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बागेश्वर – कौसानी मे सरला वहिन स्मृति ब्याख्यान मे प्रमुख वक्ता के रूप मे बोलके हुवे प्रो आनन्द कुमार ने कहा कि हमारे देश ने स्वस्थ लोकतन्त्र की स्थापना की किन्तु आज हमारा लोकतन्त्र पूंजीतन्त्र में बदल गया , बोट खरीदने व बेचने का तन्त्र बनते जा रहा है , लोकतन्त्र के चार स्तम्भ कहे गये पर वास्तव में यहा आठ स्तम्भ पांचवा स्तम्भ शिविल सोसायटी है , छटा स्तम्भ शिक्षा संस्थान जबकि सातवा स्तम्भ राजनैतिक पार्टिया है ,, आठवा स्तम्भ चुनाव है , चुनाव भ्रष्टाचार की चपेट में है , ।जो सत्ता में है वह चुनाव सुधार नही चाहता , किन्तु जब विपक्ष मे होते है तब सुधार की बात करते है , देश की छ: राष्ट्रीय पार्टियों ने कहा कि वह सूचना अधिकार के दायरे मे नही आना चाहते , अब न्याय पालिका पर भी भरोसा छूट रहा है , । पत्रकारिता पर भी सवाल उठ रहे है । , लोकतन्त्र भलेहि विगड़ रहा हो पर नागरिक कर्तब्यों का निर्वाह हो रहा है । , राजनैतिक पार्टियों मे जनतन्त्र नही है , ना खाता ना बही जो नेता कहे वही सही , इन दिनों कार्यपालिका भी संविदा पर चल रहे है , दिल्ली विश्वविद्यालय पांच हजार लोग संविदा पर दशियों साल से काम कर रहे लोग वाहर कर दिये पर पार्टी वर्कर नियुक्ति पत्र लेकर आये , कुलपतियो के पग खरीदे व बेचे जा रहे है । सर्वोदय की संस्थाओं पर कब्जे हो रहे है , लोकतन्त्र के सभी पीलर हिल रहे है । आज हमारे समाज की दशा है वही रूसो के जमाने मे फ्रान्स मे भी यही सवाल थे , फान्स मे ज्ञान की बडी भूख है , अमेरिका मे सरोकारी लोग है वह सामाजिक गतिविधियों भाग लेते है , पालिटिक्स से ही समाज का निर्मााण होता है । यदि गांधी राजनीति में नही होते तो उनके आश्रमों मे देश की चर्चा नही , गांधी का मन्दिर बना होता , इन दिनों जो चैक्स व सार्वजनिक धन के लुटेरे है वही सम्मानित हो रहे है । युरोप ने कानूनों का पालन करना सीख लिया है पर हमें सीखना है । लोकतन्त्र का अर्थ है परमार्थ पर लोग बोट देने से भी कतराते है ।

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