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  आज से नवरात्रियां आरम्भ हो रही है ।  यदि हम जन्त्री (पंचांग )की बात करें  तो यह काल कुछ आगे होना चाहियें । अतीत मे हम देखते हे कि दिल्ली जयपुर अल्मोड़ा मे काल व समय की गणना व तारों की सिथति का पता लगाने के लिये विशेष प्रवन्ध थे अब नैनीताल व देश के कुछ अन्य हिस्सों मे बेधशालाये है । जो गृह नक्षत्र व ज्योतिषीय बदलाव पर नदर रखते है वर्तमान मे हमारे ज्योतिष पुराने ही पंचांगकारों की रचनाओं से ही काम चला रहे है तयजिसमें अन्तर आना स्वभाविक है । वही यदि देखा जाय तो वर्तमान समय में सनातन धर्म का ज्योतिष पीठ जिसमे शंकराचार्य बिराजमान होते है ,लकीर ही पीटने मे लगा है । यह पीठ अपनी ज्योतिषीय परम्परा से हटकर  पौणाणिक कथानकों मे ही उलझा है जिसले तिथियों मे मतभेद उत्पन्न हो रहे है । नवरात्र गतिशील  पृथ्वी का वह संक्रमणकाल है जब मौसम मे बदलाव होता है । यह वर्षा रितु की समाप्ति व शिशिर रितु का आगमन है । मौसम में बदलाव  से कई  बिमारियों का आगमन होता है शरीर को ठीक करने के लिये इन दिनों प्राकृतिक जीवन जीने के  लिये ब्रत उपवास के माध्यम से तन मन की चिकित्सा करना ही नवरात्र का उद्देश्य है इसके लिये ब्रत , अराधना उपवास , पूजा हवन  खानपान के नियमों का पालन करना जरूरी है ।

सनातन धर्म किसी धार्मिक नेता ने खड़ा नही किया  ।यह लाखो सालों का सहेजा व परिष्कृत ज्ञान का परिणाम है ।  इसमे प्रकृति की उपासना है । इस सृष्ठि मे प्रकृति ही सृजन का आधार है , नवरात्री नौ दिनों का एक काल है जिसमे सृष्ठि अपने नये स्वरूप मे प्रकट होती है ।

पुराण कार सृष्ठि मे बिभिन्न शक्तियों की अराधना करते हुवे कहते है कि या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता , लक्ष्मी ,   सरस्वती , गौरी , दुर्गा काली आदि गुणो की बिशेषता बताते है ।  कुछ लोग समझकर उपासना तरते है कुछ प्रयोगों से वह कुछ लोग केवल प्रतीकों की उपासना करते है । जो जैसी उपासना करेगा । उसको उसी अनुरूप फल मिलेगा ।

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