान से यह केवल अशिक्षित और अनपढ़ ही नहीं अपितु पढ़े लिखे लोंगो को भी भ्रमित करने में सफल हो जाते हैं। इसका कारण मनगणन्त बातों को सुनना अधकचड़े लेखको को पढना सही जानकारी का पूर्ण अभाव होना है। पुरुष सूक्त में कहीं भी शूद्र के कान में पिघला शीशा डालने या उच्चारण करने पर जीभ काटने का कोई उल्लेख नहीं हैं।
वेदों में पुरुष सूक्त में पुरुष नामक ईश्वर से समग्र सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन किया गया है। वही मनुष्य समाज की उत्पत्ति का वर्णन करते हुए उसे चार विभागों में बाँटा गए है। ये विभाग हैं ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। ऋग्वेद 10/90/12, यजुर्वेद 31/11 (ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्बाहू राजन्यः कृतः । ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत ॥) एवं अथर्ववेद 19/6/6 (ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्बाहू राजन्योऽभवत्। मध्यं तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत॥) को वर्ण व्यवस्था के आधारभूत वेद मन्त्र माना जाता हैं। इन वेद मन्त्रों का अर्थ है कि ब्राह्मण इस मनुष्य समाज का मुख है, क्षत्रिय भुजायें, वैश्य जंघाएँ है और पैरों के लिए शूद्र बना है। इस वेद मन्त्र में मनुष्य शरीर से उपमा दी गई है। जैसे मनुष्य शरीर में मुख, हाथ, पेट और पैर होते हैं, वैसे ही मनुष्य समाज में भी होते हैं। जैसे मनुष्य शरीर का सभी अंग मिलकर उसकी रचना करते हैं, वैसे ही मनुष्य समाज का भी सभी अंग मिलकर समाज शरीर का निर्माण करते हैं।

शरीर के किसी एक अंग मे दर्द होता है तो इसकी अनुभूति पूरे मन में होती है , शरीर का कोई भी अंग एक दूसरे से पृथक नही है । वेद मे शूद्र शब्द कम से कम बीस बार आया है कही भी इन मन्त्रों मे शूद्र के लिये अपमान जनक भाव नही है । ना ही किसी मन्त्र में पढने लिखने का निषेध है । किन्तु सरसरी तौर पर पढकर विवादों को जन्म देने व व गम्भीरता से समाधान खोजने मे अन्तर है यही पर बौद्धिक क्षमता का परिक्षण होता है । दलित राजनेताओं को यह जरूर सोचना चाहिये । कि वह अपनी वोट की राजनीति के लिये मनगणन्त बातें ना फैलाये । कमसे कम पुरुष सूक्त मे तो ऐसा कही नही लिखा है कि यदि सूद्र पुराण व वेद पढे तो उनके कानों मे पिघला सीसा ड़ाल दिया जाया । क्लिष्ट विषयों को पढना व समझना जरूर कठिन है इन्हे योग्य शिक्षक के मार्गदर्शन मे ही पढना चाहिये ।

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