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देश की राजनीति में नित नये -नये प्रयोग हो रहे है । बचपन मे सुनते थे कि ब्लाक प्रमुख के उम्मीदवारों ने ग्राम प्रधानों को निमंन्त्रण दिया है । जो – जो लोग उस उम्मीदवार को चाहते निमंन्त्रण में जाते जो नही जाता उसकी तलाश शुरु हो जाती । उन दिनों लोग जुबान के पक्के होते थे । धीरे धीरे दावतों का चस्का लगा । फिर एक दिन होने वाली पार्टियां कई दिन चलने लगी साथ मे दक्षिणा का नियम् भी प्रचलन मे आ गया । अब हम देखते है कि ब्लाक प्रमुख जिला पंचायत अध्यक्षों के उम्मीदवार कम से कम महिने पहले से उन्ह् बंधक बना लेते है सदस्यो को उनके शिवा और किसी से मिलने बात करने की छूट नही होती क्योकि अक्सर देखा जाने लगा कि खिलाने पिलाने के बाद भी उनके बोटर ने पाला बदल लिया । इसकी संम्भावना ना होवे पाला ना बदल सके इसके लिये उन्हे बन्धक बनाने की परम्परा चली । सत्ताधारी दल ज्यादा तोड़फोड करते थे बिपक्ष की मांग पर देश मे दल बदल कानून बना ।

पी बी नरसिम्बाराव की सरकार के कुछ सांसदो की कमी थी तब उन्होंने कुछ चार पांच संसदो को अपने पाले मे किया था , जिन पर उस समय काफी नैतिक दबाव पड़ा उनकी अल्पमत की सरकार चलाने के लिये तारीफ भी हुई। पर अब राजनैतिक ब्यापार का युग आ गया है । जिसके पास जितने ऐजेन्ट उसके उतने मत , राजनीति विशुद्ध , ब्यापार बन गई है इसमे लोक हित व त्याग की बात ही नही है । लोगो को भी यह समझाया जा रहा है कि नियमित सेवाये बन्द करने से सरकार को कितना फायदा होंगा । लोग सरकार के फायदे को समझ भी रहे है जबकि अपने फायदे की बात भूल गये है ।

कहानी आगरा की है आगरा मे बिधायक छोटे लाल वर्मा के जूते चोरी हुवे तो जूतों की तलाश हुई विधायक जूते उतारकर मन्दिर में उद्घाटन करने गये थे । काफी तलाश करने के बाद उन्हें जूते नही मिले । वे बोले तलो किसी गरीब का भला हो गया ,यह सच नही भी हो सकता जूते तुराने वाला कोई गरीब ही हो यह तो जरूरी नहा । जूते चुराने वाला कोई अमीर भी हो सकता है जो उन्हे नंगे पाव ही जाने के लिये बाध्य कर रहा हों। आगरा मे तो बिधायक जी रे दूतों की बात थी पर महाराष्ट्र मे तो विधायक ही चोरी हो गये जिन्हे उद्धव नही खोज पाये इसके बिपरीत उत्तराखण्ड़ मे हरीश रावत अपवाद है , उनके विधायक भी कही खो गये थे पर तब विधायक सत्ता का ताला नही तोड पाये कोर्ट ने सरकार बचा ली ।

चुनाव द्वारा सत्ता छीनने का संबैधानिक हक तो है ही । बिधायक भी जूतों की तरह हो जाय तो बिधायिका की गरिमा गिरना तय है । जो दिखाई दे रहा है ,वह सब देख रहे है । सच यहि है कि वे चुरा कर अपने खेमे मे मिलाये जा रहे है । बैक नही सरकारे ही लुट जा रही है ।

सोचिये यदि कोई बैक लुटेरा पुलिस के हत्ते चढ जाय तो पुलिस उसे हर प्रकार से काबू करेगी । जब लुटेरा काबू मे ना आये तो गोली भी मार सकती है ।वही पर यदि कोई बिधायको का लुटेरा बिधायको को लूट कर किसी पन्च सितारा होटल में बन्द कर दें तो तो पुलिस उन्हे सकुशल उनके घर पहुंचाने के बजाय बाहर से पहरे देके हुए दिखेगी , मानों वह विधायक ना होकर कोई सामान हो जिसे खरीदने के लिये बोलिया लग रही है । वास्तव में इन दिनों देश की राजनीति में खरीद- फरोख्त के प्रचलन का विस्तार हो गया है । लोकतन्त्र मे लूट के लिये कोई स्थान नही होना चाहिये । बिधायक सदन मे अपनी सहमति व असहमति ब्यक्त कर सकते है ।दलबदल कानून को और प्रभावी बनाकर बिधायकों को वंधक बनाये जाने की कार्यवाही को दण्डनीय अपराध बनाया जाना समय की मांग है। बिधायक सत्ता की चांबी है ।चांविया चुराकर सत्ता मे कब्जा करना न्यायोचित नही हो सकता । चुराई गई चांवियो से सुख सुविधा पाने वाले का आत्म सम्मान तो सुरक्षित नही हो सकता ।

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