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पिछली बार जब देश मे नोटबन्दी हुई तो अपने सामान्य कामकाज निपटाने के लिये लोगो को करेन्सी मिलना मुस्किल हो गया , । लाखो करोड रुपये रद्दी बन गये , सरकार को इन्हे रद्दी बनाने मे भी करोड़ो खर्च करने पडे , ऐसा लगा कि सरकार काम मे बहुत ब्यस्त है , फिर करेन्सी की आपूर्ति के लिये दो हजार के नोट का जन्म हुवा , , अब दो हजार के नोट की उम्र भी पूरी हो गई ।
सरकार को काम करता हुवा दिखना चाहिये , कुछ ऐसा काम भी जरूरी है जो , आम जनता से सीधे जुड़ा हो करेन्सी का सम्बन्ध तो आम जनता की जेब से है ही , ।सोचिये जब एक हजार के नोट से कालाधन इकट्ठा हो रहा था तो दो हजार के नोट से तो यह दुगुना हो सकता है ,। सरकार की समझ मे यह बात आ गई । इसी लिये पहले चार पांच सालों मे छापे गये दो हजार के नोट जब ठिकाने लग गये तो सरकार ने पिछले कुछ समय से दो हजार के नोट छापना बन्द कर दिया ।
मुद्रा का चलन रोकने से कई विकास के कीर्य प्रभावित होते है नेपाल जो भारतीय करेन्सी मे ब्यपार करता रहा , नोट बन्दी से उसे भी गहरी चोट पहुची थी आज नेपाल के लोग सौ के नोट को ही नेपाल के बाजारे मे चला सकते है । दो पांच व दो हजार के नोट कब हदल जाय इसू आशंका के चलते नेपाल मे इन नोटों का चलन केवल बैक मे ही होता है बाजारों मे नही ।
कोई भी देश किसी नीव पर ख़़ड़ा होता है , यह नीव व संसाधन परिवार व सरकारों को बिरासत मे मिलते है , नई सरकारो को नीव हिलाने के बजाय नई बुलन्दियो का इतिहास बनाना चाहिये , । भारतीय करेंन्सी भी देश की बिरासत होती है , पिछली सरकारों ने करेन्सी के साईज मे बदलाव तो किये पर किसी भी कपेन्सी के अमीन्य नही किया , जब करेन्सी मे रिजर्व बैक की गारन्टी होती है ,गारन्टी से मुकर जाने पर उन देशो साख खराब हो जाती है ।जो भारतीय रुपये मे कारोबार करते है , इन देशों मे भूटान , नेपाल , शामिल है , भारत सरकार रूस से भी रुपये मे कारोबार करने पर बातचीत कर रही है , पर करेन्सी का स्थायित्व ना होना भी एक बाधा है ।
सरकार ने दो हजार का नोट बन्द कर दिया अब सारा दबाव पांच सौ दो सौ व सौ रुपये के नोट पर ही है । ऐसा अनुमान है कि सरकार हजार रुपये के नोट को भी चलन मे लायेगी ।