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विहार के शिक्षा मन्त्री चन्द्रशेखर सिंह ने एक विश्वविद्यालय के दिक्षांत समारोह में रामचरित मानस के उत्तरकाण्ड़ के एक दोहे पर सवाल खड़ा करते हुवे अपने राजनैतिक एजेन्डे के तहत तुलसीदास पर सवाल उठाते हुवे उन्हे दलित विरोधी घोषित करने की कोशिस की अब शिक्षा मन्त्री पर ही सवाल उठने लगे है कि आखिर उनरी मंन्शा क्या है जो वह सनातन ग्रन्थों पर सवाल उठा रहे है , शिक्षा मन्त्री ने एक अधूरी चौपाई सुनाकर लाखों छात्रों को भ्रमित ही नही किया अपितु उनके मन मे नफरत के बीज भी बोये । मन्त्री ने अधूरी चौपाई पढते हुवे कहा बिप्रहि पूजहि सकल गुण हीना शुद्र न पूजहि वेद प्रवीणा , जबकि पूर्ण चौपाई इस प्रकार है ।

सापत ताड़त पुरुष कहंता ,

विप्र पूज्य अस गावहि संता

पूजहि विप्र शील गुण हीना

शुद्र न गुन गण ज्ञान प्रवीना

यह प्रसंग कवंद राक्षस व राम के बीच हुवे संवाद का अंश है कहने का अभिप्राय यह है , वह ब्राह्मण पूज्यनीय है जो गुणी व शीलवान हो चाहे वह शाप व व प्रताड़ित ही क्यों ना दे रहा हो किन्तु यदि जन्म से ब्राह्मण होने के बाद भी ब्राह्मण सदाचारी व गुणवान ना होकर गुणहीन है , तो वह शूद्र के समान ही है और पूज्यनीय नही है । गीता के चौदहवे अध्याय मे भी श्रीकृष्ण कहते है कि मनुष्य के तीन स्वभाव है , सत रज व तम , सत आचरण वह है जिसमे कोई भी लोभ लालच ना हों बिना स्वार्थ के काम करने वाला सतोगुणी , लोभ लालच से काम कराने व करने वाला रजोगुणी व द्वेश वस काम करने वाला तमोगुणी है , इसी को तुलसीदास कहते है कि जिसमे कोई गुण नही है ऐसा ब्राह्मण पूजनीय नही है क्योकि वह कर्म व गुणों से हीन है शुद्र के समान ही है ।

दूसरी चौपाई भी मन्त्री ने अधूरी पढी

अधम जाति मे विद्या पायें , यथा अहिं दूध पिलावें इस अधूरी चौपाई का अर्थ बताते हुवे मन्त्री ने कहा कि तुलसीदास ने कहा रि मीची दाति रा ब्ृक्ति विद्या पाकर वैसा ही जहरीला बो जाता है जैसा दूध पीकर सांप ,

जबकि पूरी चौपाई इस प्रकार है ।

हर कहु हरि सेवक गुरु कहेहु, सुनि खगनाथ हृदय मम दहेऊ अधम जाति मे विद्या पाई , भयहु जथा अहि दूध पिआहि , गरुड़ से काकभुसन्डी कहते है , हे पक्षी राज गुरूजी ने शिवजी को हरि का सेवक कहा यह सुनकर मेरा हृदय जल उठा मै पापी बिद्या पाकर ऐसा हो गया जैसे दूध पीकर सांप , काकभुसन्ड़ी गरूड़ को गुरु का सम्बोधन करते हुवे कहते है कि मै अधम् जाति का पक्षी श्रापित होकर कौवा बना हू । यह उत्तर काण्ड़ की चौपाई है ।

इन दिनों कुछ बड़बोले नेता अपने कामों को अपनी राजनीति का आधार बनाने के बजाय मनुस्मृति रामचरित मानस , महाभारत की अण्ड़ बन्ड़ ब्याख्याये कर कपोल कव्पिक प्रंसंगों से अपने जातीय समुहों के नेता बनने का उपक्रम बना रहे है, और अपने समाज को कबीलाई समाज की ओर धकेल रहे है ,

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