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एक दिन स्वामी दयानन्द नदी के किनारे समाधिस्थ थे। उसी समय एक महिला अपने बच्चे के शव को लेकर नदी के तट पर आई। शव को नदी के जल में प्रवाहित किया और उसके कफन को उतार लिया तथा उसे निचोड़कर वापस ले चली, क्योंकि उसके पास तन ढ़कने को दूसरा कपड़ा न था। महिला की चीत्कार की आवाज से उनकी समाधि टूट गई। उस दृश्य को देखकर स्वामी दयानन्द रो पड़े और घोर चिंता के सागर में डूब गए की जो आर्यवर्त कभी जगद्गुरु के पद पर असीन था ,जो भारत सोने की चिडया कहलाता था वह इतना घनघोर दारिद्य की एक माँ के पास मृत शिशु के लिए कफ़न भी उपलब्ध नहीं है ।तभी स्वामी जी ने प्रण किया की इन लोगो को दुःख सागर से निकलने हेतु सर्वधिक उपाय करने में सम्पूर्ण जीवन लगा दूंगा ।स्वामी जी को अपने मोक्ष की चिंता नहीं थी वे दुखी मनुष्यों को दुःख सागर से पार कराना चाहते थे |